हमेशा उत्साही बने रहने की सुंदर, सरल युक्ति
जीवन में हमेशा उत्साह बने रहने की युक्ति यह है कि हमारा मददगार बहुत विश्वसनीय, सर्वोत्तम और सूझबूझ का धनी होना चाहिए । यदि हमको यह विश्वास है कि हर समय ईश्वर हमारे साथ है और हमको निरंतर उसकी मदद मिल रही है तो उत्साह में कमी नहीं आयेगी ।
अपना मददगार जब विद्वान होता है तब वह विद्या की सहायता करता है, जब बुद्धिमान होता है तब वह बुद्धि की सहायता करता है और जब बलवान होता है तब बुला लो उसको और बैठा लो अपने घर में, कोई आपको गाली देने का नाम नहीं लेगा, आपसे झगड़ा करने का नाम नहीं लेगा ।
कर्म में उत्साह बना रहे इसके लिए हमारे मददगार ईश्वर या ईश्वर के प्रकटस्वरूप सद्गुरु होने चाहिए । दूसरी बात यह है कि अपने अंदर ईमानदारी का भी कुछ बल होना चाहिए । यदि आप चोरी, बदमाशी करके आओगे और कहोगे, ‘हमको तो डर लग रहा है, डिप्रेशन (अवसाद) हो रहा है ।’ तो बदमाशी का काम करते समय, दूसरे को लुभाते समय, अपने-आपको न्योछावर करते समय तो डिप्रेशन नहीं हुआ, अब घर में आकर कहते हैं : ‘डिप्रेशन हो गया है ।’ जब जीवन में उत्साह मर जाता होगा तब उसको ‘डिप्रेशन’ बोलते होंगे । क्या नहीं कर सकते हैं आप ! आप वही हैं जो सब कुछ समेटकर रात को सो जाते हैं । कहाँ रहती है आपकी दुनिया उस समय ? वही हैं आप जो सपने में सूर्य, चन्द्रमा, पृथ्वी, समुद्र सहित सारी दुनिया को बनाकर उसमें खेलते हैं, गाते हैं, हँसते हैं और रोते हैं । कितनी शक्ति है आपमें ! और वही तो आप जाग्रत में भी हैं । आप कहीं मर थोड़े ही गये हैं ? आप दुनिया में क्या नहीं कर सकते !
जो चलेगा उसको रास्ते में परमात्म-मधु मिलेगा ।
जो ईश्वर के रास्ते चलेगा अर्थात् अपने भीतर गोता लगायेगा, आत्मचिंतन शुरू करेगा उसे परमात्म-माधुर्य मिलेगा ही ।
महात्मा गांधी के पीछे चलनेवाला पहले कौन था ? उन्होंने अच्छा काम किया तो उनके साथ इतने लोग हो गये । जरा धैर्य के साथ, वीर्य (वीरता) के साथ, उत्साह के साथ आगे बढ़ो तो ! आप अपनी शक्ति के बारे में निराश न हों :
क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते । (गीता : 2.3)
नपुंसक मत बनो । महापुरुषों के चरित्र से शिक्षा लो । महापुरुषों के चरित्र पर ध्यान दोगे तो आपका उत्साह बढ़ेगा । उत्साह, ईश्वर का भरोसा और अच्छा काम होना चाहिए । आप अपनी सफलता में कोई संशय मत कीजिये । यह बात जीवन के हर क्षेत्र के लिए लागू पड़ती है, दुनिया के सबसे बड़े व सदा रहनेवाले आत्मसुख के लिए भी ! इसमें चलना कहीं और नहीं, सद्गुरु के सत्संग-वचनों व आज्ञाओं के मार्ग पर है । उनके वचनों का चिंतन-मनन कीजिये और आत्मसुख में रसमय, सुखमय होते जाइये । बस, आप चल पड़िये, देखिये क्या खजाने खुलते हैं ! क्या-क्या सुयोग्यताएँ सुविकसित होती हैं !