प्राणशक्तिवर्धक प्रयोग
अपनी प्राणशक्ति को बढ़ाने के इच्छुक लोगों को नित्य प्राणशक्तिवर्धक प्रयोग करना चाहिए ।
परिचयः इससे प्राणशक्ति का अदभुत विकास होता है। अतः इसे प्राणशक्तिवर्धक प्रयोग कहते हैं।
लाभः इससे हमारी नाभि के नीचे जो स्वाधिष्ठान केन्द्र है, उसे जागृत होने में खूब मदद मिलती है। स्वाधिष्ठान केन्द्र जितना सक्रिय होगा, उतना प्राणशक्ति के साथ-साथ रोग-प्रतिकारक शक्ति एवं मनःशक्ति बढ़ने में मदद मिलेगी।
वैज्ञानिकों ने इस केन्द्र की शक्तियों का वर्णन करते हुए कहा हैः It is the mind of the stomach. यह पेट का मस्तक है।
विधिः धरती पर कंबल अथवा चटाई बिछा कर सीधे लेट जायें, शरीर को ढीला छोड़ दें, जैसे शवासन में करते हैं। दोनों हाथों की उँगलियाँ नाभि के आमने सामने पेट पर रखें। हाथ की कोहनियाँ धरती पर लगी रहें। जैसे होठों से सीटी बजाते हैं वैसी मुखमुद्रा बनाकर नाक के दोनों नथुनों से खूब गहरा श्वास लें। मुँह बंद रहे। होठों की ऐसी स्थिति बनाने से दोनों नथुनों से समान रूप में श्वास भीतर जाता है । 10-15 सेकेंड तक श्वास को रोके रखें। इस स्थिति में पेट को अन्दर-बाहर करें, अन्दर ज्यादा, बाहर कम। यह भावना करें कि मेरी नाभि के नीचे का स्वाधिष्ठान केन्द्र जागृत हो रहा है। फिर होठों से सीटी बजाने की मुद्रा में मुँह से धीरे-धीरे श्वास बाहर छोड़ते हुए यह भावना करें कि ‘मेरे शरीर में जो दुर्बल प्राण हैं अथवा रोग के कण हैं उनको मैं बाहर फेंक रहा हूँ।’ इससे हमारी नाभि के नीचे जो स्वाधिष्ठान केन्द्र है उसे जागृत होने में खूब मदद मिलती है।
टिप्पणीः यह प्रयोग प्रतिदिन 2 से 3 बार करें।