जब सास बन गयी माँ
एक बुढ़िया का स्वभाव था कि जब तक वह किसी से लड़ न लेती, उसे भोजन नहीं पचता था । बहू घर में आयी तो बुढ़िया ने सोचा, ʹअब घर में ही लड़ लो, बाहर किसलिए जाना ?ʹ अब वह बात-बात पर बहू को जली-कटी सुनातीः “तुम्हारे बाप ने तुम्हें क्या सिखाया है ? माँ ने क्या यही शिक्षा दी है ? अरी, बोलती क्यों नहीं ? तेरे मुँह में जीभ नहीं है क्या ?”
बहू चुप साधे सुनती रहती और मुस्करा देती । पड़ोसी सुनकर सोचतेः ʹयह कैसी सास है !ʹ
बहू को चुप देख के सास कहतीः “अरी ! धरती पर पाँव पटकें तो भी धप की आवाज आती है और मैं इतना बोलती हूँ फिर भी तू चुप रहती है ?”
यह सब देखकर एक पड़ोसिन बोलीः “बुढ़िया ! लड़ने का इतना ही चाव है तो हमसे लड़ ले, तेरी इच्छा पूरी हो जायेगी । इस बेचारी गाय को क्यों सताती है ?”
तभी बहू ने पड़ोसिन को नम्रतापूर्वक कहाः “इन्हें कुछ मत कहो मौसी ! ये तो मेरी माँ हैं । माँ बेटी को नहीं समझायेगी तो और कौन समझायेगा ?”
सास ने यह बात सुनी तो पानी-पानी हो गयी । उस दिन से बहू को उसने अपनी बेटी मान लिया और झगड़ा करना छोड़कर प्रेम से रहने लगी ।
यह बहू की सहनशक्ति, सास के प्रति सदभाव और मातृत्व की भावना का ही कमाल था कि उसने सास का स्वभाव बदल दिया ।
सास-बहू के जोड़े में चाहे सास का स्वभाव थोड़ा ऐसा-वैसा हो चाहे बहू का, परंतु दूसरा पक्ष थोड़ा सूझबूझवाला, स्नेही हो तो समय पाकर उसका स्वभाव अवश्य बदल जाता है और घर का वातावरण मंगलमय हो जाता है ।
हे भारत की माताओ-बहनो-देवियो ! आप अपने और परिवार के सदस्यों की जीवन-वाटिका को सुंदर-सुंदर सदगुणोंरूपी फूलों से महका सकती हो । आपमें ऐसा सामर्थ्य है कि आप चाहो तो घर को नंदनवन बना सकती हो और उन्नति में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती हो ।
यदि सास-बहू में अनबन रहती हो तो सास और बहू का प्यार दर्शाती हुई तस्वीर घर में दक्षिण व पश्चिम दिशा के मध्य के कोने में लगा दें । धीरे-धीरे सास और बहू में प्यार बढ़ता जायेगा ।