सद्गुरु-स्तुति
हे सदगुरु तुम परम हितैषी, तुमसे ही कल्याण हमारा |
तुम्हें न पाकर व्यर्थ चला जाता, मानव का जीवन सारा |
परम सत्य, हे नित्य युक्त, हे शुद्ध बुद्ध, हे मुक्त महात्मन् |
मन दे पाये जो तुमको ही, उसका सफल हुआ मानव तन |
देव तुम्हारे दर्शन करके, लग जाता तुममें जिसका मन ।
तुम्हें छोड़कर कहीं न जाता, तुम्हीं दिखते हो प्रियतम धन |
बुद्धियोग जब तुम देते हो, तब होता है जीवन-दर्शन ।
ज्ञानदृष्टि तुमसे ही खुलती, तभी सुलभ होते आनंदघन |
कितनों ने ही सीख लिया, मरकर जीने का मंत्र तुम्हारा ॥ है सदगुरु तुम…
नित्य अनेकों मुरझाये मुख, खिलते देखा तुमको पाकर ।
सदा पीड़ितों की पुकार पर, रहे दौड़ते कष्ट उठाकर |
जो न कहीं सुख देख मिला वह, देखा श्रीचरणों में आकर |
जो न कभी हो सका वही, हो गया तुम्हारा ध्यान लगाकर |
अभय कर दिया उसको जिसने, कभी हृदय से तुम्हें पुकारा ॥ हे सद्गुरु तुम…
तुमको मैंने दीनों-दलितों की, कुटिया में जाते देखा ।
अपनी दिव्य शक्ति से उनके, भीषण कष्ट मिटाते देखा ।
कहीं अश्रु से गीली पलकें, स्वामिन् तुम्हें सुखाते देखा ।
जो कि तुम्हें करना था उसमें, कभी न देर लगाते देखा |
तुमने उसकी सुनी दयामय, जिसको सबने ही दुत्कारा ॥ हे सदगुरु तुम….
हे सद्गुरु तुम परम् हितैषी, तुमसे ही कल्याण हमारा |
तुम्हें न पाकर व्यर्थ चला जाता, मानव का जीवन सार ||
सदा सहज निष्काम भाव से, तुमने पर उपकार किया है |
तुमने सदा बिना कुछ चाहे, प्राणिमात्र को प्यार किया है |
संघर्षातीत तुम्हींने षट् रिपु का संहार किया है |
शरणागत को मोह सलिल में, धँसते-धँसते पार किया है |
दुस्तर मायाग्रस्त जीव को नाथ, तुम्हींसे मिला किनारा || हे सद्गुरु तुम….
हे अभेद दृष्टा ! मंगलमय, शोक विनाशक हे विज्ञानी !
हे दुःख भंजन, जन मन रंजन, नित्य सखा श्रद्धेय आमानी |
अतुलित प्राण शक्ति से पूरित, गुण मंदिर है अदभुत दानी !
तुमसे ज्ञान ज्योत पाते हैं हम, जग में तमवेष्टीत प्राणी |
सदा अशक़्त बद्ध पीड़ित को, दिया तुम्हींने शक्ति सहारा ||
हे सद्गुरु तुम वितराग है परम तपस्वी ! नित्य समहीत चित्त धीर तुम |
शिव सुंदर सत्य के समिश्रण, हरते भव की विषम पीर तुम |
पावन तप के ओज तेज से, दीप्तीमान निर्दोष वीर तुम |
हे संदर्शक परम तत्व के, चलते तम का ह्रदय चीर तुम |
पथिक हृदय को तुमसे मिलती, दिव्य प्रेम की अविरल धारा || हे सद्गुरु तुम……
– संत पथिकजी महाराज