जवानी खो गयी
विदेशी चैनलों तथा पाश्चात्य संस्कृति द्वारा फैल रहे संस्कृतिक प्रदूषण के कारण भारत के बच्चे एवं युवा अपनी संस्कृति से कटते जा रहे हैं । वे अपनी मर्यादा को लाँघकर अपने जीवन को कुसंस्कारों के अंधे कुएँ में धकेल रहे हैं ।
एक बूढ़ी माता कमर झुकाकर जा रही थी । उसको देखके छोरियों को मसखरी सूझी।
उन्होंने पूछा : ” बूढी बाई ! क्या खो गया ? कमर झुकाकर क्या ढूँढ रही हो ? “
बूढी बाई समझ गयी कि छोरियाँ मेरी मसखरी कर रही हैं । वह बोली : ” बेटी ! मेरा सब कुछ खो गया इसी रास्ते पर । ”
” क्या खो गया ? “
बूढी बाई बोली : ” इसी रास्ते से रोज आते-जाते मेरी जवानी खो गयी । तुम्हारी भी इसी रास्ते से आते-जाते जिंदगी खो जायेगी । “
पीपल पान खरंत है, हँसत कुंपलिया ।
अम बीती तम बितसे,धीरो बापड़िया ।।
पीपल के पुराने पत्तों को गिरते देखकर नयी-नयी कोंपलें हस पड़ी । उनके हँसने का कारण समझकर पुराना पत्ता बोला: “जो हम पर बीती है वह तुम पर भी बीतेगी । धीरज रखो बहन ! अगले पतझड़ के मौसम में तुम्हारा भी यही हाल होगा ।”
बूढी बाई बोली : “छोरियो ! मेरी काहे को मसखरी हो, मेरी तो जवानी खोयी पर तुम्हारी भी न रहेगी ।”
तो इस तरह करके बुजुर्गों के अभिशाप क्यों लेना !
विद्यार्थियों एवं युवाओं को तो चाहिए कि वे अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए कमर कसें । भ्रष्ट खानपान एवं आचार-विचार से सर्वथा दूर ही रहें । बड़े-बुजर्गों का, माता -पिता का सम्मान करके, उनका मार्गदर्शन लेकर अपना जीवन उन्नत करना सीखें । भगवान रामजी अपने माता-पिता का सम्मान करते थे । रोज सुबह उठकर अपने गुरुदेव को तथा माता-पिता को प्रणाम करते थे, उनका आशीर्वाद लेते थे तो कितने महान हो गये !