नारी-स्वातंत्र्य के विषय में कुछ मंतव्य
‘The flower of femininity blossoms only in the shade’
‘नारी एक ऐसा पुरुष है जो छाया (घर) में ही अपनी सुगंध फैलाता है ।’ – लेमेनिस
‘Flower with the loveliest perfume are delicately attractive’
‘श्रेष्ठ गंधवाला पुष्प लजीला और चित्ताकर्षक होता है ।’ – वेड्स वर्थ
जो चीज जितनी मूल्यवान तथा प्रिय होती है वह उतनी ही अधिक सावधानी, सम्मान और संरक्षण के साथ रक्खी जाती है । स्त्री-पुरुष के विषय-विलास की सामग्री नहीं है, बल्कि सम्पूर्ण गृहस्थ-धर्म में सहधर्मिणी है । विभिन्न पुरुषों की दृष्टि स्त्रियों पर न पड़े और उसके विपरीत स्त्रियों की दृष्टि पुरुषों पर न पड़े इसलिए स्त्रियों के लिए बाजारों में पुरुषलयों में न घूमकर घर में रहने का विधान है । यहाँ तक कहा गया है कि आहार, निद्रा के समय में भी पुरुष स्त्रियों को न देखे ।
नासनीयाद् भार्यया सार्द्ध नैनामीक्षेत चाश्नतीम् । – मनुस्मृति
‘स्त्री-पुरुष एकसाथ बैठकर भोजन न करें और स्त्री भोजन करती हो तो पुरुष उसे देखे भी नहीं ।’
आजकल सुधार के नाम पर स्त्रियों को साथ लेकर घूमने-फिरने की एवं होटलों में एक ही टेबल पर खाने-पीने की प्राथ बढ़ रही है । ऐसे स्त्री-पुरुषों को ईमानदारी के साथ अपने मनोदशा का अवलोकन करना चाहिये और भलीभांति सोच समझकर सबको ऐसी व्यवस्था करनी चाहिये, जिससे नारी के भूषण लज्जा की रक्षा हो और उसका पतिव्रत-धर्म अक्षुण्ण बना रहे । इसीसे स्त्रियों के लिए पुरुषलयों में, बाजारों में न घूमकर घर में रहने का विधान है ।
इसका मतलब यह नहीं कि नारी परम्परा की गुत्थियों में उलझ जाये, कपड़े-गहने बाल-बच्चों में उलझ जाय, आँख बंद करके संसार का बोझ ढोनेवाली गुड़िया बन जाय । नहीं, नारी को इस अंधकार की ओर ले जानेवाली पटरियों से बचना है । अपने भीतर के खजाने साधना के प्रकाश से खोजने हैं । मनुष्य जीवन मिला है तो अपने व्यवहारिक कर्तव्यों का पालन करते हुए परम कर्तव्य आत्मज्ञान की सिद्धि करनी है । उसमें पातिव्रत्य आवश्यक है । उसी नींव पर चरित्र का पूरा भवन खड़ा है । जो नारी उच्छृंखलता से बचकर अपने गौरव से गौरवान्वित हो जाती है, अपनी वास्तविक महिमा से महिमामयी हो जाती है उससे यह पृथ्वी भी पावन हो जाती है ।