हे विद्यार्थियो ! जिज्ञासु बनो
विश्व की सारी बड़ी-बड़ी खोजें – चाहे वे ऐहिक जगत की हों, बौद्धिक जगत की हों, धार्मिक जगत की हों अथवा तात्त्विक जगत की हों – सब खोजें हुई हैं जिज्ञासा से ही । इसलिए अगर अपने जीवन को उन्नत करना चाहते हो तो जिज्ञासु बनो । वे ही लोग महान बनते हैं, जिनके जीवन में जिज्ञासा होती है ।
थामस अल्वा एडीसन तुम्हारे जैसे ही बच्चे थे । वे बहरे भी थे । पहले रेलगाड़ियों में अखबार, दूध की बोतलें आदि बेचा करते थे । लेकिन उनके जीवन में जिज्ञासा थी । अतः आगे जाकर उन्होंने अनेक आविष्कार किये । बिजली का बल्ब आदि 2500 खोजें उन्हीं की देनें हैं । जहाँ चाह वहाँ राह । जिसके जीवन में जिज्ञासा है वह उन्नति के शिखर जरूर सर कर सकता है । जीवन में यदि कोई जिज्ञासा नहीं हो तो फिर उन्नति नहीं हो पाती ।
हीरा नामक एक लड़का था, जो किसी सेठ के यहाँ नौकरी करता था । एक दिन उसने अपने सेठ से कहाः
“सेठ जी ! मैं आपका 24 घण्टे का नौकर हूँ और मुनीम तो केवल एक दो घण्टे के लिए आकर आपसे इधर-उधर की बातें करके चला जाता है । फिर भी मेरा वेतन केवल 500 रूपये है और मुनीम का 5000 रूपये । ऊपर से सुविधाएँ भी उसको ज्यादा । ऐसा क्यों ?”
सेठः “हीरा ! तुझमें और मुनीम में क्या फर्क है यह जानना चाहता है तो जा, जरा घोघा बंदरगाह होकर आ । वहाँ अपना कौन सा स्टीमर आया है, उसकी जाँच करके आ ।”
नौकर गया एवं रात्रि को लौटा । उसने सेठ से कहाः
“सेठ जी ! अपना एक स्टीमर आया है ।”
सेठः “उसमें क्या आया है ?”
हीराः “यह तो मुझे पता नहीं ।”
वह पुनः दुसरे दिन गया और सामान का पता करके आया । फिर बोलाः
“बादाम और काली मिर्च आयी है ।”
सेठः “और क्या माल आया है ?”
वह फिर पूछने गया एवं आकर बोलाः
“लौंग भी आयी है ।”
सेठः “यह किसने बताया ?”
हीराः “एक आदमी ने कहा कि लौंग भी आयी है ।”
सेठः “अच्छा, वह आदमी कौन था ? जवाबदार मुख्य आदमी था कि साधारण ?”
हीराः “यह तो पता नहीं है ।”
सेठः “जाओ, जाकर मुख्य आदमी से पूछो कि कौन-कौन सी चीज आयी है और कितनी-कितनी आयी है ?”
हीरा फिर गया और सामान एवं उसकी मात्रा लिखकर लाया ।
सेठः “ये चीजें किस भाव में आई हैं और इस समय बाजार में क्या भाव चल रहा है, यह पूछा तूने ?”
हीराः “यह तो मैंने नही पूछा ।”
सेठः “अरे मूर्ख ! ऐसा करते-करते तो महीना बीत जायेगा ।”
फिर सेठ ने मुनीम को बुलाया और कहाः
“घोघा बन्दरगाह जाकर आओ ।”
मुनीम दो घण्टे के बाद आया और बोलाः
“सेठ जी ! इतने मन बादाम है, इतने मन काली मिर्च है, इतने मन लौंग है और इतने-इतने मन फलानी चीजें हैं । सेठ जी हमारा स्टीमर जल्दी आ गया है । दूसरे स्टीमर एक दो दिन बाद आयेंगे तो बाजार-भाव में मंदी हो जायगी । अभी बाजार में माल की कमी है । अतः अभी हम अपना माल खींचकर चुपके से बेच देंगे तो लाभ होगा । यहाँ आने जाने में देर हो जाती, अतः मैं आपसे पूछने नहीं आया और माल बेच दिया । अच्छे पैसे मिले हैं और यह रहा दो लाख का चेक ।”
सेठ ने नौकर से कहाः “देख लिया फर्क ? अगर तू केवल चक्कर काटता रहता और दो चार दिन विलंब हो जाता तो मुझे पाँच लाख का घाटा पड़ता । यह मुनीम पाँच लाख के घाटे को रोककर दो लाख का नफा करके आया है । इसको मैं 5000 रूपये देता हूँ तो भी सस्ता है और तुझको 500 रूपये देता हूँ फिर भी महँगा है । मूर्ख ! तुझमें जिज्ञासा नहीं है ।”
बिना जिज्ञासा का मनुष्य आलसी-प्रमादी हो जाता है, तुच्छ रह जाता है जबकि जिज्ञासु मनुष्य हर कार्य में तत्पर एवं कर्मठ हो जाता है । जिसके अंदर जिज्ञासा नहीं है वह रहस्य को देखते हुए भी अनदेखा कर देगा । जिज्ञासु की दृष्टि पैनी होती है, सूक्ष्म होती है । वह हर घटना को बारीकी से देखता है, खोजता है और खोजते-खोजते रहस्य को भी प्राप्त कर लेता है ।
किसी कक्षा में पचास विद्यार्थी पढ़ते हैं जिसमें शिक्षक तो सबके एक ही होते हैं, पाठ्यपुस्तकें भी एक ही होती हैं किन्त जो बच्चे शिक्षकों की बाते ध्यान से सुनते हैं एवं जिज्ञासा करके प्रश्न पूछते हैं वे ही विद्यार्थी माता-पिता एवं स्कूल का नाम रोशन कर पाते हैं और जो विद्यार्थी पढ़ते समय ध्यान नहीं देते, सुना-अनसुना कर देते हैं वे थोड़े से अंक लेकर अपने जीवन की गाड़ी बोझीली बनाकर घसीटते रहते हैं एवं बड़े होकर फिर किस कोने में मर जाते हैं, पता ही नहीं चलता । अतः जिज्ञासु बनो ।
जब शिक्षक पढ़ाते हों उस समय ध्यान देकर पढ़ो । यदि समझ में न आये तो अपने-आप उसको समझने की कोशिश करो । अपने-आप उत्तर न मिले तो साथी से या शिक्षक से पूछ लो । ऐसा करके अपनी जिज्ञासा को बढ़ाओ । जिसके पास जिज्ञासा नहीं है उसको तो ब्रह्माजी उपदेश करें तो भी क्या होगा ? जो व्यक्ति जितने अंश में जिज्ञासु होगा, तत्पर होगा वह उतने ही अंश में सफल होगा ।
अगर जिज्ञासा नहीं होगी, तत्परता नहीं होगी तो पढ़ाई में पीछे रह जाओगे, बुद्धि में पीछे रह जाओगे और मुक्ति में भी पीछे रह जाओगे । तुम पीछे क्यों रहो ? जिज्ञासु बनो, तत्पर बनो । सफलता तुम्हारा ही इंतजार कर रही है । ऐहिक जगत के जिज्ञासु होते-होते मैं कौन हूँ ? शरीर मरने के बाद भी मैं रहता हूँ…. मैं आत्मा हूँ तो आत्मा और परमात्मा में क्या भेद है ? ब्रह्म-परमात्मा की प्राप्ति कैसे हो ? जिसको जानने से सब जाना जाता है, जिसको पाने से सब पाया जाता है वह तत्त्व क्या है ? ऐसी जिज्ञासा करो । इस प्रकार की ब्रह्मजिज्ञासा करके ब्रह्मज्ञानी जीवन्मुक्त होने की क्षमताएँ तुममें भरी हुई हैं । शाबाश वीर ! शाबाश !