क्रोध को स्वयं पर हावी क्यों होने देते हो ?
एक शिष्य ने अपने गुरु से कहा : “मैं बहुत जल्दी क्रोधित हो जाता हूँ, कृपया मुझे इससे छुटकारा दिलायें ।”
गुरु ने कहा : “ये तो बहुत विचित्र बात है ! मुझे क्रोधित होकर दिखाओ ।”
“अभी तो मैं नहीं हो सकता ।”
“क्यों ?”
“यह अचानक होता है ।”
” ऐसा है तो यह तुम्हारी प्रकृति नहीं है । यदि यह तुम्हारे स्वभाव का अंग होता तो तुम मुझे यह किसी भी समय दिखा सकते थे । तुम किसी ऐसी चीज को स्वयं पर हावी क्यों होने देते हो जो तुम्हारी है ही नहीं ?”
इस वार्तालाप के बाद शिष्य को जब कभी क्रोध आने लगता तो वह गुरु के शब्द याद करता । इस प्रकार उसने शांत और संयमित व्यवहार को अपना लिया ।
क्रोध दूर करने का एक सरल प्रयोग भी है, जो पूज्य बापूजी सत्संग में बताते भी हैं : “क्रोध आये तो मुठ्ठियाँ बंद कर लो । दोनों हाथों की मुट्ठियाँ ऐसे बंद करें कि नखों के दबाव से हथेलियाँ दबें इससे क्रोध दूर होने में मदद मिलेगी ।”