अथाह शौर्य की धनी: किरण देवी
मेवाड़ के सूर्य महाराणा प्रताप के भाई शक्तिसिंह की कन्या का नाम था किरण देवी । वह परम सुन्दरी और सुशीला थी । उसका विवाह बीकानेर नरेश के भाई महाराज पृथ्वीराज से हुआ था । ये वही पृथ्वीराज थे जिनकी कविता ने महाराणा प्रताप में पुनः राजपूती जोश ला दिया था और फिर उन्होंने किसी भी हालत में अकबर से संधि की बातचीत नहीं की ।
अकबर शक्तिशाली सम्राट अवश्य था किंतु उतना ही विलासी भी था । उसने अपनी विषय वासना की तृप्ति के लिए ‘खुशरोज मेला’ नामक मेले की एक प्रथा निकाली, जो प्रत्येक माह के प्रमुख त्योहार के नौवें दिन दरबार क्षेत्र में लगाया जाता था । इस मेले में राजपूतों की तथा दिल्ली की अन्य स्त्रियाँ जाया करती थी । पुरूषों को इसमें जाने की अनुमति नहीं थी परंतु इस मेले में अकबर स्त्री वेश में घूमा करता था । जिस सुंदरी पर वह मुग्ध हो जाता, उसे उसकी कुट्टिनियाँ फँसाकर उसके राजमहल में ले जाती थी ।
एक दिन खुशरोज मेले में लगनेवाले मीना बाजार की सजावट देखने के लिए किरण देवी आयी । अकबर उसके रूप एवं तेजस्विता को देखकर मुग्ध हो गया । वह उसको अपनी वासना का शिकार बनाना चाहता था । अकबर के संकेत से उसकी कुट्टिनियों ने किरण देवी को धोखे से जनाना महल में पहुँचा दिया । विषयान्ध पामर अकबर ने उसे घेर लिया और नाना प्रकार के प्रलोभन दिये, किंतु वह वीरांगना उन्हें कैसे स्वीकर करती ? किरण देवी के सौंदर्य को देखकर अकबर की कामवासना भड़कती जा रही थी ज्यों ही उसने किरण देवी को स्पर्श करने के लिए हाथ आगे बढ़ाया, त्यों ही उसने रणचंडी का रूप धारण कर लिया और अपनी कमर से तेज धार वाली कटार निकाली तथा अकबर को धरती पर पटक कर उसकी छाती पर पैर रखकर बोली:
“नीच ! नराधम ! भारत का सम्राट होते हुए भी तूने इतना बड़ा पाप करने की कुचेष्टा की ! भगवान ने सति-साध्वियों की रक्षा के लिए तुझे बादशाह बनाया है और तू उन पर बलात्कार करता है ? दुष्ट ! अधम ! तू बादशाह नहीं, नीच एवं विषयी कुत्ता है, पिशाच है । तुझे पता नहीं मैं किस कुल की कन्या हूँ ?
सारा भारत तेरे पाँवों पर सिर झुकाता है परंतु मेवाड़ का सिसोदिया वंश अभी भी अपना सिर ऊँचा किए खड़ा है । महाराणा प्रताप के नाम से तू आज भी थर्राता है । मैं उसी पवित्र राजवंश की कन्या हूँ । मेरी धमनियों में बप्पा रावल और राणा सांगा का रक्त है । मेरे अंग-अंग में पावन क्षत्रिय वीरांगनाओं के चरित्र की पवित्रता है ।
अगर तू बचना चाहता है तो मन में सच्चा पश्चाताप करके अपनी माता की शपथ खाकर प्रतिज्ञा कर कि अब से खुशरोज का मेला नहीं लगेगा और किसी भी नारी की आबरू पर तू मन नहीं चलायेगा । नहीं तो आज इस तेज धार की कटार से काम तमाम किए देती हूँ ।”
अकबर के शरीर का तो मानो खून ही सूख गया । दिल्लीपति के दोनों हाथ थर-थर काँपने लगे ! उसने पाश्चाताप करते हुए करूण स्वर में कहा: ” माँ क्षमा कर दो । मेरे प्राण तुम्हारे हाथों में है, पुत्र प्राणों की भीख चाहता है ।”
उसने प्रण किया: अब से खुशरोज मेला कभी नहीं लगेगा ।”
दयामयी किरण देवी ने अकबर को प्राणों की भीख दे दी !
तेजस्विनी और वीरांगना किरण देवी ने उस यवन के हाथों से अपने सतीत्व की रक्षा तो की, साथ ही अन्य नारियों के सतीत्व की रक्षा के लिए खुशरोज मेला भी बंद करवा दिया । किरण देवी ने दिखला दिया की अबला कही जानेवाली नारी कितनी बलवती होती है !
कैसा था किरण देवी का शौर्य ! जिसने एक बादशाह को भी प्राण की भीख माँगने के लिए विवश कर दिया !
हे भारत की देवियो ! तुममें भी अथाह शौर्य है, अथाह सामर्थ्य है, अथाह बल है । जरूरत है केवल अपनी सुषुप्त शक्तियों को जगाने की ।