भारतीय मनोविज्ञान कितना यथार्थ
आज के बड़े बड़े डॉक्टर और मनोवैज्ञानिक भारत के ऋषि-मुनियों की ब्रह्मचर्य-विषयक विचारधारा का, उनकी खोज का समर्थन करते हैं । डॉ. ई. पेरियार का कहना है : “यह अत्यंत झूठा विचार है कि ‘पूर्ण ब्रह्मचर्य से हानि होती है ।’ नवयुवकों के शरीर, चरित्र और बुद्धि का रक्षक पूर्ण ब्रह्मचर्य ही है ।”
ब्रिटिश सम्राट के चिकित्सक सर जेम्स पेजन लिखते हैं कि : “ब्रह्मचर्य से शरीर और आत्मा को कोई हानि नहीं पहुँचती । अपने को नियंत्रण में रखना सबसे अच्छी बात है ।
आजकल के जो मनोचिकित्सक और यौन-विज्ञान के ज्ञाता समाज को अनैतिकता मुक्त साहचर्य (Free Sex) और अनियंत्रित विकारी सुख भोगने के उपदेश देते हैं, उनको डॉ. निकोलस की बात अवश्य समझनी चाहिए । डॉ. निकोलस कहते हैं कि : “वीर्य को पानी की भाँति बहानेवाले आजकल के अविवेकी युवकों के शरीर को भयंकर रोग्य इस प्रकार घेर लेते हैं कि डॉक्टर की शरण में जाने पर भी उनका उद्धार नहीं होता और अंत में बड़ी कठिन रोमांचकारी विपत्तियों का सामना करने के बाद असमय ही उन अभागों का महाविनाश हो जाता है ।”
वीर्य रक्षा से जितने लाभ होते हैं यह बताते हुए डॉ. मोलविस कीथ (एम.डी) कहते हैं : वीर्य तुम्हारी हड्डियों का सार, मस्तिष्क का भोजन, जोड़ों का तेल व श्वास का माधुर्य है । यदि तुम मनुष्य हो तो उसका एक बिंदु भी नष्ट मत करो जब तक कि तुम पूरे ३० वर्ष के न हो जाओ तभी भी केवल संतान उत्पन्न करने के लिए ही ! उस समय स्वर्ग के प्राणधारियों में से कोई दिव्यआत्मा तुम्हारे घर में आकर जन्म लेगी, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है ।
हमारे ऋषि-मुनियों ने तो हजारों-लाखों वर्ष पहले वीर्यरक्षा और संयम से दिव्य आत्माओं को अवतरित करने की बात बतायी है, लेकिन पाश्चात्य बुद्धिजीवियों से प्रभावित हमारे देश के शिक्षित लोग उन महापुरुषों के वचनों को मानते नहीं थे । अब पाश्चात्य चिकित्सकों की बात मानकर भी वे संयम के रास्ते चल पड़ेंगे तो हमें प्रसन्नता होगी । हिन्दू धर्मशास्त्रों के उपदेश को विधर्मी एवं नास्तिक लोग स्वीकार न करें यह संभव है पर अब जब कि उन्हीं बातों को विज्ञानी स्वीकार कर रहे हैं, तब सबको स्वीकार करना ही पड़ेगा और सीधे नहीं तो अनसीधे ढंग से भी उनको भारतीय संस्कृति की शरण में आना ही पड़ेगा । इसीमें उनका कल्याण निहित है ।
ब्रह्मचर्य से कितने लाभ होते हैं यह बताते हुए डॉ. मोंटेगाजा कहते हैं : “सभी मनुष्य विशेषकर नवयुवक ब्रह्मचर्य के लाभों का तत्काल अनुभव कर सकते हैं । इससे स्मृति की स्थिरता और धारणा एवं ग्रहण शक्ति बढ़ जाती है । बुद्धिशक्ति तीव्र हो जाती है, इच्छाशक्ति बलवती हो जाती है । सच्चारित्र्य से सभी अंगों में एक ऐसी शक्ति आ जाती है जिसकी विलासी लोग कल्पना भी नहीं कर सकते । ब्रह्मचर्य से हमें परिस्थितियों तक विशेष आनंददायक रंग में रंगी हुई प्रतीत हो सकती हैं । ब्रह्मचर्य अपने तेज-ओज से संसार के प्रत्येक पदार्थ को अलौकिक कर देता है और हमें कभी न समाप्त होनेवाले विशुद्ध एवं निर्मल आनंद की अवस्था में ले जाता है, ऐसा आनंद जो कभी नहीं घटता ।”