बाह्य धारणा (त्राटक)
परमात्मा अचल, निर्विकार, अपरिवर्तनशील और एकरस हैं । प्रकृति में गति, विकार, निरंतर परिवर्तन है । मानव उस परमात्मा से अपनी एकता जानकर प्रकृति से पार हो जाये इसलिए परमात्म-स्वरूप के अनुरूप अपने जीवन में दृष्टि व स्थिति लाने का प्रयास करना होगा । प्रकृति के विकारों से अप्रभावित रहने की स्थिति उपलब्ध करनी होगी । इस मूल सिद्धान्त को दृष्टि में रखकर एक प्रभावी प्रयोग बता रहे हैं जिसे ‘बाह्य धारणा’ कहा जाता है । इसमें किसी बाहरी लक्ष्य पर अपनी दृष्टि को एकाग्र किया जाता है । इस साधना के लिए भगवान की मूर्ति, गुरुमूर्ति, ॐ या स्वास्तिक आदि उपयोगी हैं । शरीर व नेत्र को स्थिर और मन को निःसंकल्प रखने का प्रयास करना चाहिए ।
इससे स्थिरता, एकाग्रता व स्मरणशक्ति का विकास होता है । लौकिक कार्यों में सफलता प्राप्त होती है, दृष्टि प्रभावशाली बनती है, सत्यसुख की भावना, शोध तथा सजगता सुलभ हो जाती है । आँखों में पानी आना, अनेकानेक दृश्य दिखना ये इसके प्रारंभिक लक्षण है । उनकी ओर ध्यान न देकर लक्ष्य की ओर एकटक देखते रहना चाहिए । आँख बन्द करने पर भी लक्ष्य स्पष्ट दिखने लगे और खुले नेत्रों से भी उसको जहाँ देखना चाहे, तुरंत देख सके– यही त्राटक की सम्यकता का संकेत है ।
एकाग्रता बढ़ाने के लिए त्राटक बहुत मदद करता है । त्राटक अर्थात दृष्टि के ज़रा सा भी हिलाए बिना एक ही स्थान पर स्थित करना । स्मृतिशक्ति बढ़ाने में त्राटक उपयोगी है ।
तप कई प्रकार के होते हैं । जैसे शारीरिक, मानसिक, वाचिक आदि । ऋषिगण कहते हैं कि मन की एकाग्रता सब तपों में श्रेष्ठ तप है ।
जिसके पास एकाग्रता के तप का खजाना है, वह योगी रिद्धि-सिद्धि एवं आत्मसिद्धि दोनों को प्राप्त कर सकता है । जो भी अपने महान कर्मों के द्वारा समाज में प्रसिद्ध हुए हैं, उनके जीवन में भी जाने-अनजाने एकाग्रता की साधना हुई है । विज्ञान के बड़े-बड़े आविष्कार भी इस एकाग्रता के तप के ही फल हैं ।
एकाग्रता की साधना को परिपक्व बनाने के लिए त्राटक एक महत्त्वाकांक्षी स्थान रखता है । त्राटक का अर्थ है किसी निश्चित आसन पर बैठकर किसी निश्चित वस्तु को एकटक देखना ।
त्राटक कई प्रकार के होते हैं । उनमें बिन्दु त्राटक, मूर्ति त्राटक एवं दीपज्योति त्राटक प्रमुख हैं । इनके अलावा प्रतिबिम्ब त्राटक, सूर्य त्राटक, तारा त्राटक, चन्द्र त्राटक आदि त्राटकों का वर्णन भी शास्त्रों में आता है । यहाँ पर प्रमुख तीन त्राटकों का ही विवरण दिया जा रहा है ।
विधिः किसी भी प्रकार के त्राटक के लिए शांत स्थान होना आवश्यक है, ताकि त्राटक करनेवाले साधक की साधना में किसी प्रकार का विक्षेप न हो ।भूमि पर स्वच्छ, विद्युत-कुचालक आसन अथवा कम्बल बिछाकर उस पर सुखासन, पद्मासन अथवा सिद्धासन में कमर सीधी करके बैठ जायें । अब भूमि से अपने सिर तक की ऊँचाई माप लें । जिस वस्तु पर आप त्राटक कर रहे हों, उसे भी भूमि से उतनी ही ऊँचाई तथा स्वयं से भी उस वस्तु की उतनी ही दूरी रखें ।
बिन्दु त्राटक
पहली विधि – एक फुट के चौरस गत्ते पर एक सफेद कागज़ लगा दें । उसके केन्द्र में एक रूपये का सिक्के के बराबर का एक गोलाकार चिन्ह बनायें । इस गोलाकार चिह्न के केंद्र में एक तिलभर बिन्दु छोड़कर बाकी के भाग में काला कर दें । बीचवाले बिन्दु में पीला रंग भर दें । अब उस गत्ते को दीवार पर ऐसे रखो कि गोलाकार चिह्न आँखों की सीधी रेखा में रहे । नित्य एक ही स्थान में तथा एक निश्चित समय में गत्ते के सामने बैठ जायें । आँख और गत्ते के बीच का अंतर तीन फीट का रखें । पलकें गिराये बिना अपनी दृष्टि उस गोलाकार चिह्न के पील केन्द्र पर टिकायें । पहले 5-10 मिनट तक बैठें । प्रारम्भ में आँखें जलती हुई मालूम पड़ेंगी लेकिन घबरायें नहीं । धीरे-धीरे अभ्यास द्वारा आधा घण्टा तक बैठने से एकाग्रता में बहुत मदद मिलती है । फिर जो कुछ भी पढ़ेंगे वह याद रह जाएगा । इसके अलावा चन्द्रमा, भगवान या गुरूदेव जी के चित्र पर, स्वस्तिक, ॐ या दीपक की ज्योत पर भी त्राटक कर सकते हैं । इष्टदेव या गुरूदेव के चित्र पर त्राटक करने से विशेष लाभ मिलता है ।
दूसरी विधि – 8 से 10 इंच की लम्बाई व चौड़ाई वाले किसी स्वच्छ कागज पर लाल रंग से स्वास्तिक का चित्र बना लें । जिस बिन्दु पर स्वस्तिक की चारों भुजाएँ मिलती हैं, वहाँ पर सलाई से काले रंग का एक बिन्दु बना लें । अब उस कागज को अपने साधना-कक्ष में उपरोक्त दूरी के अनुसार स्थापित कर दें । प्रतिदिन एक निश्चित समय व स्थान पर उस काले बिन्दु पर त्राटक करें । त्राटक करते समय आँखों की पुतलियाँ न हिलें तथा न ही पलकें गिरें, इस बात का ध्यान रखें । प्रारम्भ में आँखों की पलकें गिरेंगी किन्तु फिर भी दृढ़ होकर अभ्यास करते रहें । जब तक आँखों से पानी न टपके, तब तक बिन्दु को एकटक निहारते रहें ।
इस प्रकार प्रत्येक तीसरे चौथे दिन त्राटक का समय बढ़ाते रहें । जितना-जितना समय अधिक बढ़ेगा, उतना ही अधिक लाभ होगा ।
मूर्ति त्राटक
जिन किसी देवी-देवता अथवा संत-सदगुरू में आपकी श्रद्धा हो, जिन्हें आप स्नेह करते हों, आदर करते हों उनकी मूर्ति अथवा फोटो को अपने साधना-कक्ष में स्थापित करें । अब उनकी मूर्ति अथवा चित्र को चरणों से लेकर मस्तक तक श्रद्धापूर्वक निहारते रहें । फिर धीरे-धीरे अपनी दृष्टि को किसी एक अंग पर स्थित कर दें । जब निहारते-निहारते मन तथा दृष्टि एकाग्र हो जाय, तब आँखों को बंद करके दृष्टि को आज्ञाचक्र में एकाग्र करें ।इस प्रकार का नित्य अभ्यास करने से वह चित्र आँखें बन्द करने पर भी भीतर दिखने लगेगा । मन की वृत्तियों को एकाग्र करने में यह त्राटक अत्यन्त उपयोगी होता है तथा अपने इष्ट अथवा सदगुरू के श्रीविग्रह के नित्य स्मरण से साधक की भक्ति भी पुष्ट होती है ।
दीपज्योति त्राटक
अपने साधना कक्ष में घी का दीया जलाकर उसे ऊपर लिखी दूरी पर रखकर उस पर त्राटक करें । घी का दीया न हो तो मोमबत्ती भी चल सकती है परन्तु घी का दीया हो तो अच्छा है ।
इस प्रकार दीये की लौ को तब तक एकटक देखते रहें, जब तक कि आँखों से पानी न गिरने लगे । तत्पश्चात् आँखें बन्द करके भृकुटी (आज्ञाचक्र) में लौ का ध्यान करें ।
त्राटक साधना से अनेक लाभ होते हैं । इससे मन एकाग्र होता है और एकाग्र मनयुक्त व्यक्ति चाहे किसी भी क्षेत्र में कार्यरत हो, उसका जीवन चमक उठता है । श्रेष्ठ मनुष्य इसका उपयोग आध्यात्मिक उन्नति के लिए ही करते हैं ।
एकाग्र मन प्रसन्न रहता है, बुद्धि का विकास होता है तथा मनुष्य भीतर से निर्भीक हो जाता है । व्यक्ति का मन जितना एकाग्र होता है, समाज पर उसकी वाणी का, उसके स्वभाव का एवं उसके क्रिया-कलापों का उतना ही गहरा प्रभाव पड़ता है ।
साधक का मन एकाग्र होने से उसे नित्य नवीन ईश्वरीय आनंद व सुख की अनुभूति होती है । साधक का मन जितना एकाग्र होता है, उसके मन में उठने वाले संकल्पों (विचारों) का उतना ही अभाव हो जाता है । संकल्प का अभाव हो जाने से साधक की आध्यात्मिक यात्रा तीव्र गति से होने लगती है तथा उसमें सत्य संकल्प का बल आ जाता है । उसके मुख पर तेज एवं वाणी में भगवदरस छलकने लगता है ।
इस प्रकार त्राटक लौकिक एवं आध्यात्मिक दोनों क्षेत्रों के व्यक्तियों के लिए लाभकारी है । पूज्य बापूजी कहते हैं त्राटक के साथ यदि ओंकार का गुंजन किया जाए तो और भी चमत्कारिक लाभ होंगे । हाथ कंगन को आरसी क्या…………
1 thought on “Trataka”
just awesome