त्याग और साहस
प्रसिद्ध वैज्ञानिक श्री जगदीशचन्द्र बसु कलकत्ता में विज्ञान का गहन अध्ययन तथा शोधकार्य कर रहे थे, साथ ही एक महाविद्याल में पढ़ाते भी थे । उसी महाविद्यालय में कुछ अंग्रेज प्राध्यापक भी विज्ञान पढ़ाते थे । उनका पद तथा शैक्षणिक योग्यता श्री बसु के समान होते हुए भी उन्हें श्री बसु से अधिक वेतन दिया जाता था, क्योंकि वे अंग्रेज थे ।
अन्याय करना पाप है किंतु अन्याय सहना दुगना पाप है – महापुरुषों के इस सिद्धान्त को जानने वाले श्री बसु के लिए यह अन्याय असहनीय था । उन्होंने सरकार को इस विषय में पत्र लिखा परंतु सरकार ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया । श्री बसु ने इस अन्याय के विरोध में प्रति मास के वेतन का धनादेश (चेक) यह कहकर लौटाना आरम्भ किया कि जब तक उन्हें अंग्रेज प्राध्यापकों के समान वेतन नहीं दिया जायेगा, वे वेतन स्वीकार नहीं करेंगे ।
इससे घर में पैसे की तंगी होने लगी । अध्ययन और शोधकार्य बिना धन के हो नहीं सकते थे । श्री बसु चिंतित हुए और इस विषय में उन्होंने अपनी पत्नी से चर्चा की । इस पर उनकी पत्नी श्रीमती अबला बसु ने उन्हें अपने सब आभूषण दे दिये और कहाः “इनसे कुछ काम चल जायेगा । इसके अलावा, अगर हम लोग कलकत्ता के महँगे मकान को छोड़कर हुगली नदी के पार चंदन नगर में सस्ते मकान में रहें तो खर्च में काफी कमी आ जायेगी ।”
श्री बसु बोलेः “ठीक है, लेकिन हुगली को पार करके प्रतिदिन कलकत्ता कैसे पहुँचूँगा ?” श्रीमती बसु ने सुझाव दियाः “हम लोग अपनी पुरानी नाव की मरम्मत करा लेते हैं । उसमें आप प्रतिदिन आया-जाया करें ।” इस पर श्री बसु ने कहाः “मैं यदि प्रतिदिन नाव लेकर आऊँगा-जाऊँगा तो इतना थक जाऊँगा कि फिर न छात्रों को पढ़ा सकूँगा, न शोधकार्य कर सकूँगा ।” परंतु श्रीमती बसु हार मानने वाली नहीं थीं । वे बोलीं- “ठीक है, आप नाव मत खेना । मैं प्रतिदिन नाव खेकर आपको लाया और ले जाया करूँगी ।”
उस साहसी, दृढ़निश्चयी महिला ने ऐसा ही किया । इसी कारण श्री जगदीशचन्द्र बसु अपना अध्ययन और शोधकार्य जारी रख सके और एक विश्वविख्यात वैज्ञानिक बन सके । अंततः अंग्रेज सरकार झुकी और श्री बसु को अंग्रेज प्राध्यापकों के समान वेतन मिलने लगा ।
संत श्री भोले बाबा ने कार्य-साफल्य की कुंजी बताते हुए कहा ही हैः
जो जो करे तु कार्य कर, सब शांत होकर धैर्य से ।
उत्साह से अनुराग से, मन शुद्ध से बल-वीर्य से । ।
पति-पत्नी में आपस में कितना सामंजस्य, एक दूसरे के लिए कितना त्याग, सहयोग होना चाहिए तथा जीवन की हर समस्या से साथ मिलकर जूझने की कैसी भावना होनी चाहिए इसका एक उत्तम उदाहरण पेश किया श्रीमती बसु ने । उनका नाम भले अबला था किंतु उन्होंने अपने आचरण से यह सिद्ध कर दिखाया कि किसी भी स्त्री को अपने-आपको अबला नहीं मानना चाहिए, अपितु धैर्य से हर कठिनाई का सामना करके यह सिद्ध कर दिखाना चाहिए कि वह सबला है, समर्थ है ।
विश्वनियंता आत्मा-परमात्मा सबका रक्षक-पोषक है, सर्वसमर्थ है । ૐ…..ૐ…. दुर्बलता और जुल्म का तथा दुर्बल-विचारों और व्यर्थ की सहिष्णुता का त्याग करें । सबल, सुयोग्य बनें और अपने सहज-सुलभ आत्मा-परमात्मा के बल को पायें ।