दैवी शक्तियों से सम्पन्न गुणमंजरी देवी
प्रयागराज इलाहाबाद में त्रयोदशी के कुंभ-स्नान का पर्व-दिवस था। कुंभ में कई अखाड़ेवाले, जति-जोगि, साधु-संत आये थे। उसमें कामकौतुकी नामक एक ऐसी जाति भी आयी थी जो भगवान के लिए ही राग-रागिनियों का अभ्यास किया करती थी तथा भगवदगीत के सिवाय और कोई गीत नहीं गाती थी। उसने भी अपना गायन-कार्यक्रम कुंभ मेले में रखा था।
श्रृंगेरी मठाधीश श्री सोमनाथाचार्य भी इस कामकौतुकी जातिवालों के संयम और राग-रागिनियों में उनकी कुशलता के बारे में जानते थे, इसलिए वे भी वहाँ पधारे थे। उस कार्यक्रम में सोमनाथाचार्य जी की उपस्थिति के कारण लोगों को विशेष आनंद हुआ और जब गुणमंजरी देवी भी आ पहुँची तो उस आनंद में चार चाँद लग गये।
गुणमंजरी देवी ने चान्द्रायण और कृच्छ्र व्रत किये थे। शरीर के दोषों को हरने वाले जप-तप और संयम को अच्छी तरह से साधा था। लोगों ने मन-ही-मन उसका अभिवादन किया।
गुणमंजरी देवी भी केवल गीत ही नहीं गाती थीं, वरन् उसने अपने जीवन में दैवी गुणों का इतना विकसित किया था कि जब चाहे अपनी दैविक सखियों को बुला सकती थी, जब चाहे बादल मँडरवा सकती थी, बिजली चमका सकती थी। उस समय उसकी ख्याति दूर-दूर तक पहुँच चुकी थी।
कार्यक्रम आरम्भ हुआ। कामकौतुकी जाति के आचार्यों ने शब्दों की पुष्पांजली से ईश्वरीय आराधना का माहौल बनाया। अंत में गुणमंजरी देवी से प्रार्थना की गयी।
गुणमंजरी देवी ने वीणा पर अपनी उँगलियाँ रखीं। माघ का महीना था। ठण्डी-ठण्डी हवाएँ चलने लगीं। थोड़ी ही देर में मेघ गरजने लगे, बिजली चमकने लगी और बारिश का माहौल बन गया। आने वाली बारिश से बचने के लोगों का चित्त कुछ विचलित होने लगा। इतने में सोमनाथाचार्यजी ने कहाः “बैठे रहना। किसी को चिन्ता करने की जरूरत नहीं है। ये बादल तुम्हें भिगोयेंगे नहीं। ये तो गुण मंजरी देवी की तपस्या और संकल्प का प्रभाव है।”
संत की बात का उल्लंघन करना मुक्तिफल को त्यागना और नरक के द्वार खोलना है। लोग बैठे रहे।
32 राग और 64 रागिनियाँ हैं। राग और रागिनियाँ के पीछे उनके अर्थ और आकृतियाँ भी होती हैं। शब्द के द्वारा सृष्टि में उथल-पुथल मच सकती है। वे निर्जीव नहीं हैं, उनमें सजीवता है। जैसे ‘एयर कंडीशनर’ चलाते हैं तो वह आपको हवा से पानी अलग करके दिखा देता है, ऐसे ही इन पाँच भूतों में स्थित दैवी गुणों को जिन्होंने साध लिया है, वे शब्द की ध्वनि के अनुसार बुझे दीप जला सकते हैं, दृष्टि कर सकते हैं – ऐसे कई प्रसंग आपने-हमने-देखे-सुने होगें। गुणमंजरी देवी इस प्रकार की साधना से सम्पन्न देवी थी।
माहौल श्रद्धा-भक्ति और संयम की पराकाष्ठा पर था। गुणमंजरी देवी ने वीणा बजाते हुए आकाश की ओर निहारा। घनघोर बादलों में से बिजली की तरह एक देवांगना प्रकट हुई। वातावरण संगीतमय-नृत्यमय होता जा रहा था। लोग दंग रह गये ! आश्चर्य को भी आश्चर्य के समुद्र में गोते खाने पड़े, ऐसा माहौल बन गया !
लोग भीतर ही भीतर अपने सौभाग्य की सराहना किये जा रहे थे। मानों, उनकी आँखें उस दृश्य को पी जाना चाहती थीं। उनके कान उस संगीत को पचा जाना चाहते थे। उनका जीवन उस दृश्य के साथ एक रूप होता जा रहा था…. ‘गुणमंजरी, धन्य हो तुम !’ कभी वे गुणमंजरी को को धन्यवाद देते हुए उसके गीत में खो जाते और कभी उस देवांगना के शुद्ध पवित्र नृत्य को देखकर नतमस्तक हो उठते !
कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। देखते ही देखते गुणमंजरी देवी ने देवांगना को विदाई दी। सबके हाथ जुड़े हुए थे, आँखें आसमान की ओर निहार रही थीं और दिल अहोभाव से भरा था। मानों, प्रभु-प्रेम में, प्रभु की अदभुत लीला में खोया-सा था…..
श्रृंगेरी मठाधीश श्री सोमनाथाचार्यजी ने हजारों लोगों की शांत भीड़ से कहाः “सज्जनो ! इसमें आश्चर्य की कोई आवश्यकता नहीं है। हमारे पूर्वज देवलोक से भारतभूमि पर आते और संयम, साधना तथा भगव्तप्रीति के प्रभाव से अपने वांछित दिव्य लोकों तक की यात्रा करने में सफल होते थे। कोई-कोई ब्रह्मस्वरूप परमात्मा का श्रवण, मनन, निदिध्यासन करके यहीं ब्रह्ममय अनन्त ब्रह्माण्डव्यापी अपने आत्म-ऐश्वर्य को पा लेते थे।
समय के फेर से लोग सब भूलते गये। अनुचित खान-पान, स्पर्श-दोष, संग-दोष, विचार-दोष आदि से लोगों की मति और सात्त्विकता मारी गयी। लोगों में छल कपट और तमस बढ़ गया, जिससे वे दिव्य लोकों की बात ही भूल गये, अपनी असलियत को ही भूल गये…..
गुणमंजरी देवी ने संग दोष से बचकर संयम से साधन-भजन किया तो उसका देवत्व विकसित हुआ और उसने देवांगना को बुलाकर तुम्हें अपनी असलियत का परिचय दिया !
तुम भी इस दृश्य को देखने के काबिल तब हुए, जब तुमने कुंभ के इस पर्व पर, प्रयागराज के पवित्र तीर्थ में संयम और श्रद्धा-भक्ति से स्नान किया। इसके प्रभाव से तुम्हारे कुछ कल्मष कटे और पुण्य बढ़े। पुण्यात्मा लोगों के एकत्रित होने से गुणमंजरी देवी के संकल्प में सहायता मिली और उसने तुम्हें यह दृश्य दिखाया। अतः इसमें आश्चर्य न करो।”
आपमें भी ये शक्तियाँ छुपी हैं। तुम भी चाहो तो अनुचित खान-पान, संग-दोष आदि से बचकर, सदगुरु के निर्देशानुसार साधना-पथ पर अग्रसर हो इन शक्तियों को विकसित करने में सफल हो सकते हो। केवल इतना ही नहीं, वरन् परब्रह्म-परमात्मा को पाकर सदा-सदा के लिए मुक्त भी हो सकते हो, अपने मुक्तस्वरूप का जीते जी अनुभव कर सकते हो….