ब्रह्मचर्य-पालन के नियम
ऋषियों का कथन है की ब्रह्मचर्य ब्रह्म-परमात्मा के दर्शन का द्वार है, उसका पालन करना अत्यंत आवश्यक है । इसलिए यहाँ हम ब्रह्मचर्य-पालन के कुछ सरल नियमों एवं उपायों की चर्चा करेंगे :
ब्रह्मचर्य तन से अधिक मन पर आधारित है । इसलिए मन को नियंत्रण में रखें और अपने सामने ऊँचा आदर्श रखें ।
- आँख और कान मन के मुख्यमंत्री हैं । इसलिए गंदे चित्र व भद्दे दृश्य देखने तथा अभद्र बातें सुनने से सावधानीपूर्वक बचें ।
- मन को सदैव कुछ-न-कुछ चाहिए अवकाश में मन प्रायः मलिन हो जाता है । अतः शुभ कर्म करने में तत्पर रहें व भगवन्नाम जप में लगें रहें ।
- ‘जैसे खाये अन्न, वैसा बने मन ।’ – यह कहावत एकदम सत्य है । गरम मसाले, चटनियाँ, अधिक गरम मसाले तथा मांस, मछली, अंडे, चाय, कॉफ़ी, फास्टफ़ूड आदि का सेवन बिल्कुल न करें।
- भोजन हलका व चिकना (स्निग्ध) हो । रात का खाना सोने से कम-से-कम दो घंटे पहले खायें ।
- दूध भी एक प्रकार का भोजन है । भोजन और दूध के बीच में तीन घंटे का अंतर होना चाहिए ।
- वेश का प्रभाव तन तथा मन दोनों पर पड़ता है । इसलिए सादे, साफ और सूती वस्त्र पहनें । खादी के वस्त्र पहने तो और भी अच्छा है । सिंथेटिक वस्त्र न पहने । खादी, सूती, ऊनी वस्त्रों से जीवनशक्ति की रक्षा होती है व सिंथेटिक आदि अन्य प्रकार के वस्त्रों से उसका ह्रास होता है ।
- लँगोटी बाँधना अत्यंत लाभदायक है । सीधे, रीढ़ के सहारे तो कभी न सोयें, हमेशा करवट लेकर ही सोयें।यदि चारपाई पर सोते हैं तो वह सख्त होनी चाहिए ।
- प्रातः जल्दी उठें । प्रभात में कदापि न सोयें।वीर्यपात प्रायः रात के अंतिम प्रहर में होता है ।
- पान मसाला, गुटखा, सिगरेट, शराब, चरस, अफीम, भाँग आदि सभी मादक (नशीली) चीजें धातु क्षीण करती हैं । इनसे दूर रहें ।
- लसीली (चिपचिपी) चीजें जैसे – भिंडी, लसोड़े आदि खानी चाहिए । ग्रीष्म ऋतु में ब्राह्मी बूटी का सेवन लाभदायक है । भीगे हुए बेदाने और मिश्री के शरबत के साथ इसबगोल लेना हितकारी है ।
- कटिस्नान करना चाहिए ठंडे पानी से भरे पीपे में शरीर का बीच का भाग पेटसहित डालकर तौलिया से पेट को रगड़ना एक आजमायी हुई चिकित्सा है । इस प्रकार १५-२० मिनट बैठना चाहिए । आवश्यकतानुसार सप्ताह में एक-दो बार ऐसा करें तो अच्छा ।
- प्रतिदिन रात को सोने से पहले ठंडा पानी पेटपर डालना बहुत लाभदायक है ।
- बदहजमी व कब्ज से अपनेको बचाना आवश्यक है ।
- सेंट, लवेंडर, परफ्यूम आदि से दूर रहें । इंद्रियों को भड़कानेवाली किताबें न पढ़ें, न ही ऐसी फिल्में और नाटक देखें ।
- विवाहित हो तो भी अलग बिस्तर पर सोयें ।
- हररोज प्रातः और सायं व्यायाम, आसन तथा प्राणायाम करने का नियम रखें ।
वीर्यरक्षण हेतु उपाय –
वीर्यवर्धक गुटिका
• तुलसी के बीजों के चूर्ण में समान मात्रा में गुड़ मिलाकर छोटे बेर जैसी गोलियाँ बना लें । सुबह- शाम एक- एक गोली लेकर ऊपर से गाय का दूध पीने से (इस तरह चार मास लेने से) नपुंसकता दूर होती है, वीर्य बढ़ता है, नसों में शक्ति आती है, पाचनशक्ति सुधरती है और कैसा भी निराश हुआ पुरुष पुनः सशक्त होता है । इस प्रयोग के साथ ‘दिव्य प्रेरणा प्रकाश’ (संत श्री आसारामजी आश्रम, साबरमती, अहमदाबाद- ५ द्वारा प्रकाशित) पुस्तक का अध्ययन करना आवश्यक है ।
• आँवला चूर्ण 80 भाग और हल्दी चूर्ण 20 भाग मिलाकर रात को सोते समय पानी के साथ लेना भी हितावह है । (आँवला चूर्ण लेने के 2 घंटे पूर्व व पश्चात् दूध न लें ।)