महानता के 8 दिव्य सूत्र
जीवन को महान बनाने के 8 दिव्य सूत्र जीवन में आने चाहिएः
- शांत स्वभाव – शांत रहना सीखो मेरे बच्चे-बच्चियो ! ‘ॐऽऽऽऽ….’ उच्चारण किया और जितनी देर उच्चारण किया उतनी देर शांत हो गये । ऐसा 10 से 15 मिनट तक ध्यान करो । फिर देखो आप समय पाकर कैसे सदगुणों व सद्विचारों की प्रेरणा पाते हैं व फैलाते हैं ! शांत रहने का जो दिव्य गुण है उससे यादशक्ति, सामर्थ्य बढ़ेगा और दूसरे भी कई लाभ होंगे । इसलिए शांत व एकाग्र रहने का गुण विकसित करो । तपःसु सर्वेषु एकाग्रता परं तपः ।
- सत्यनिष्ठा – सत्य बोलना बड़ा हितकारी है । झूठ-कपट और बेईमानी से थोड़ी देर के लिए लाभ दिखता है किंतु अंत में दुःख-ही-दुःख होता है । सत्य के आचरण से भगवान जल्दी रीझते हैं, भक्ति, ज्ञान और योग में बरकत आती है एवं अंतःकरण जल्दी शुद्ध होता है ।
साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप ।
जाके हिरदै साँच है, ताके हिरदै आप । ।
गांधी जी की सत्यता की सुवास अभी भी महक रही है ।
- उत्साह – जो काम करें उत्साह व तत्परता से करें, लापरवाही न बरतें । उत्साह से काम करने से योग्यता बढ़ती है, आनंद आता है । उत्साहहीन हो के काम करने से कार्य बोझ बन जाता है ।
- धैर्य – जिसका हृदय धैर्य और सही विचार से सराबोर रहता है वह छोटी-मोटी बातों से दुःखी नहीं होता । बड़े-बड़े उतार-चढ़ावों में भी वह उतना प्रभावित नहीं होता जितने निगुरे लोग होते हैं । अगर वह निष्फल भी हो जाय तो हताश-निराश नहीं होता बल्कि विफलता को खोजकर फेंक देता है और फिर तत्परता से ऊँचे उद्देश्य की पूर्ति में लग जाता है ।
- समता – समता सबसे बड़ा सदगुण है । ऐसा प्रयत्न करना चाहिए कि विपरीत परिस्थिति में भी समता बनी रहे । सुख-दुःख में सम रहने का अभ्यास करो ।
- साहस – साहसी बनो । जीवन में तुम सब कुछ कर सकते हो । नकारात्मक विचारों को छोड़ दो । एक लक्ष्य (परमात्मप्राप्ति) से जुड़े रहो । फिर देखो, सफलता तुम्हारी दासी बनने को तैयार हो जायेगी ।
- नम्रता – नम्र व्यक्ति बड़े-बड़े कष्टों और क्लेशों से छूट जाता है और दूसरों के हृदय में भी अपना प्रभाव छोड़ जाता है । नम्रता व्यक्ति को महान बनाती है किंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि जहाँ-तहाँ बदमाश, लुच्चे और ठगों को भी प्रणाम करते रहें । नम्रता कहाँ और कैसे दिखानी हैं – यह विवेक भी होना चाहिए ।
- सहनशक्ति – जीवन में सहनशक्ति बढ़ायें । माँ ने कुछ कह दिया तो कोई बात नहीं, माँ है न ! पिता ने या शिक्षक ने कुछ कह दिया तो रूठना नहीं चाहिए । उद्विग्न न हों, धैर्य रखें ।
7 बड़ी हानिकारक बातें
- अधिक बोलना – अधिक न बोलें अपितु सारगर्भित और कम बोलें ।
- व्यर्थ का भटकना – जो अधिक भटकता है, अधिक हँसी-मजाक करता है उसको हानि होती है ।
- अधिक शयन – जो अधिक सोता है, दिन में सोता है उसको भी बड़ी हानि होती है ।
- अधिक भोजन – जो ठाँस-ठाँसकर खाता है, बार-बार खाता है उसका पाचनतंत्र खराब हो जाता है और वह आलसी बन जाता है ।
- श्रृंगार – जो शरीर को ज्यादा सजाते है, ज्यादा टीपटाप करते हैं, अश्लील चित्र देखते हैं, अश्लील साहित्य पढ़ते हैं व ऐसे लोगों का संग करते हैं वे असंयमी हो जाते हैं, अपनी बड़ी हानि करते हैं ।
- हीन-भावना – जो अपने को कोसता है कि ‘मैं गरीब हूँ, मेरा कोई नहीं है, मैं कुछ नहीं कर सकता हूँ…..’ ऐसा व्यक्ति विकास में पीछे रह जाता है । अनंतशक्ति-नायक अंतरात्मा-परमात्मा तुम्हारे साथ है । उसको पुकारे, प्रयत्न करे तो व्यक्ति महान बन जाता है । पूर्वकाल में साधारण, हारे थके विद्यार्थियों ने भी पुरुषार्थ करके बड़ी ऊँची सफलताएँ प्राप्त कीं । साधारण में से महान बनने वालों की बातें बतायी जायें तो असख्य पन्ने भर जायेंगे ।
- अहंकार – जो धन, बुद्धि, योग्यता का घमंड करता है वह भी जीवन में विशेष उन्नति नहीं कर पाता । वह रावण की नाईं करा-कराया चौपट कर देता है । लेकिन सदगुरु वसिष्ठजी का सान्निध्य-सत्संग पाकर श्रीरामजी सारगर्भित बोलते, बोलने में आप अमानी रहते और दूसरों को मान देते । वे प्रातः नींद में से उठते ही ध्यान करते, माता-पिता व गुरु को प्रणाम करते । कभी किसी को नीचा दिखाने का प्रयत्न नहीं करते, छल-कपट के व्यवहार से दूर रहते, अहंकार-अभिमान को परे ही रखते । इस प्रकार के अनंद गुणों की खान श्रीराम को जान, मत कर गर्व-गुमान !