प्राणायाम–परिचय
पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश – इन पाँच तत्त्वों से यह शरीर बना है । इसका संचालन वायुतत्त्व से विशेष होता है । वायु की अंतरंग शक्ति (जीवनशक्ति का नाम है – प्राण । आयाम अर्थात नियमन । इस प्रकार प्राणायाम का अर्थ है होता है ‘प्राणों का नियमन ।’ प्राणायाम केवल श्वास-प्रश्वास की क्रिया नहीं है बल्कि यह प्राणशक्ति को वश में करने की ऋषि निर्दिष्ट एक शास्त्रीय पद्धति है । ‘जाबालोपनिषद’ में प्राणायाम को समस्त रोगों का नाशकर्ता बताया गया है । मनुष्य के फेफड़ों में तीन हजार छोटे-छोटे छिद्र होते हैं । साधारण श्वास लेने वाले मनुष्य के तीन सौ से पाँच सौ छिद्र काम करते हैं । जिससे शरीर की रोग प्रतिकारक शक्ति कम हो जाती है और हम जल्दी बीमार हो जाते हैं । रोज प्राणायाम करने से ये बंद छिद्र खुल जाते हैं, जिससे कार्य करने की क्षमता बढ़ती है व रोगों से बचाव होता है ।
जिस प्रकार एलौपैथी में बीमारियों का कारण जीवाणु, प्राकृतिक चिकित्सा में विजातीय तत्त्व एवं आयुर्वेद में आम रस (आहार न पचने पर नस-नाड़ियों में जमा कच्चा रस) माना गया है उसी प्रकार प्राण चिकित्सा में रोगों का कारण निर्बल प्राण माना गया है । प्राण के निर्बल हो जाने से शरीर के अंग-प्रत्यंग ढीले पड़ जाने के कारण ठीक से कार्य नहीं कर पाते । शरीर में रक्त का संचार प्राणों के द्वारा ही होता है । अतः प्राण निर्बल होने से रक्त संचार मंद पड़ जाता है । पर्याप्त रक्त न मिलने पर कोशिकाएँ क्रमशः कमजोर और मृत हो जाती हैं तथा रक्त ठीक तरह से हृदय में न पहुँचने के कारण उसमें विजातीय द्रव्य अधिक हो जाते हैं । इन सबके परिणामस्वरूप विभिन्न रोग उत्पन्न होते हैं ।
यह व्यवहारिक जगत में देखा जाता है कि उच्च प्राणबलवाले व्यक्ति को रोग उतना परेशान नहीं करते जितना कमजोर प्राणबलवाले को । प्राणायाम के द्वारा भारत के योगी हजारों वर्षों तक निरोगी जीवन जीते थे, यह बात तो सनातन धर्म के अनेक ग्रन्थों में है । योग चिकित्सा में दवाओं को बाहरी उपचार माना गया है जबकि प्राणायाम को आन्तरिक उपचार एवं मूल औषधि बताया गया है । जाबाल्योपनिषद् में प्राणायाम को समस्त रोगों का नाशकर्ता बताया गया है ।
शरीर के किसी भाग में प्राण ज़्यादा होता है तो किसी भाग में कम । जहाँ ज़्यादा है वहाँ से प्राणों को हटाकर जहाँ उसका अभाव या कमी है वहाँ प्राण भर देने से शरीर के रोग दूर हो जाते हैं । सुषुप्त शक्तियों को जगाकर जीवनशक्ति के विकास में प्राणायाम का बड़ा मह्त्त्व है ।
भोजन करने से आधा घंटा पूर्व व भोजन करने के चार घंटे बाद प्राणायाम किये जा सकते हैं ।
प्राणायाम के लाभः
- प्राणायाम में गहरे श्वास लेने से फेफड़ों के बंद छिद्र खुल जाते हैं तथा रोग प्रतिकारक शक्ति बढ़ती है । इससे रक्त, नाड़ियों एवं मन भी शुद्ध होता है ।
- त्रिकाल संध्या के समय सतत चालीस दिन तक 10-10 प्राणायाम करने से प्रसन्नता, आरोग्यता बढ़ती है एवं स्मरणशक्ति का भी विकास होता है ।
- प्राणायाम करने से पाप कटते हैं । जैसे मेहनत करने से कंगाली नहीं रहती है, ऐसे ही प्राणायाम करने से पाप नहीं रहते हैं ।
प्राणायाम में श्वास को लेने का, अंदर रोकने का, छोड़ने का और बाहर रोकने के समय का प्रमाण क्रमशः इस प्रकार हैः 1-4-2-2 अर्थात् यदि 5 सेकेण्ड श्वास लेने में लगायें तो 20 सेकेण्ड रोकें और 10 सेकेण्ड उसे छोड़ने में लगाएं तथा 10 सेकेण्ड बाहर रोकें यह आदर्श अनुपात है । धीरे-धीरे नियमित अभ्यास द्वारा इस स्थिति को प्राप्त किया जा सकता है ।
प्राणायाम के कुछ प्रमुख अंगः
- रेचकःअर्थात् श्वास को बाहर छोड़ना ।
- पूरकःअर्थात् श्वास को भीतर लेना ।
- कुंभकःअर्थात् श्वास को रोकना । श्वास को भीतर रोकने की क्रिया को आंतर कुंभक तथा बाहर रोकने की क्रिया को बहिर्कुंभक कहते हैं ।