कर्माबाई की वात्सल्य-भक्ति
सर्वान्तर्यामी, घट-घटवासी भगवान न तो धन-ऐश्वर्य से प्रसन्न होते हैं और न ही पूजा के लम्बे-चौड़े विधानों से । वे तो बस, एकमात्र प्रेम से ही संतुष्ट होते हैं एवं प्रेम के वशीभूत होकर नेम (नियम) की भी परवाह नहीं करते । कोई उनका होकर उन्हें पुकारे तो दौड़े चले आते हैं ।
कर्माबाई नामक एक ऐसी ही भक्तिमती नारी थीं, जिनकी पुकार सुनकर भगवान प्रतिदिन उनकी खिचड़ी खाने दौड़े चले आते थे । भगवान यह नहीं देखते की भक्त ने खीर-पूरी-पकवान तैयार किये हैं या एकदम सीधा-सादा, रूखा-सूखा भोजन ।
कर्माबाई श्रीपुरुषोत्तमपुरी (जगन्नाथपुरी) में निवास करती थीं । वे भगवान का वात्सल्य-भाव से चिन्तन करती थीं एवं प्रतिदिन नियमपूर्वक प्रातःकाल स्नानादि किये बिना ही खिचड़ी तैयार करतीं और भगवान को अर्पित करती थीं । प्रेम के वश में रहने वाले श्रीजगन्नाथजी भी प्रतिदिन सुन्दर-सलोने बालक के वेश में आते और कर्माबाई की गोद में बैठकर खिचड़ी खा जाते । कर्माबाई भी सदैव चिन्तित रहा करतीं कि बालक के भोजन में कभी विलंब न हो जाये । इसी कारण वे किसी भई विधि-विधान के पचड़े में न पड़कर अत्यंत प्रेम से सवेरे ही खिचड़ी तैयार कर लेती थीं ।
एक दिन की बात है । कर्माबाई के पास एक साधु आये । उन्होंने कर्माबाई को अपवित्रता के साथ खिचड़ी तैयार करके भगवान को अर्पण करते हुए देखा । घबराकर उन्होंने कर्माबाई को पवित्रता से भोजन बनाने के लिए कहा और पवित्रता के लिए स्नानादि की विधियाँ बता दीं ।
भक्तिमती कर्माबाई ने दूसरे दिन वैसा ही किया किंतु खिचड़ी तैयार करने में उन्हें देर हो गयी । उस समय उनका हृदय यह सोचकर रो उठा कि ‘मेरा प्यारा श्यामसुन्दर भूख से छटपटा रहा होगा ।’
कर्माबाई ने दुःखी मन से श्यामसुन्दर को खिचड़ी खिलायी । उसी समय मंदिर में अनेकानेक घृतमय निवेदित करने के लिए पुजारी ने प्रभु का आवाहन किया । प्रभु जूठे मुँह ही वहाँ चल गये । पुजारी चकित हो गया । उसने देखा कि भगवान के मुखारविंद में खिचड़ी लगी है ! पुजारी भी भक्त था । उसका हृदय क्रन्दन करने लगा । उसने अत्यंत कातर होकर प्रभु को असली बात बताने की प्रार्थना की ।
तब उसे उत्तर मिलाः “नित्यप्रति प्रातःकाल मैं कर्माबाई के पास खिचड़ी खाने जाता हूँ । उनकी खिचड़ी मुझे बड़ी प्रिय और मधुर लगती है । पर कल एक साधु ने जाकर उन्हें पवित्रता के लिए स्नानादि की विधियाँ बता दीं, इसलिए विलंब के कारण मुझे क्षुधा का कष्ट तो हुआ ही, साथ ही शीघ्रता से जूठे मुँह ही आना पड़ा ।”
भगवान के बताये अनुसार पुजारी ने उस साधु को ढूँढकर प्रभु की सारी बातें सुना दीं । साधु चकित हो उठा एवं घबराकर कर्माबाई के पास जाकर बोलाः “आप पूर्व की तरह ही प्रतिदिन सवेरे ही खिचड़ी बनाकर प्रभु को निवेदन कर दिया करें । आपके लिए किसी नियम की आवश्यकता नहीं है ।”
कर्माबाई पुनः पहले की ही तरह प्रतिदिन सवेरे भगवान को खिचड़ी खिलाने लगीं । वे समय पाकर परमात्मा के पवित्र और आनंदधाम में चली गयीं, परंतु उनके प्रेम की गाथा आज भी विद्यमान है । श्रीजगन्नाथजी के मंदिर में आज भी प्रतिदिन प्रातःकाल खिचड़ी का भोग लगाया जाता ।
प्रेम में अदभुत शक्ति है । जो काम दल-बल-छल से नहीं हो सकता, वह प्रेम से संभव है । प्रेम प्रेमास्पद को भी अपने वशीभूत कर देता है किंतु शर्त इतनी है कि प्रेम केवल प्रेम के लिए ही किया जाय, किसी स्वार्थ के लिए नहीं । भगवान के होकर भगवान से प्रेम करो तो उनके मिलने में जरा भी देर नहीं है ।