सद्गुरु महिमा
आध्यात्मिक विकास एवं दिव्य जीवन की प्राप्ति हेतु पूर्ण सत्य के ज्ञाता, समर्थ सदगुरु की अत्यंत आवश्यकता होती है। जैसे प्रकाश बिना अंधकार का नाश संभव नहीं, वैसे ही ब्रह्मनिष्ठ सदगुरु के बिना अज्ञानांधकार का नाश सम्भव नहीं। अतः शास्त्र और संतजन सदगुरु की महिमा गाते-गाते नहीं अघाते।
ब्रह्ममूर्ति उड़िया बाबा जी के बड़े ही हितकारी वचन हैं,
“गुरु में जब तक भगवद्बुद्धि नहीं की जाती, तब तक संसार सागर से पार नहीं हुआ जा सकता। गुरु और भगवान में बिल्कुल भेद नहीं है – यही मानना कल्याणकारी है और इसी भाव से भगवान मिलते हैं। जब तक शिष्य यह न समझ ले कि ‘गुरु ही मेरा सर्वस्व है’ तब तक शिष्य का कल्याण नहीं हो सकता। उत्तम शिष्य चिंतन करने से गुरु की शक्ति प्राप्त कर लेते हैं, मध्यम शिष्य दर्शन करने से और निकृष्ट शिष्य प्रश्न करने शक्ति प्राप्त कर करते हैं। हमारे यहाँ गुरु से प्रश्न करने की आवश्यकता नहीं मानी जाती। गुरु की सेवा करें और उनका चिंतन करें। जब गुरु में अनुराग है – गुरु हमारे हैं तो उनके गुण हमारे में ही हैं।”
स्वामी अखंडानंद जी सरस्वती कहते हैं,
“आप अपने आचार-विचार को गुरु के उपदेश के अनुसार बनाइये। गुरु का जो गुरुत्व है वह भगवान का गुरुत्व है, उनके जो विचार हैं वे भगवत्-सम्बंधी विचार हैं और वे आपको विचार, कोई संस्कार, कोई आकार, कोई प्रकार आपको बाँध नहीं सके, गुरु आपको वहाँ पहुँचाने वाला होते हैं उनका सम्मान कीजिये।”
संत कबीर जी कहते है,
गुरु हैं बड़े गोविंद ते, मन में देखु विचार।
हरि सिरजे ते वार हैं, गुरु सिरजे ते पार।।
गुरुदेव गोविंद से बड़े हैं, इस तथ्य का मन में विचार करके देखो। हरि सृष्टि करते हैं तो प्राणियों को संसार में ही रखते हैं और गुरुदेव सृष्टि करते हैं (शिष्य के अंतःकरण मं आत्मसृष्टि का सृजन करते हैं) तो संसार से मुक्त कर देते हैं।
सदगुरु का स्थान अद्वितीय बताते हुए आनंदमयी माँ कहती हैं,
“गुरु क्या कभी मनुष्य हो सकते हैं ? गुरु साक्षात् भगवान हैं। गुरु का स्थान दूसरा कोई नहीं ले सकता । गुरु में मनुष्य बुद्धि करना महापाप है ।”
पूज्य संत श्री आशाराम जी बापू कहते हैं,
“दुनिया के सब मित्र, सब साधन, सब सामग्रियाँ, सब धन-सम्पदा मिलकर भी मनुष्य को अविद्या (असत्य जगत को सत्य मानना व सदा विद्यमान परमात्मा को न जानना), अस्मिता (देह को ‘मैं’ मानना), राग, द्वेष और अभिनिवेश (मृत्यु का भय) – इन पाँच दोषों से नहीं छुड़ा सकते। सदगुरुओं का सत्संग, सान्निध्य और उनकी दीक्षा ही बेड़ा पार करने की सामर्थ्य रखती है।”