दुर्गादास की वीर जननी
सन् 1634 के फरवरी मास की घटना हैः जोधपुर नरेश का सेनापति आसकरण जैसलमेर जिले से गुजर रहा था । जेमल गाँव में उसने देखा कि गाँव के लोग डर के मारे भागदौड़ मचा रहे हैं और पुकार रहे हैं- ‘हाय कष्ट, हाय मुसीबत, बचाओ…. बचाओ….’
आसकरण ने सोचा कि ‘कहीं मुगलों ने गाँव को लूटना तो आरंभ नहीं कर दिया अथवा किसी की बहू-बेटी की इज्जत तो नहीं लूटी जा रही है?’ गाँव के लोगों की चीख-पुकार सुनकर आसकरण वहीं रुक गया ।
इतने में उसने देखा कि दो भैंसे आपस में लड़ रही हैं । उन भैंसों ने ही पूरे गाँव में भगदड़ मचा रखी है लेकिन किसी गाँव वाले की हिम्मत नही हो रही है कि पास में जाय । सारे लोग चीख रहे थे । मैंने देखी है भैंसों की लड़ाई, बड़ी भयंकर होती है ।
इतने में एक कन्या आयी । उसके सिर पर पानी के तीन घड़े थे । उस कन्या ने सब पर नजर डाली और तीनों घड़े नीचे उतार दिये । अपनी साड़ी का पल्लू कसकर बाँधा और जैसे शेर हाथी पर टूट पड़ता है ऐसे ही उन भैंसों पर टूट पड़ी । एक भैंस का सींग पकड़कर उसकी गरदन मरोड़ने लगी । भैंस उसके आगे रँभाने लगी लेकिन उसने भैंस को गिरा दिया । दूसरी भैंस पूँछ दबाकर भाग गयी ।
सेनापति आसकरण तो देखता ही रह गया कि इतनी कोमल और सुन्दर दिखने वाली कन्या में गजब की शक्ति है ! पूरे गाँव की रक्षा के लिए एक कन्या ने कमर कसी और लड़ती हुई भैंस को गिरा दिया । जरूर यह दुर्गा की उपासना करती होगी ।
उस कन्या की गजब की सूझबूझ और शक्ति देखकर सेनापति आसकरण ने उसके पिता से उसका हाथ माँग लिया । कन्या का पिता गरीब था और एक सेनापति हाथ माँग रहा है, पिता के लिए इससे बढ़कर खुशी की बात और क्या हो सकती थी ? पिता ने कन्यादान कर दिया । इसी कन्या ने आगे चलकर वीर दुर्गादास जैसे पुत्ररत्न को जन्म दिया ।
एक कन्या ने पूरे जेमल गाँव को सुरक्षित कर दिया । साथ ही हजारों बहू-बेटियों को यह सबक सिखा दिया कि भयजनक परिस्थितियों के आगे कभी घुटने न टेको । लुच्चे, लफंगों के आगे कभी घुटने न टेको । श्रेष्ठ, सदाचारी, संत-महात्मा से, भगवान और जगदंबा से अपनी शक्तियों को जगाने की योगविद्या सीख लो । अपनी छिपी हुई शक्तियों को जाग्रत करो एवं अपनी संतानों में भी वीरता, भगवद् भक्ति एवं ज्ञान के सुन्दर संस्कारों का सिंचन करके उन्हे देश का एक उत्तम नागरिक बनाओ ।
राजस्थान में तो आज भी बच्चों को लोरी गाकर सुनाते हैं-
सालवा जननी एहा पुत्त जण जे हा दुर्गादास ।
अपने बच्चों को साहसी, उद्यमी, धैर्यवान, बुद्धिमान और शक्तिशाली बनाने का प्रयास सभी माता-पिता को करना चाहिए । सभी शिक्षको एवं आचार्यों को भी बच्चों में संयम-सदाचार बढ़े तथा उनका स्वास्थ्य मजबूत बने इस हेतु आश्रम से प्रकाशित ‘युवाधन सुरक्षा’ एवं ‘योगासन’ पुस्तकों का पठन-पाठन करवाना चाहिए, ताकि भारत पुनः विश्वगुरु की पदवी पर आसीन हो सके ।