कैसा हो अपना हस्तलेखन ?
कहते हैं, अपना हस्तलेखन अंतर्मन का दर्पण होता है । उसे सुंदर बनाने के लिए लेखन के नियमों का पालन जरूरी है और यह अभ्यास कुछ अंश में मन को भी अनुशासित करता है । विद्यार्थी जीवन में तो सुंदर हस्तलेखन की विशेष महिमा है । सुंदर, सुवाच्य हस्तलेखन वाले विद्यार्थी प्रायः पढ़ाई में भी अव्वल पाए जाते हैं । इस विषय में महात्मा गांधी के विचार विद्यार्थियों के लिए अवश्य पठनीय हैं । वे कहते हैं कि शिक्षा, मन एवं लेखन का एक सुंदर समन्वय होता है ।
आत्मविद्या देनेवाले संत विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास का कितना ध्यान रखते हैं इसका सुंदर उदहारण मिलता है दासबोध ग्रंथ में । ब्रह्मविद्या का निरूपण करनेवाले यह सद्ग्रंथ विद्यार्थियों के लिए उपयोगी लेखन–कला का वर्णन भी कितने सरल शब्दों में करते हैं आप ही देखिए :
‘लिखनेवाले को देवनागरी लिपि के अक्षर–लेखन का अभ्यास करके अपना हस्तलेखन ऐसा सुंदर बनाना चाहिए कि जिसे देखते ही बुद्धिमान लोग संतुष्ट हो जाएँ । अक्षर गोलाकार, सीधे और समान दूरी पर लिखे हुए होने चाहिए । अक्षरों की पंक्ति ऐसी सुंदर, सुस्पष्ट होनी चाहिए कि जैसे मोतियों की माला हो । सभी अक्षर एक समान और एक ही शैली से लिखे हुए हों । यहाँ तक कि आड़ी मात्रा, खड़ी मात्रा, रेफ, इकार आदि भी ठीक से दिए हुए हों । (किसी लेख या) ग्रंथ को आरंभ करते समय शुरुआत में जैसा अक्षर हो वैसा ही अक्षर समापन तक होना चाहिए । नौनिहालों को चाहिए कि वे अपने अक्षर सावधानीपूर्वक, इतने सुन्दर लिखें कि उन्हें देखकर लोग भी मोहित हो जाएँ । ‘
(दासबोध : दशक १९वां, पहला समास)