ब्रह्मवादिनी रोमशा
रोमशा बृहस्पतिजी की पुत्री थीं और भावभव्य की धर्मपत्नी । इन्होंने ऋग्वेद संहिता के प्रथम मण्डल के १२६ वें सूक्त की सात ऋचाओं का संकलन किया है । कहते हैं कि इनके सारे शरीर में रोमावली थी, इससे इनके पति इन्हें नहीं चाहते थे ।
यह भी कहते हैं कि जिन-जिन बातों से स्त्रियों की बुद्धि का विकास होता है, उन्हींका प्रचार करती थीं; इसलिये ये रोमशा नाम से प्रसिद्ध हुईं । वेद और शास्त्रों की अनेक शाखाएँ ही इनके शरीर के रोम हैं और वे इसका प्रचार करतीं थीं, इसी से रोमशा कहलायीं ।