गाय की महिमा और परम आवश्यकता
गाय की महत्ता और आवश्यकता
परमात्मा की अनुपम कृति व सनातन संस्कृति की अनमोल धरोहर है देशी गाय, जो मनुष्य को सभी प्रकार से पोषण देने व उन्नत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है । जहाँ एक ओर गाय का दूध, दही, घी, गौमूत्र व गोबर व्यक्ति को स्वस्थ, बुद्धिमान व बलवान बनाते है तथा गाय का दर्शन, स्पर्श, परिक्रमा मनुष्य के पाप-ताप का नाश करते है, वहीं दूसरी ओर गाय व गौ-उत्पाद समाज के लिए वरदान स्वरूप है एवं किसान व बेरोजगारों के लिए रोजगार के द्वार खोल देते हैं । कहावत है :
जननी जनकर दूध पिलाती, केवल साल–छः माही भर ।
गोमाता पय–सुधा पिलाती, रक्षा करती जीवन भर ।।
गाय माँ के समान जीवनभर हमारा पालन-पोषण करती है। जीवन की लगभग सम्पूर्ण दैनंदिन आवश्यकता गाय से पूर्ण हो जाती है। इसलिए हमारी संस्कृति में गाय को माता का दर्जा दिया गया है विष्णुधर्मोनत्तर पुराण में आता है : गावो विश्वस्य मातरः ।’गाय सम्पूर्ण विश्व की माता है ।’
महाभारत (अनुशासन पर्व : ६९.७) में भी आता है :
मातरः सर्वभूतानां गावः सर्वसुखप्रदाः ।
‘गौएँ सर्व प्राणियों की माता कहलाती है । वे सबको सुख देनेवाली है ।’
गाय प्रेम, दया, त्याग, संतोष, सहिष्णुता एवं वात्सल्य की साक्षात् मूर्ति है । स्वामी रामसुखदासजी ने कहा है: “गाय की छाया भी बड़ी शुभ होती है । उसके दर्शन से यात्रा सफल हो जाती है । दूध पिलाती गाय का दर्शन बहुत शुभ माना जाता है ।
सुरभी सनमुख सिसुहि पिआवा ।… …मंगल गन जनु दीन्हि देखाई ।।
‘गाय सामने खड़ी बछड़ों को दूध पिलाती हैं ।… …मानो सभी मंगलों का समूह दिखाई दिया ।’
“गाय महापवित्र होती है । उसके शरीर का स्पर्श करनेवाली हवा भी पवित्र होती है । गाय की सेवा करने से अंतःकरण निर्मल होता है । “
पूज्य संत श्री आशारामजी बापू कहते है कि “गौ और गीता ईश्वरप्रदत्त अमूल्य निधि है । इन दोनों का आश्रय लेकर मनुष्यमात्र स्वस्थ, सुखी व सन्मानित जीवन की प्राप्ति और परमात्मप्राप्ति भी कर सकता है ।”
गाय के रोमकूप में तैतीस करोड़ देवी-देवताओं का अर्थात् सात्विक कणों, सात्विक तरंगों का वास है । श्रद्धा-भक्ति से गौ को प्रणाम करने से इन सभी देवी-देवताओं का एक साथ प्रणाम हो जाता है । इन सबको एक साथ प्रसन्न करना हो तो सरल व उत्तम साधन है गौ-सेवा । आप गौ को एक ग्रास खिला दीजिये, उपरोक्त सारे देवी-देवताओं को पहुँच जायेगा । और उससे आपको उन सभीकी प्रसन्नता प्राप्त हो जाएगी ।
शास्त्रो में वर्णित गौ–महिमा
‘गौ रूपी तीर्थ में गंगा आदि सब नदियों तथा तीर्थों का वास है, उसकी परम पावन धूली में पुष्टि विधमान है, उसके गोबर में साक्षात लक्ष्मी विराजमान है और उसे प्रणाम करने से व्यक्ति धर्म-सम्पन्न हो जाता है । अतः गौ सदा-सर्वदा प्रणाम करने योग्य है । (विष्णुधर्मोत्तर पुरण : २.४२.५८)
‘जो प्रतिदिन स्नान करके गौ का स्पर्श करता है, वह मनुष्य सब प्रकार के स्थूल पापो से भी मुक्त हो जाता है । जो गौओं के खुर से उड़ी हुई धूल को सिर पर धारण करता है, वह मानो तीर्थ के जल में स्नान कर लेता है और सभी पापो से छुटकारा पा जाता है ।’ (पद्म पुराण, सृष्टि खंड, अध्याय: ५७)
गौ का स्पर्श करने, सात्विक-सदाचारी ब्राह्मणों को नमस्कार करने और सद्गुरु, देवता का भलीभाँति पूजन करने से गृहस्थ सारे पापो से छूट जाता है । (स्कंद पुराण, प्रभास खंड)
‘स्पर्श कर लेने मात्र से ही गौएँ मनुष्य के समस्त पापो को नष्ट कर देती हैं और आदरपूर्वक से सेवन (सेवा-पूजन) किये जाने पर अपार सम्पति प्रदान करती हैं । वे ही गाय दान दिये जाने पर सीधे स्वर्ग में ले जाती हैं । ऐसी गौओं के समान और कोई भी धन नहीं है ।’ ( बृहत्पराशर स्मृति)
‘जो प्यास से व्याकुल हुई गौओं को पानी पीने में विघ्न डालता है, उसे ब्रह्मघाती समझना चाहिए । (महाभारत, अनुशासन पर्व: २५.७)
‘जो एक वर्ष तक प्रतिदिन स्वयं भोजन के पहले दूसरे की गाय को एक-एक मुट्ठी घास खिलाता है, उसका वह व्रत समस्त कामनाओं को पूर्ण करनेवाला होता है ।’ (महाभारत, अनुशासन पर्व : ६९.१२)
जन-समाज को संतों-महापुरुषों के द्वारा ही गौ, गीता, गंगा जैसे भारतीय संस्कृति के गौरवशाली प्रतीकों की बहुआयामी एवं रहस्यमय महत्ता ज्ञात होती है । अतः यदि हम इन प्रतीकों और समस्त भारतीय संस्कृति की रक्षा चाहते है तो इनके रक्षक एवं पोषक ऐसे संतों-महापुरुषों की रक्षा, उनका आदर, उनके सत्संग-सानिध्य का सेवन एवं उनकी सेवा हमारा व्यक्तिगत, सामाजिक व आर्थिक कर्तव्य है ।