अजपाजप
प्रतिजैविक औषध (एंटीबायोटिक) और पेनकिलर, क्या-क्या खाने के बाद भी लोग तंदुरुस्त दिखाई नहीं देते । क्या-क्या मनौतियों के बाद भी लोग निश्चिंत नहीं दिखाई देते । कितने-कितने उपायों के बाद भी लोग पूरे आनंदित नहीं दिखाई देते । क्या-क्या देश-विदेश की यात्राएँ और आविष्कार करने के बाद भी लोग सुखी, स्वस्थ और सम्मानित नहीं दिखाई देते, निश्चिंत नहीं दिखाई देते । ऐसा नहीं कि अमुक वर्ग अभागा है इसलिए वह दुःखी है, प्रायः सभी वर्ग के लोगों के साथ यह समस्या है । किसी भी वर्ग के लोगों को देखो तो उनके स्वास्थ्य का, मानसिकता का, बौद्धिकता का ठिकाना नहीं है । एक-दूसरे पर दोषारोपण करना, अपने को, दूसरों को या भाग्य को कोसना ।
इन्द्रियों का स्वामी मन है और मन का स्वामी प्राण है । प्राण तालबद्ध न होने के कारण मन तालबद्ध नहीं, इसलिए इन्द्रियों पर मन का शासन ठीक नहीं चलता । औषधियाँ लेते हैं, इंजेक्शन भोंकवाते हैं, शल्यक्रिया (ऑपरेशन) भी कराते हैं, आयुर्वेदिक उपचार भी करते हैं, फिर भी शरीर का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता । थोड़े दिन ठीक रहा-न रहा फिर बेठीक हो जाता है । आज के मानव की यही समस्या है । वास्तव में स्वास्थ्य का, सुख का, आनंद का, माधुर्य का और सारी समस्याओं के समाधान का स्रोत जो है, उसको मानव भूलता चला गया ।
दीक्षा के समय सभीको सिखाया जाता है और कहा जाता है कि ‘श्वासोच्छ्वास में पचास की गिनती हररोज करनी है, जिससे मन नियंत्रित हो, प्राण तालबद्ध हों और आयु-आरोग्य पुष्ट रहे ।’ जो लोग आज्ञा का पालन करके करते होंगे उनको तो लाभ होता होगा लेकिन इस लाभ की महिमा न जानने के कारण खानापूर्ति कर देते होंगे तो खानापूर्ति जैसा लाभ होता होगा । इसमें मन की सजगता, प्राणों की तालबद्धता और आपकी वेदांतिक समझ – ये तीनों चीजें जरूरी हैं ।
अजपाजप की विधि
लम्बा श्वास लें और हरिनाम का गुंजन करें ।खूब गहरा श्वास लें नाभि तक और भीतर करीब २० सेकंड रोक सकें तो अच्छा है, फिर ओ….म्… इस प्रकार दीर्घ प्रणव का जप करें ।ऐसा १०-१५ मिनट करें ।कम समय में जल्दी उपासना सफल हो, जल्दी आनंद उभरे, जल्दी आत्मानंद का रस आये और बाहर का आकर्षण मिटे, यह ऐसा प्रयोग है और कहीं भी कर सकते हो, सबके लिए है, बहुत लाभ होगा । अगर निश्चित समय पर निश्चित जगह पर करो तो अच्छा है, विशेष लाभ होगा ।फिर बैठे हैं… श्वास अंदर गया तो ओम् या राम, बाहर आया तो एक… अंदर गया तो शांति या आनंद, बाहर आया तो दो… श्वास अंदर गया तो आरोग्यता, बाहर आया तो तीन… इस प्रकार अगर ५० की गिनती बिना भूले रोज कर लो तो २-४ दिन मेंही आपको फर्क महसूस होगा कि ‘हाँ, कुछ तो है।’ अगर ५० की गिनती में मन गलती कर दे तो फिर से शुरू से गिनो । मन को कहो, ‘५० तक बिना गलती के गिनेगा तब उठने दूँगा ।’ मन कुछ अंश में वश भी होने लगेगा, फिर ६०, ७०…. बढाते हुए १०८ तक की गिनती का नियम बना लो । १ मिनट में १३ श्वास चलते हैं तो १०८ की गिनती में १० मिनट भी नहीं चाहिए लेकिन फायदा बहुत होगा । घंटोंभर क्लबों में जाने की जगह ८- १० मिनट का यह प्रयोग करें तो बहुत ज्यादा लाभ होगा ।”
प्रतिदिन रात्रि को सोते समय यह अभ्यास करने से आपकी निद्रा योगनिद्रा बन जायेगी । जो आपकी कई समस्याओं के समाधान में भी मददरुप सिद्ध होगी ।