शशांकासन
क्या आप अपने जिद्दी और क्रोधी स्वभाव पर नियंत्रण पाना चाहते हैं ? अपनी निर्णयशक्ति बढ़ाना चाहते हैं? आज्ञाचक्र का विकास कर आप हर क्षेत्र में सफल होना चाहते हैं ? हाँ तो आप नित्य शशकासन का अभ्यास कीजिये।
लाभः
यह आसन कटि प्रदेश की मांसपेशियों के लिए अत्यंत लाभदायक है। इसके अभ्यास से सायटिका की तंत्रिका व एड्रिनल ग्रंथि के कार्य संतुलित होते हैं। आज्ञाचक्र का विकास होता है, निर्णयशक्ति बढ़ती है। जिद्दी व क्रोधी स्वभाव पर भी नियंत्रण होता है।
विधिः
प्रकार 1.
वज्रासन में बैठ जायें। श्वास लेते हुए बाजुओं को ऊपर उठायें व हाथों को नमस्कार की स्थिति में जोड़ दें। श्वास छोड़ते हुए धीरे-धीरे आगे झुककर मस्तक जमीन पर लगा दें। जोड़े हुए हाथों को शरीर के सामने जमीन पर रखें व सामान्य श्वास-प्रश्वास करें। धीरे-धीरे श्वास लेते हुए हाथ, सिर उठाते हुए मूल स्थिति में आ जायें।
प्रकार-2.
इसमें कमर के पीछे दाहिनी कलाई को बायें हाथ से पकड़ लें। अँगूठा अन्दर रखते हुए दाहिने हाथ की मुटठी बाँध लें। बाकी प्रक्रिया प्रकार 1 के अनुसार करें।
प्रकार-3.
इसमें दोनों हाथों की मुट्ठियाँ जंघामूल पर पेड़ू से सटाकर रखें। दोनों हाथों की कनिष्ठकाएँ जांघों पर तथा अँगूठा ऊपर रहे। बाकी प्रक्रिया प्रकार 1 के अनुसार करें।
नोटः
दोनों हाथों को जमीन पर फैलाकर भी यह आसन कर सकते हैं।
विशेषः
‘ॐ गं गणपतये नमः’ मंत्र का मानसिक जप व गुरुदेव, इष्टदेव की प्रार्थना-ध्यान करते हुए शरणागति भाव से इस स्थिति में पड़े रहने से भगवान और सदगुरु के चरणों में प्रीति बढ़ती है व जीवन उन्नत होता है। रोज सोने से पहले व सवेरे उठने के तुरंत बाद 5 से 10 मिनट तक ऐसा करें।