शील मिटा तो देश मिट जाएगा
– संत विनोबा भावे
भारत में नारी का बहुत ऊँचा आदर है उसे हमारे यहाँ ‘महिला’ कहते हैं । मुझे दुनिया की 20-25 भाषाओं का ज्ञान है परन्तु नारी के लिए इतना उन्नत शब्द उनमें से किसी भी भाषा में नहीं है । इस शब्द से ही व्यक्त होता है कि नारी के बारे में भारत के क्या विचार हैं और उससे क्या अपेक्षाएँ हैं । परंतु नारी का इतना गौरव होते हुए भी आज नारी की तरफ देखते हैं कामिनी के तौर पर । वह काम-पूर्ति का साधन मानी जाती है । यह मातृशक्ति का सबसे ज्यादा अपमान है । इसलिए नारी शक्ति को यदि बढ़ाना है तो काम-वासना प्रेरक जो-जो चीजें हैं, उन पर प्रथम प्रहार करना होगा । इस समय भारत में चरित्र-भ्रंश का भयंकर आयोजन हो रहा है । उसका विरोध और प्रतिकार यदि बहनें नहीं करेंगी तो फिर ‘परमेश्वर ही भारत को बचाए’ । यही कहने की नौबत आएगी ।
माताओं को समझना चाहिए कि अगर देश का आधार शील पर नहीं रहा तो देश टिक नहीं सकता । शिवाजी महाराज की सुप्रसिद्ध कहानी है कि उनके एक सरदार ने एक लड़ाई जीति और वे एक यवन महिला को शिवाजी के पास ले आये । शिवाजी महाराज ने उसकी तरफ देखकर कहा: “माँ अगर मेरी माता तुझ-जैसी सुंदर होती तो मैं भी सुंदर बनता ।” ऐसा कहकर उन्होंने उसे आदरपूर्वक विदा किया । ऐसी संस्कृति जिस देश में रही, उस देश में ऐसा चारित्र्य-भ्रंश हो और सारे लोग उसे देखते रहें । यह कैसे हो सकता है ?
शील और शांति तथा संस्कृति और सभ्यता की रक्षा का कार्य बहनों का भी है ।
आज मातृत्व पर खुलेआम इतना प्रहार होता रहे और हम सब प्रत्यक्ष उसे सहन करते रहें ? मैं नहीं मानता कि इससे प्रगति की राह खुलेगी । केवल भौतिक उन्नति से देश ऊँचा नहीं उठता, जब शील-संयम ऊँचा उठता है तभी देश उन्नति करता है । इसलिए मैं बहनों से कहता हूँ कि, अब देश की शील रक्षा उनके हाथ में है ।