रतनबाई की गुरुभक्ति
गुजरात के सौराष्ट्र प्रान्त में नरसिंह मेहता नाम के एक उच्चकोटि के महापुरुष हो गये । वे जब भजन गाते तो श्रोतागण भक्तिभाव से सराबोर हो उठते थे ।
दो लड़कियाँ नरसिंह मेहता की बड़ी भक्तिन थीं । लोगों ने अफवाह फैला दी की उन दो कुंवारी युवतियों के साथ नरसिंह मेहता का कुछ गलत सम्बन्ध है । अफवाह बड़ी तेजी से फैल गयी ।
कलियुग में बुरी बात फैलाना बड़ा आसान है । जिसके अन्दर बुराइयाँ हैं वह आदमी दूसरों की बुरी बात जल्दी से मान लेता है ।
उन लड़कियों के पिता और भाई भी ऐसे ही थे । उन्होंने लड़कियों की खूब पिटाई की और कहाः “तुम लोगों ने तो हमारी इज्जत खराब कर दी । हम बाजार से गुजरते हैं तो लोग बोलते हैं कि इन्हीं की दो लड़कियाँ हैं, जिनके साथ नरसिंह मेहता का….”
खूब मार-पीटकर उन दोनों को कमरे में बन्द कर दिया और अलीगढ़ के बड़े-बड़े ताले लगा दिये । फिर चाबी अपनी जेब में डालकर दोनों चल दिये कि ‘देखें’, आज कथा में क्या होता है ।’
उन दोनों लड़कियों में से एक रतनबाई रोज सत्संग-कीर्तन के दौरान अपने हाथों से पानी का गिलास भरकर भाव भरे भजन गाने वाले नरसिंह मेहता के होठों तक ले जाती थी । लोगों ने रतनबाई का भाव एवं नरसिंह मेहता की भक्ति नहीं देखी, बल्कि पानी पिलाने की बाह्य क्रिया को देखकर उलटा अर्थ लगा लिया ।
सरपंच ने घोषित कर दियाः “आज से नरसिंह मेहता गाँव के चौराहे पर ही सत्संग-कीर्तन करेंगे, घर पर नहीं ।”
नरसिंह मेहता ने चौराहे पर सत्संग-कीर्तन किया । विवादित बात छिड़ने के कारण भीड़ बढ़ गयी थी । कीर्तन करते-करते रात्री के 12 बज गये । नरसिंह मेहता रोज इसी समय पानी पीते थे, अतः उन्हें प्यास लगी ।
इधर रतनबाई को भी याद आया कि ‘गुरुजी को प्यास लगी होगी । कौन पानी पिलायेगा?’ रतनबाई ने बंद कमरे में ही मटके में से प्याला भरकर, भावपूर्ण हृदय से आँखें बंद करके मन-ही-मन प्याला गुरुजी के होठों पर लगाया ।
जहाँ नरसिंह मेहता कीर्तन-सत्संग कर रहे थे, वहाँ लोगों को रतनबाई पानी पिलाती हुई नजर आयी । लड़की का बाप एवं भाई दोनों आश्चर्यचकित हो उठे कि ‘रतनबाई इधर कैसे?’
वास्तव में तो रतनबाई अपने कमरे में ही थी । पानी का प्याला भरकर भावना से पिला रही थी, लेकिन उसकी भाव की एकाकारता इतनी सघन हो गयी कि वह चौराहे के बीच लोगों को दिखी ।
अतः मानना पड़ता है कि जहाँ आदमी का मन अत्यंत एकाकार हो जाता है, उसका शरीर दूसरी जगह होते हुए भी वहाँ दिख जाता है ।
रतनबाई के बाप ने पुत्र से पूछाः “रतन इधर कैसे?”
रतनबाई के भाई ने कहाः “पिताजी ! चाबी तो मेरी जेब में है !”
दोनों भागे घर की ओर । ताला खोलकर देखा तो रतनबाई कमरे के अंदर ही है और उसके हाथ में प्याला है । रतनबाई पानी पिलाने की मुद्रा में है । दोनों आश्चर्यचकित हो उठे कि यह कैसे !
संत एवं समाज के बीच सदा से ही ऐसा ही चलता आया है । कुछ असामाजिक तत्त्व संत एवं संत के प्यारों को बदनाम करने की कोई भी कसर बाकी नहीं रखते । किंतु संतों-महापुरुषों के सच्चे भक्त उन सब बदनामियों की परवाह नहीं करते, वरन् वे तो लगे ही रहते हैं संतों के दैवी कार्यों में ।
ठीक ही कहा हैः
इल्जाम लगानेवालों ने इल्जाम लगाये लाख मगर ।
तेरी सौगात समझकर के हम सिर पे उठाये जाते हैं । ।