आभामंडल - विज्ञान भी नतमस्तक
हर मनुष्य, जीव-जंतु, पशु, पेड़-पौधा या वस्तु के चारों ओर सप्तरंगीय ऊर्जा तरंगें निष्कासित होती रहती हैं व एक अति सूक्ष्म गोलीय चक्र-सा प्रतिबिम्ब रहता है, जिसको ‘आभामण्डल (ओरा)’ कहते हैं । देवी-देवताओं तथा संत-महापुरुषों के श्रीचित्रों में उनके सिर के पीछे दिखने वाला चमकीला, रंगीन गोल घेरा उनके आभामंडल का ही प्रतीक है । साधारण मनुष्यों में यह आभामंडल 2-3 फीट दूरी तक गोलाईवाला माना जाता है । जिस व्यक्ति के आभामंडल का दायरा जितना अधिक होता है, वह उतना ही अधिक कार्यक्षम, मानसिक रूप से क्षमतावान व स्वस्थ होता है ।
परीक्षणों से सिद्ध हुआ है कि ‘देशी गाय, तुलसी, पीपल आदि के पूजन की परम्परा का एक ठोस वैज्ञानिक आधार यह भी है कि इनसे ब्रह्मांडीय (धनात्मक) ऊर्जा प्रवाहित होती रहती है ।
देशी गौओं का आभामंडल सामान्य मनुष्य तथा अन्य पशुओं के आभामंडल से ज्यादा व्यापक होता है । यही कारण है कि गायों की परिक्रमा करने से उनके आभामंडल के प्रभाव में आकर हमारी धनात्मक ऊर्जा में वृद्धि होती है तथा हमारे आभामंडल का दायरा बढ़ता है । यह बात ओरा विशेषज्ञ के. एम. जैन ने एक वैज्ञानिक तरीके से प्रमाणित भी की है । डॉ. चारूदत्त पिंगले के अनुसार भारतीय गायों का आभामंडल लगभग 8 मीटर का होता है ।
भारतीय परमाणु वैज्ञानिक डॉ. मेनम मूर्ति द्वारा निर्मित आभामंडल मापने के यंत्र ‘यूनिवर्सल स्कैनर’ द्वारा किसी के भी आभामंडल का दायरा मापा जा सकता है । आंध्र प्रदेश में पायी जाने वाली देशी प्रजाती ‘पुंगानुर गाय’ के आभामंडल का दायरा तो 120 फीट तक पाया गया है ।
गायों की इस धनात्मक ऊर्जा का लाभ समाज को मिल सके, शायद इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर हमारे शास्त्रों व महापुरुषों ने देशी गाय की परिक्रमा, स्पर्श, पूजन आदि की व्यवस्था की है ।
भारत के महान वैज्ञानिक श्री जगदीशचन्द्र बसु ने क्रेस्कोग्रॉफ संयत्र की खोज कर यह सिद्ध कर दिखाया कि वृक्षों में भी हमारी तरह चैतन्य सत्ता का वास होता है । इस खोज से भारतीय संस्कृति की वृक्षोपासना के आगे सारा विश्व नतमस्तक हो गया । आधुनिक विज्ञान भी तुलसी पर शोध कर इसकी महिमा के आगे नतमस्तक है ।
तुलसी में विद्युतशक्ति अधिक होती है । इससे तुलसी के पौधे के चारों ओर की 200-200 मीटर तक की हवा स्वच्छ और शुद्ध रहती है ।
आभामंडल नापने के यंत्र यूनिवर्सल स्कैनर द्वारा एक व्यक्ति पर परीक्षण करने पर यह बात सामने आयी कि तुलसी के पौधे की 9 बार परिक्रमा करने पर उसके आभामंडल के प्रभाव क्षेत्र में 3 मीटर की आश्चर्यकारक बढ़ोतरी हो गयी । आभामंडल का दायरा जितना अधिक होगा, व्यक्ति उतना ही अधिक कार्यक्षम, मानिस रूप से क्षमतावान व स्वस्थ होगा ।
इसके साथ आँवला, पीपल, बड़ आदि वृक्षों की परिक्रमा से भी हमारे आभामंडल में वृद्धि होती है ।
वैज्ञानिकों के लिए आश्चर्य बनी पूज्य संत श्री आशारामजी की आभा –
हरेक व्यक्ति के शरीर से एक आभा (ओरा) निकलती है । अब विज्ञान ने इसको मापने के लिए विशेष प्रकार के कैमरे व यंत्र विकसित कर लिये हैं । विश्वप्रसिद्धआभा विशेषज्ञ डॉ. हीरा तापड़िया ने विश्वप्रसिद्ध संत श्री आशारामजी बापू का आभा चित्र खींचा तो वे आश्चर्यचकित रह गये । डॉ. तापड़िया कहते हैं-
“मैंने अब तक लगभग सात लाख से भी ज्यादा लोगों की आभा ली है, जिनमें एक हजार विशिष्ट व्यक्ति शामिल हैं जैसे बड़े संत, साध्वियाँ, प्रमुख व्यक्ति आदि ।
संत श्री आशारामजी की आभा का अध्ययन कर मैंने पाया कि वह इतनी अधिक प्रभावशाली है कि कोई भी उनके पास आयेगा तो वह उनकी आभा से अभिभूत हो जायेगा, उनकी आभा के प्रभाव में रहेगा ।
बापूजी की आभा में बैंगनी (वायलट रंग) है, जो यह दर्शाता है कि बापू जी आध्यात्मिकता के शिरोमणि हैं । यह सिद्ध ऋषि मुनियों में ही पाया जाता है । लालिमा यह दर्शाती है कि बापू जी शक्तिपात करते हैं, दूसरों की क्षीणता को पूर्णतः हर लेते हैं तथा अपनी शक्ति देते हैं । आसमानी रंग उन्नत ऊँचाइयों में रहने वाली बापू जी की आभा का परिचायक है ।
बापू जी का आभा में यह प्रमुखता मैंने पायी कि वे सम्पर्क में आये व्यक्ति की ऋणात्मक ऊर्जा को ध्वस्त कर धनात्मक ऊर्जा प्रदान करते हैं । बापूजी की आभा की एक खासियत यह भी है कि वे दूर से किसी को भी शक्ति दे सकते हैं । बापू जी के सत्संग में जब मैं गया था तो वहाँ जाँच करने पर मैंने देखा कि बापूजी की आभा अपने-आप रबड़ की तरह खिंचकर खूब लम्बी हो जाती है और वहाँ उपस्थित समूची भीड़ पर छा जाती है ।
बापूजी की आभा देखकर मुझे सबसे ज्यादा आश्चर्य हुआ क्योंकि लगातार पिछले कम-से-कम दस जन्मों से बापू जी की समाजसेवा का यह पुनीत कार्य करते आ रहे हैं, जैसे– लोगों पर शक्तिपात करके उन्हें आध्यात्मिकता में लगाना, व्यसनमुक्त करना, स्वस्थ करना, समाज की बुराइयों को दूर करना, ज्ञानामृत बाँटना, आनंद बरसाना आदि । मुझे पिछले दस जन्मों तक का ही पता चल पाया, उसके पहले का पढ़ने की क्षमता मशीन में नहीं थी । आज तक जितने भी लोगों की आभाएँ मैंने ली हैं, किसी को भी इतना उन्नत नहीं पाया है ।”