वीरांगना रानी जैत कुँवरि
जैतपुर, जि.महोबा (उ.प्र) के गौरवपूर्ण इतिहास में वीरांगना जैत कुँवरि की कीर्ति आज भी उज्जवल है। जैत कुँवरि बचपन में ही युद्धकला में निपुण हो गयी थी।
एक दिन जब वह अपनी व्यूह-रचना से सहेलियों के झुंड को परास्त करने में संलग्न थी, तब राह में जाते हुए एक राजपुरुष ने उसके युद्ध-संचालन और शस्त्र-प्रहार का कौशल देखकर उसको शाबाशी दी, “वाह बेटी ! तूने तो कमाल कर दिखाया !” और उसी क्षण उसे अपनी पुत्रवधू बनाने का निर्णय कर लिया।
उस वीर कन्या को बाद में पता चला कि वे राजपुरुष महाराजा छत्रसाल थे। जब वह जगतराज की धर्मपत्नी और पन्ना राजवंश की वधू बनकर राजमहल में प्रवेश कर रही थी, तब महाराजा छत्रसाल ने उसे स्नेह देते हुए कहाः “बेटी ! निश्चय ही किसी बुरे वक्त में तू इस राजवंश का मान बढ़ायेगी।”
बुंदेलखंड केसरी छत्रसाल एक अद्वितीय वीरपुरुष थे, जो अपने युद्धकौशल से दुश्मनों के छक्के छुड़ा देते थे। उनके भय से बुंदेलखंड की ओर नजर उठाने की मुगलों की हिम्मत नहीं हो पाती थी। जब छत्रसाल वृद्ध हो गये तब मौका पाकर प्रयागराज के मुगल सूबेदार मुहम्मद बंगश ने सन् 1729 में जैतपुर पर हमला बोल दिया।
छत्रसाल के छोटे पुत्र जगतराज ने बंगश से जोरदार टक्कर ली परंतु घायल हो जाने पर उसे वापस लौटना पड़ा। छत्रसाल की सेना पर संकट के बादल छा गये। बंगश जैतपुर दुर्ग के साथ-साथ पन्ना के दुर्ग को भी हथियाने का ख्वाब देखने लगा। वृद्ध शेर महाराज छत्रसाल ने इस नाजुक परिस्थिति में मराठा पेशवा बाजीराव से सहायता माँगी। बाजीराव से मदद मिलने में समय लग सकता था और इधर बंगश तेजी से दुर्ग की ओर बढ़ रहा था। तब वीरांगना जैत कुँवरि ने मुगलों से लोहा लेने के लिए तुरंत युद्ध की व्यूहरचना तैयार की। उसके सामने किशोरावस्था की स्मृतियाँ चलचित्र की तरह घूमने लगीं। जैत कुँवरि ने इस नाजुक घड़ी में एक पल की भी देर न करते हुए तुरंत रणबाना धारण किया और चुने हुए पराक्रमी सैनिकों को लेकर चारों ओर से बंगश की फौज पर बिजली की तरह टूट पड़ी। बंगश के सेना अचानक हुए इस आक्रमण का सामना नहीं कर सकी। देखते ही देखते वीरांगना जैत कुँवरि ने बंगश को जैतपुर दुर्ग से काफी दूर खदेड़ दिया।
रणबाँकुरी पुत्रवधू की चर्चाएँ और जय-जयकार सुनकर महाराजा छत्रसाल के नेत्र खुशी के आँसुओं से छलछला उठे।वीराँगना जैत कुँवरि ने बुंदेल वीरों की शान ही नहीं रखी बल्कि छत्रसाल की दूरदर्शिता को भी सत्य कर दिखाया। बाद में बाजीराव भी आ पहुँचे और उन्होंने बंगश को मुँह दिखाने लायक नहीं छोड़ा। महाराज छत्रसाल ने विजयोत्सव पर जैत कुँवरि के पराक्रम,साहस,रणकौशल और सूझबूझ की प्रशंसा करते हुए भरे दरबार में कहाः “यदि मेरी पुत्रवधू समय कदम न उठाती तो जैतपुर के दुर्ग पर नहीं बल्कि पन्ना के दुर्ग पर भी मुगलों का झंडा फहरा रहा होता।”
यश्चिकेत स सुक्रतुः।
ʹजो विचारशील होता है, वह सत्कर्मी होता है।ʹ (ऋग्वेदः 5.65.9)
दृढ़ निश्चय वाले को प्रतिकूलता में भी राह मिल जाती है। हे भारत की देवियो ! तुममें अथाह शौर्य व सामर्थ्य छुपा है। अपनी सुषुप्त शक्तियों को जगाओ। गार्गी, मदालसा, मीरा भी इसी भारतभूमि की नारी-रत्न थीं। तुम भी संतों-महापुरुषों और सत्शास्त्रों के मंगलमय उपदेशों को लाभ लेकर अपनी दिव्यता को जगाओ और अपने जीवन को महानता-पूर्णता के शिखर पर पहुँचा दो।
तुच्छ भोगियों की कठपुतलियाँ बनने वाली तुच्छ मति की हलकट युवतियों-युवकों जैसा ʹआई लव यूʹ – यह बरबाद करने वाला स्वर उठाने वाली तुच्छ आत्माओं से कभी प्रभावित नहीं होना। हे महान युवतियो ! तुम अपनी छुपी हुई महानता को अवश्य-अवश्य जगा सकती हो ! उस वीरांगना के जीवन में संयम-सदाचार की सुवास बाल्यकाल से थी। बचपन से ही विकारों से बचने की सुंदर सीख ने उसे वीरांगना बनाया। शादी के बाद भी ब्रह्मचर्य और संयम का स्वर उसके व्यवहार से गूँजता था।
क्या आज की किशोरियाँ-युवतियाँ अपने को भोगवाद की आँधी से बचाने हेतु उद्यम, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति और पराक्रम का आश्रय लेकर संयम के संगीत से अपने को, परिवार को और विश्व को स्वस्थ, सुखी और सम्मानित नहीं कर सकती हैं ? अवश्य कर सकती हैं !
ૐ अर्यमायै नमःʹ एवं ʹदिव्य प्रेरणा-प्रकाश पुस्तक (पृष्ठ 2) में लिखे ब्रह्मचर्य मंत्र का 21-21 बार जब करते हुए दूध को देखें और वही दूध दायाँ स्वर बंद करके बायें स्वर को चलाते हुए पियें। दूसरा कोई पेय पदार्थ पियें तो भी दाहिना स्वर बंद करके बायें से श्वास ले के पियें तो ओजस्वी, मेधावी, प्रतिभासम्पन्न बनेंगे।
जैत कुँवरि धनभागी रही होगी जो उसे ऐसी शिक्षा देने वाले गुरु मिले होंगे। जो गुरु की सीख को व्यवहार में लाये वह धनभागी है। क्या इन्द्रिय-संयम के बिना ऐसी वीरता, ऐसा साहस, ऐसी सूझबूझ सम्भव है ? कदापि नहीं। अतः संयम… संयम….संयम…. उद्यम