आध्यात्मिक जागरण अभियान
भगवन्नाम अनंत माधुर्य, ऐश्वर्य और सुख की खान है।
भगवन्नाम, इष्टदेव के नाम व गुरुनाम के जप और कीर्तन से अनुपम पुण्य प्राप्त होता है। तुकारामजी कहते हैं- “नाम लेने से कण्ठ आर्द्र और शीतल होता है। इन्द्रियाँ अपना व्यापार भूल जाती हैं। यह मधुर सुंदर नाम अमृत को भी मात करता है। इसने मेरे चित्त पर अधिकार कर लिया है। प्रेमरस से प्रसन्नता और पुष्टि मिलती है। भगवन्नाम ऐसा है कि इससे क्षणमात्र में त्रिविध ताप नष्ट हो जाते हैं।
‘बृहद् नारदीय पुराण’ में कहा हैः
संकीर्तनध्वनिं श्रुत्वा ये च नृत्यन्तिमानवाः।
तेषां पादरजस्पर्शान्सद्यः पूता वसुन्धरा।।
‘जो भगवन्नाम की ध्वनि को सुनकर प्रेम में तन्मय होकर नृत्य करते हैं, उनकी चरणरज से पृथ्वी शीघ्र ही पवित्र हो जाती है।’
वेदों के गान में पवित्रता तथा वर्णोच्चार छन्द और व्याकरण के नियमों का कड़ा ख्याल रखना पड़ता है अन्यथा उद्देश्य भंग होकर उलटा परिणाम ला सकता है। परंतु नाम-संकीर्तन में उपरोक्त विविध प्रकार की सावधानियों की आवश्यकता नहीं है। शुद्ध या अशुद्ध, सावधानी या असावधानी से किसी भी प्रकार भगवन्नाम लिया जाय, उससे चित्तशुद्धि, पापनाश तथा परमात्म-प्रेम की वर्षा होगी ही।
ध्यायन् कृते यजन् यज्ञैस्त्रेतायां द्वापरेऽर्चयन्।
यदाप्नोति तदाप्नोति कलौ संकीर्त्य केशवम्।।
‘सत्ययुग में भगवान का ध्यान, त्रेता में यज्ञों द्वारा यजन और द्वापर में उनका पूजन करके मनुष्य जिस फल को पाता है, उसे वह कलियुग में केशव का कीर्तनमात्र करके प्राप्त कर लेता है।
(विष्णु पुराण)
वैज्ञानिक दृष्टिकोण –
पाश्चात्य वैज्ञानिक डॉ. डायमंड अपने प्रयोगों के पश्चात जाहिर करता है कि पाश्चात्य रॉक संगीत, पॉप संगीत सुनने वाले और डिस्को डास में सम्मिलित होने वाले, दोनों की जीवनशक्ति क्षीण होती है, जबकि भारतीय शास्त्रीय संगीत और हरि-कीर्तन से जीवनशक्ति का शीघ्र व महत्तर विकास होता है। हरि-कीर्तन हमारे ऋषि-मुनियों एवं संतों ने हमें आनुवंशिक परंपराओं के रूप में प्रदान किया है और यह भोग-मोक्ष दोनों का देने वाला है।
जापान में एक्यप्रेशर चिकित्सा हुआ। उसके अनुसार हाथ की हथेली व पाँव के तलवों में शरीर के प्रत्येक अंग के लिए एक निश्चित बिंदु है, जिसे दबाने से उस-उस अंग का आरोग्य-लाभ होता है। हमारे गाँवों के नर-नारी, बालक-वृद्ध यह कहाँ से सीखते? आज वैज्ञानिकों ने जो खोजबीन करके बताया वह हजारों-लाखों साल पहले हमारे ऋषि-मुनियों, महर्षियों ने सामान्य परंपरा के रूप में पढ़ा दिया कि हरि-कीर्तन करने से तन-मन स्वस्थ और पापनाश होता है। हमारे शास्त्रों की पुकार हरि-कीर्तन के बारे में इसीलिए है ताकि सामान्य-से-सामान्य नर-नारी, आबालवृद्ध, सब ताली बजाते हुए कीर्तन करें, भगवदभाव में नृत्य करें, उन्हें एक्यूप्रेशर चिकित्सा का अनायास ही फल मिले, उनके प्राण तालबद्ध बनें (प्राण तालबद्ध बनने से, प्राणायाम से आयुष्य बढ़ता है), मन के विकार, दुःख, शोक आदि का नाश हो और हरिरसरूपी अमृत पियें।
हमारी इसी वैदिक परंपरा को आज भी जीवित रखा है परम पूज्य संत श्री आशारामजी बापू ने और उन्हीं की पावन प्रेरणा से महिला उत्थान मंडल द्वारा वर्षों से आध्यात्मिक जागरण अभियान चलाया जा रहा है । इस अभियान का मुख्य उद्देश्य समाज में तेजी से फैल रहे वैचारिक प्रदूषण को दूर वातावरण को भगवन्नाम के स्पंदनों से युक्त करना है ।
कार्यक्रम के मुख्य बिंदु -
- ब्रह्मज्ञानी महापुरुष पूज्य बापूजी की काव्यमय जीवनगाथा ‘श्री आशारामायण जी’ का पाठ ।
- हरि ऊँ का गुंजन, भगवन्नाम जप, भजन-कीर्तन व श्रीमद् भगवद्गीता पाठ ।
- जन्मदिन, गृह-प्रवेश, मृत्युतिथि आदि अवसरों पर भी इस कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है ।