क्यों करें सूर्य नमस्कार
हमारे ऋषियों ने मंत्र और व्यायामसहित एक ऐसी प्रणाली विकसित की है जिसमें सूर्योपासना का समन्वय हो जाता है। इसे सूर्यनमस्कार कहते हैं। इसमें कुल 10 आसनों का समावेश है। हमारी शारीरिक शक्ति की उत्पत्ति, स्थिति एव वृद्धि सूर्य पर आधारित है। जो लोग सूर्यस्नान करते हैं, सूर्योपासना करते हैं वे सदैव स्वस्थ रहते हैं। सूर्यनमस्कार से शरीर की रक्तसंचरण प्रणाली, श्वास-प्रश्वास की कार्यप्रणाली और पाचन-प्रणाली आदि पर असरकारक प्रभाव पड़ता है। यह अनेक प्रकार के रोगों के कारणों को दूर करने में मदद करता है। सूर्यनमस्कार के नियमित अभ्यास के शारीरिक एवं मानसिक स्फूर्ति के साथ विचारशक्ति और स्मरणशक्ति तीव्र होती है।
आज पश्चिमी देशों में भी भारतीय सनातन संस्कृति के अनुरूप सूर्योपासना का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है, कई पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने अपनी शोधों से सूर्य की महिमा को समग्र विश्व के सामने उजागर किया है । पश्चिमी वैज्ञानिक गार्डनर रॉनी ने कहाः सूर्य श्रैष्ठ औषध है। उससे सर्दी, खाँसी, न्युमोनिया और कोढ़ जैसे रोग भी दूर हो जाते हैं। डॉक्टर सोले ने कहाः सूर्य में जितनी रोगनाशक शक्ति है उतनी संसार की अन्य किसी चीज़ में नहीं।
विधि – प्रातःकाल शौच स्नानादि से निवृत होकर कंबल या टाट (कंतान) का आसन बिछाकर पूर्वाभिमुख खड़े हो जायें। चित्र के अनुसार सिद्ध स्थिति में हाथ जोड़ कर, आँखें बन्द करके, हृदय में भक्तिभाव भरकर भगवान आदिनारायण का ध्यान करें-
ध्येयः सदा सवितृमण्डलमध्यवर्ती नारायणः सरसिजासनसन्निविष्टः।
केयूरवान् मकरकुण्डलवान् किरीटी हारी हिरण्मयवपर्धृतशंखचक्रः।।
सवितृमण्डल के भीतर रहने वाले, पद्मासन में बैठे हुए, केयूर, मकर कुण्डल किरीटधारी तथा हार पहने हुए, शंख-चक्रधारी, स्वर्ण के सदृश देदीप्यमान शरीर वाले भगवान नारायण का सदा ध्यान करना चाहिए। – (आदित्य हृदयः 938)
आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर। दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोsस्तु ते।।
हे आदिदेव सूर्यनारायण! मैं आपको नमस्कार करता हूँ। हे प्रकाश प्रदान करने वाले देव! आप मुझ पर प्रसन्न हों। हे दिवाकर देव! मैं आपको नमस्कार करता हूँ। हे तेजोमय देव! आपको मेरा नमस्कार है।
यह प्रार्थना करने के बाद सूर्य के तेरह मंत्रों में से प्रथम मंत्र ॐ मित्राय नमः। के स्पष्ट उच्चारण के साथ हाथ जोड़ कर, सिर झुका कर सूर्य को नमस्कार करें। फिर चित्रों के निर्दिष्ट 10 स्थितियों का क्रमशः आवर्तन करें। यह एक सूर्य नमस्कार हुआ।
इस मंत्र द्वारा प्रार्थना करने के बाद निम्नांकित मंत्र में से एक-एक मंत्र का स्पष्ट उच्चारण करते हुए सूर्यनमस्कार की दसों स्थितियों का क्रमबद्ध अनुसरण करें।
1. ॐ मित्राय नमः।
2. ॐ रवये नमः।
3. ॐ सूर्याय नमः।
4. ॐ भानवे नमः।
5. ॐ खगाय नमः।
6. ॐ पूष्णे नमः।
7. ॐ हिरण्यगर्भाय नमः।
8. ॐ मरीचये नमः।
9. ॐ आदित्याय नमः।
10. ॐ सवित्रे नमः।
11. ॐ अकीय नमः।
12. ॐ भास्कराय नमः।
13. ॐ श्रीसवितृ-सूर्यनारायणाय नमः।
सिद्ध स्थितिः
दोनों पैरों की एडियों और अंगूठे परस्पर लगे हुए,संपूर्ण शरीर तना हुआ, दृष्टि नासिकाग्र, दोनोंहथेलियाँ नमस्कार की मुद्रा में, अंगूठे सीने से लगे हुए।
पहली स्थिति – नमस्कार की स्थिति में ही दोनों भुजाएँ सिर के ऊपर, हाथ सीधे, कोहनियाँ तनी हुईं, सिर और कमर से ऊपर का शरीर पीछे की झुका हुआ, दृष्टि करमूल में, पैर सीधे, घुटने तने हुए, इस स्थिति में आते हुए श्वास भीतर भरें।
दूसरी स्थितिः हाथ को कोहनियों से न मोड़ते हुए सामने से नीचे की ओर झुकें, दोनों हाथ-पैर सीधे, दोनों घुटने और कोहनियाँ तनी हुईं, दोनों हथेलियाँ दोनों पैरों के पास जमीन के पास लगी हुईं, ललाट घुटनों से लगा हुआ, ठोड़ी उरोस्थि से लगी हुई, इस स्थिति में श्वास को बाहर छोड़ें ।
तीसरी स्थितिः बायाँ पैर पीछे, उसका पंजा और घुटना धरतीसे लगा हुआ, दायाँ घुटना मुड़ा हुआ, दोनों हथेलियाँ पूर्ववत्, भुजाएँ सीधी-कोहनियाँ तनी हुईं, कन्धे और मस्तक पीछे खींचेहुए, दृष्टि ऊपर, बाएँ पैर को पीछे ले जाते समय श्वास को भीतर खींचे।
चौथी स्थितिः दाहिना पैर पीछे लेकर बाएँ पैर के पास, दोनों हाथपैर सीधे, एड़ियाँ जमीन से लगी हुईं, दोनों घुटने और कोहनियाँ तनी हुईं, कमर ऊपर उठी हुई, सिर घुटनों की ओर खींचा हुआ, ठोड़ी छाती से लगी हुई, कटि और कलाईयाँ इनमें त्रिकोण, दृष्टि घुटनों की ओर, कमर को ऊपर उठाते समय श्वास को छोड़ें।
पाँचवीं स्थितिः साष्टांग नमस्कार, ललाट, छाती, दोनों हथेलियाँ, दोनों घुटने, दोनों पैरों के पंजे, ये आठ अंग धरती पर टिके हुए, कमर ऊपर उठाई हुई, कोहनियाँ एक दूसरे की ओर खींची हुईं, चौथी स्थिति में श्वास बाहर ही छोड़ कर रखें।
छठी स्थितिः घुटने और जाँघे धरती से सटी हुईं, हाथ सीधे, कोहनियाँ तनी हुईं, शरीर कमर से ऊपर उठा हुआ मस्तक पीछे की ओर झुका हुआ, दृष्टि ऊपर, कमरहथेलियों की ओर खींची हुई, पैरों के पंजे स्थिर, मेरूदंड धनुषाकार, शरीर को ऊपर उठाते समय श्वास भीतर लें।
सातवीं स्थितिः कमर ऊपर उठाई हुई, दोनों हाथ पैर सीधे, दोनों घुटनेऔर कोहनियाँ तनी हुईं, दोनों एड़ियाँ धरती पर टिकी हुईं,मस्तक घुटनों की ओर खींचा हुआ, ठोड़ी उरोस्थि से लगी हुई, एड़ियाँ, कटि और कलाईयाँ – इनमें त्रिकोण, श्वास को बाहर छोड़ें।
आठवीं स्थितिः बायाँ पैर आगे लाकर पैर का पंजा दोनों हथेलियों के बीच पूर्व स्थान पर, दाहिने पैर का पंजा और घुटना धरती पर टिका हुआ, दृष्टि ऊपर की ओर, इस स्थिति में आते समय श्वास भीतर को लें। (तीसरी और आठवीं स्थिति मे पीछे-आगे जाने वाला पैर प्रत्येक सूर्यनमस्कार में बदलें।)
नौवीं स्थितिः यह स्थिति दूसरी की पुनरावृत्ति है, दाहिना पैर आगे लाकर बाएँ के पास पूर्व स्थान पर रखें, दोनों हथेलियाँ दोनों पैरों के पास धरती पर टिकी हुईं, ललाट घुटनों से लगा हुआ, ठोड़ी उरोस्थि से लगी हुई, दोनों हाथ पैर सीधे, दोनों घुटने और कोहनियाँ तनी हुईं, इस स्थिति में आते समय श्वास को बाहर छोड़ें ।
दसवीं स्थितिः नमस्कार की स्थिति में ही दोनों भुजाएँ सिर के ऊपर, हाथ सीधे, कोहनियाँ तनी हुईं, सिर और कमर से ऊपर का शरीर पीछे की झुका हुआ, दृष्टि करमूल में, पैर सीधे, घुटने तने हुए, इस स्थिति में आते हुए श्वास भीतर भरें।
ग्यारहवीं स्थितिः प्रारम्भिक सिद्ध स्थिति के अनुसार समपूर्ण शरीर तना हुआ, दोनों पैरों की एड़ियाँ और अँगूठे परस्पर लगे हुए, दृष्टि नासिकाग्र, दोनों हथेलियाँ नमस्कार की मुद्रा में, अँगूठे छाती से लगे हुए, श्वास को भीतर भरें, इस प्रकार दस स्थितयों में एक सूर्यनमस्कार पूर्ण होता है। (यह स्थिति ही आगामी सूर्यनमस्कार की सिद्ध स्थिति बनती है।)