सत्संग करे सुख-दुःख से पार
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं :
सुख वा यदि वा दुःखं स योगी परमो मतः ।
सुखद अवस्था आये चाहे दुःखद अवस्था आये, जो सुख और दुःख से परे मुझ साक्षी में, मुझ आत्मा भें विश्रांति पा लेता है उस योगी की बुद्धि परम बुद्धि है । जो निगुरे लोग होते हैं, जिनकी अल्प मति होती है, जिनके पास सत्संग नहीं है, ऐसे लोग शरीर बीमार होता है तो मान लेते हैं कि ‘मैं बीमार हूँ’ और बीमारी गहरी होती जाती है । मन दुःखी होता है तो मानते हैं, ‘मैं दुःखी हूँ’ और दुःख गहरा हो जाता है । दुःख-सुख, बीमारी तो आकर चले जाते हैं लेकिल अपने में बीमारी, सुख और दुःख का अध्यारोप करनेवाले व्यक्ति मरने के बाद भी प्रेतात्मा होकर भटकते रहते हैं ।
वे लोग धनभागी हैं जिन्हें सत्संग मिलता है ! वे शरीर की बीमारी को अपनी बीमारी नहीं मानते । मन के दुःख को अपना दुःख नहीं मानते।जैसे ‘मैं गजरे को जानता हूँ तो मैं गजरा नहीं हूँ ।’ ऐसे ही ‘मैं दुःख को जानता हूँ तो मैं दुःखी नहीं हूँ । मैं बीमारी को जानता हूँ तो मैं बीमार नहीं हूँ । मैं उससे पृथक् हूँ । मैं चैतन्य हूँ, नित्य हूँ । बीमारी, दुःख आने- जानेवाले हैं । ॐ… ॐ… ॐ…’
एक घटित घटना है । जयदयाल कसेरा, कोलकाता में बड़े सेठ हो गये । वे समीक्षा कर रहे थे अपने चित्त की दशा की।एक दिन उनके यहाँ थानेदार का फोन आया; “आपके इकलौते लड़के का भयानक एक्सीडेंट हो गया है ।”
सेठ ने पूछा । “अच्छा ! चलो, जो हरि इच्छा।बेटा जिंदा है कि मर गया ?”
धानेवार चौंककर बोला : “आप पिता होकर इतने कठोर वचन बोल रहे हैं !”
“मैं इसलिए पूछ रहा हूँ कि लड़का मर गया हो तो हम उसकी श्मशान यात्रा की व्यवस्था करें और जिंदा हो तो इलाज की व्यवस्था करें ।”
“आप सचमुच के पिता हो या गोद लिया था लड़के को ?”
“थानेदार ! मैं सगा बाप हूँ इसीलिए उसकी अच्छी उन्नति हो ऐसा कर रहा हूँ । उसे चोट लगी हो और मैं अपने दिल को चोट पहुँचाकर उसका उपचार करवाऊँगा तो वह ठीक न होगा । यदि वह मर गया है और मैं रोता रहूँगा तो भी उसकी यात्रा ठीक नहीं होगी । अगर वह मर गया है तो मैं श्मशान यात्रा की तैयारी करूँ, मित्रों को फ़ोन करूँ और बुलवाऊँ । अगर जिंदा है तो उचित उपचार के लिए अच्छे चिकित्सालय में दाखिल करवाऊँ । इसमें रोने या दुःखी होने की क्या बात है ? उस परमात्मा को जो अच्छा लगता है वही तो वह करता है और शायद इसीमें मेरा और मेरे बच्चे का कल्याण होगा । वह मेरा मोह तोड़ना चाहता होगा और मेरे बेटे को अभी आगे की यात्रा करना बाकी रहा होगा तो मैं फरियाद करनेवाला कौन होता हूँ हे थानेदार !”
“’सेठजी ! आपके बेटे का अस्पताल आते- आते दम टूट गया है ।”
“चलो, अब कौन-से अस्पताल में है ?”
“सिविल अस्पताल ।”
“अच्छा, मैं पहुँचता हूँ ।”
वे पहुँचे और बेटे के मुँह में तुलसी के पत्ते डाले, तुलसी की माला पहना दी, तुलसी की कुछ सूखी लकड़ियाँ ले आये थे बेटे की चिता पर रखने के लिए, जिससे उसकी सद्गति सुनिश्चित हो ।
‘कहीं भी कोई मर जाय तो तुलसी की सूखी छोटी-छोटी लकड़ियाँ उसके अग्नि-संस्कार में उपयोग में लायी जायें तो उसको नीच योनी अथवा नारकीय यातनाएँ नहीं सहनी पड़ती ।’ – यह शास्त्र सिद्धांत सुन रखा था । उन्होंने बेटे के शव पर तुलसी मिश्रित जल छाँटा, जो क्छ शास्त्रीय विधि सत्संग में सुनी हुई थी, वह सब की । बेटे के जीवात्मा को सम्बोधित करते हुए बोले, “जैसे जल में बुलबुले पैदा हुए और जल में ही लीन…ऐसे ही पंचभौतिक शरीर पाँच भूतों में लीन… ! कोई मरता नहीं, तू जानता ही है । तू अमर है, चैतन्य है । आत्मा को तो परमात्मा भी नहीं मारते और शरीर को तो परमात्मा भी नहीं रख सकते ।’ फिर सेठजी कीर्तन करने लगे, “गोविंद हरे, गोपाल हरे, जय-जय प्रभु दीनदयाल हरे । सुखधाम हरे, आत्माराम हरे, जय-जय प्रभु दीनदयाल हरे…”
डॉक्टर दौड़ता हुआ आया, बोला : ”सेठजी ! यह क्या कर रहे हो ? यह अस्पताल है !”
सेठजी बोले : “अस्पताल है तो कोलकाता में है न ! रावण की लंका तो नहीं है, विदेश तो नहीं है ! रावण के समय लंका में भगवान का नाम लेना मना था, अभी तो वहाँ भी ले रहे हैं । भगवान के नाम का कीर्तन करेंगे तो उसके जीवात्मा की ऊँची गति होगी । गोविंद, गोपाल के धाम में जायेगा । और भी जो अस्पताल में मरकर भटक रहे हैं, दूसरों को अपनी जमात में खींचते हैं, उनकी भी सद्गति होगी । प्रेम से बोलो, ‘गोविंद हरे, गोपाल हरे, जय-जय प्रभु दीनदयाल हरे । सुखधाम हरे, आत्माराम हरे, जय-जय प्रभु दीनदयाल हरे । हरि ॐ… हरि ॐ…”
दुःखद घटना तो घटी है लेकिन दुःखद घटना को भी भक्तियोग, ज्ञानयोग बनाने की कला थी सेठ में । बेटे की सदगति हुई । हमारा परमात्मा कोई कंगाल थोड़े ही है जो हमें एक ही अवस्था में, एक ही शरीर में और एक ही परिस्थिति में रख दे । उसके पास तो ८४-८४ लाख चोले हैं अपने प्यारे बच्चों के लिए तथा करोड़ों-करोड़ों अवस्थाएँ भी हैं, जिनसे वह गुजारता-गुजारता अंत में हमको परमात्मस्वभाव में जागृत करता है ।