प्रत्येक क्षेत्र में सफलता की नींव
मानव-जीवन को उन्नत बनाने के लिए ब्रह्मचर्य की आवश्यकता उसी प्रकार है जिस प्रकार किसी सुदृढ़ भवन का निर्माण करने के लिए गहरी नींव की I जिस मकान की नींव गहरी नहीं होगी वह भविष्य में आँधी-तूफान अथवा भूकम्प का तनिक-सा गहरा झटका लगते ही धराशायी हो जाएगा । ठीक इसी प्रकार जिस मनुष्य के जीवन में ब्रह्मचर्य का अभाव है वह कदापि उन्नतिशील नहीं हो सकता ।
आध्यात्मिक अथवा अन्य क्षेत्रों में जितने भी महापुरुष भारतवर्ष तथा अन्य देशों में आज तक हुए, उन सभी ने जो सफलता प्राप्त की उसका रहस्य था ब्रह्मचर्य-पालन । देवता और मनुष्यों का तो कहना ही क्या, असुर और राक्षसों ने भी शक्ति का संचय करने के लिए इस महाव्रत का अवलम्बन लिया था । हिरण्यकशिपु, रावण, मेघनाद आदि असुरों ने ब्रह्मचर्य के बल पर ही अपनी तपस्या को सफल बनाया था । बालब्रह्मचारी हनुमानजी एवं भीष्म पितामह के पावन चरित्रों को कौन नहीं जानता ? जगद्गुरू शंकराचार्य ने ब्रह्मचर्य के बल पर ही वेदांत ज्ञान-आत्मसात् करके दिग्गज विद्वानों को परास्त कर जगद्गुरू की उपाधि प्राप्त की थी ।
ब्रह्मचर्य है क्या ? ब्रह्मचर्य शब्द दो पदों से बनता है – ब्रह्म+चर्य I ब्रह्म शब्द के अनेक अर्थ हैं I मुख्य अर्थ है – ईश्वर, वेद, ज्ञान और वीर्य । चर्य के अर्थ हैं – चिंतन, अध्ययन, उपार्जन, रक्षण । इस प्रकार ब्रह्मचर्य के अर्थ होते हैं – ईश्वर चिंतन, वेदाध्ययन, ज्ञानोपार्जन और वीर्य रक्षण ।
ब्रह्मचर्य-रक्षा ही जीवन है । वीर्यनाश ही मृत्यु है । जिस प्रकार शक्तिशाली राजा के रहते हुए उसका देश धन-धान्य एवं सुख-शांति सम्पन्न तथा शत्रुओं से सुरक्षित रहता है परंतु उसके निर्बल होते ही वही देश अनाथ और सुखविहीन हो जाता है, बाहर से शत्रु भी आक्रमण कर देते हैं और भीतरी चोर-डाकू लूट-खसोट मचाने लग जाते हैं, ठीक इसी प्रकार शरीर के राजा वीर्य के निर्बल पड़ जाने पर शरीर, इंद्रियाँ, मन, प्राण तथा बुद्धि – सभी शिथिल और सुखविहीन हो जाते हैं I बाहर से रोग, भय आदि आक्रमण कर देते हैं और भीतर से काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार आदि लूट-खसोट मचाने लगते हैं । उस व्यक्ति का जीवन भार स्वरूप हो जाता है, जठराग्नि मंद हो जाती है, प्रमेह, स्वप्नदोष आदि रोग घेर लेते हैं, आँखों की ज्योति कम हो जाती है, गाल पिचक जाते हैं, किसी कार्य में मन नहीं लगता ।
जिस फुटबॉल की हवा निकल जाय वह किसी काम की नहीं रहती, जिस गन्ने का रस निकल जाय उसमें तत्व नहीं रहता, जिस दूध का क्रीम निकल जाय वह सारहीन हो जाता है, इसी प्रकार जिस मनुष्य में वीर्य नहीं वह निस्तेज, निर्बल तथा मंदबुद्धि हो जाता है।