आरोग्य के मूलभूत सिद्धांत
दिवाशयन निशि जागरण, विषमाहार विहार ।
वेगावेग निरुद्धि से, बने रोग आधार ॥
पीवे अंजलि अष्ट जल, सूर्योदय के पूर्व ।
वात पित्त होवे शमन, उपजे शक्ति अपूर्व ॥
ग्रीष्म वात संचय करे, वर्षा पित्तज स्राव ।
कफ संचय हेमंत ऋतु, ऐसा प्रकृति स्वभाव ॥
सहज नियम संयम रहे, सहज रहे मन-प्राण ।
स्वरस रसायन ग्रहण का, जब तक करे विधान ॥
आत्मचिंतन सब दुःख हरे, हर्षे तन-मन-प्राण ।
रोगशांति के हित सदा, धरे इष्ट का ध्यान ॥
सत्य-वृत्ति पालन करे, साधे तन-मन-प्राण ।
यह विधान आरोग्य का, सकल जीव जग जान ।।