विजातीय परिचय की मर्यादा
व्यवहारिक क्षेत्र में स्त्री-पुरुष के बीच संपर्क केवल आवश्कता के मुताबिक ही होना चाहिये । साधारण स्तर पर स्त्री के लिए पुरुष के शरीर को और पुरुष के लिए स्त्री के शरीर को स्पर्श करना बिल्कुल जोखम है । विजातीय स्पर्श में हमेशा विकार की संभावना बनी रहती है ।
स्त्री-पुरुष को आपस में सम्मान रखना आवश्यक है क्योंकि व्यवहारिक और सामाजिक जीवन परस्पर प्रेम से भरे सहयोग पर ही निर्भर है । परंतु पति-पत्नी के संबंध के सिवा शारीरिक व बौद्धिक रूप से भी स्त्री-पुरुष का परिचय बिकुल ही निषिद्ध है । फिर भी जब अपने या दूसरे के प्राणों की आपत्ति का प्रसंग खड़ा हो जाय तो परस्पर बोलकर या छूकर प्राणों की रक्षा की जानी चाहिये । हिन्दू शास्त्र ऐसे प्रसंग के सिवाय स्त्री-पुरुष के मिलने को नितांत मलिन एवं दोषपूर्ण कहता है ।
धृतकुम्भसभा नारी तप्तांगारसम: पुमान् ।
तस्माद् धृतं च वहिं च नैकत्र स्थापयेद् बुध: ।।
माता स्वस्रा दुहित्रा वा न विविक्तासनो भवेत् ।
बलवानिन्द्रियग्रामो विद्रांसमपि कर्षति ।।
‘नारी धृत के घड़े के समान है और पुरुष जलती हुई आग के समान है इसलिये बुद्धिवान पुरुष जैसे आग बढ़ जाने के भय से घी और आग को एक साथ नहीं रखते, वैसे ही नारी और पुरुष को साथ नहीं रखना चाहिये । यहाँ तक कि माँ, बहन और पुत्री के साथ भी एकांत में न बैठें । इन्द्रियाँ बड़ी बलवती हैं । वे विद्वान को भी खींच लेती हैं ।