अपने स्वरूप को जानो
शुभ अवसर है तो यह है, जो चाहो लाभ उठाओ ।
यह व्यर्थ न जाने पाये, निज को निर्दोष बनाओ ।।
सत्संग से गति मिलती, हितकर पुनीत मति मिलती।
सद्गुरु विवेक मिल जाता, उसको न कही ठुकराओ।।
दुख से न डरो जीवन में, प्रभु का आश्रय धर मन में ।।
जो कर न सके थे अब तक, वह भी करके दिखलाओ।।
जग के इन संयोगों में, तुम रमों न प्रिय भोगों में ।।
तजकर वियोग का भय अब, नित योग गीत तुम गाओ।।
अपने स्वरूप को जानो, तन धन अपना न मानो ।।
मोहि बनकर आये थे, प्रेमी होकर ही जाओ ।।
इच्छाओं के त्यागी बन, प्रभु के ही अनुरागी बन ।
ए पथिक कहीं भी रहकर तुम परमानंद बनो ।।
– संत पथिकजी