…तो आपकी योग्यता में चार चांद लग जायेंगे
आदरणीय बनना हो तो सुंदर और सरल उपाय है : अपनी योग्यताओं का ठीक से परहित में सदुपयोग करें, चाहे कितनी छोटी सी योग्यता हो । अपनी योग्यता निखारने के लिए भगवान का ध्यान… और जो करें तत्परता से करें , आलस्य छोड़ें । तबला बजायें तो तत्परता से… झाड़ू लगायें तो तत्परता से… । दूसरा, जो करें इमानदारी से करें, दिखावा ना करें । तीसरा, परिश्रम से कतरायें नहीं । जो अपनी योग्यता, ईमानदारी और परिश्रम को समाज के हित में, ईश्वर की सेवा में लगाता है उसको भविष्य की चिंता हो ही नहीं सकती ।
प्रमाणपत्रों से योग्यताओं का कोई संबंध नहीं है । तो जो लोग पढ़-लिखकर प्रमाणपत्र लेकर सुयोग्य बनना चाहते हैं, उनको साफ-सुथरी सलाह है कि इन प्रमाणपत्रों से पेट भरने की या नौकरी की योग्यता भले मिल जाए लेकिन प्रमाणपत्रों को पाने में उलझकर वास्तविक योग्यता दबाने की दुर्गति में मत पड़ो ।
ठाठ-बाट, दिखावा, टाई, फैशन, फलाना-ढिमका… करके आप अपनी सहजता को दबोचो मत । बच्चा कितना प्यारा लगता है जब सहज होता है तो ! वह सामान्यरूप से नृत्य करेगा तो भी बहुत प्यारा लगेगा, नर्तक को भी पीछे कर देगा । नृत्यकला में प्रवीण व्यक्ति को देखा तो इतनी खुशी नहीं होगी जैसा निर्दोष बच्चा कुछ भी अठखेली करेगा तो प्यारा लगेगा । जो सहजता होती है उसमें परमात्मा का आनंद छलकता है, निखरता है । जब वही बच्चा दिखावा करने लगता है झूठ-कपट करके अच्छा बनने की कोशिश करता है तो फिर वैसा प्यारा नहीं लगता ।
अपने में जो योग्यता है उसका ईश्वर की प्रसन्नता के निमित्त ‘बहुजनहिताय’ खर्च करो तो आप सुयोग्य बन जायेंगे । चाहे आप अनपढ़ हो और झाड़ू लगाते हो तो उसे तत्परता से लगाओ । जो लोग अपना कार्य पूरे मन से करते हैं इस योग्य हो जाते हैं ।
अतः जो भी करें खूब तत्परता से करें, सुख दुख का लालच ना करें दूसरों को सुख हो ऐसा करें । जिससे दूसरों का शरीर तंदुरुस्त रहे, मन प्रसन्न रहें, बुद्धि में बुद्धिदाता का ज्ञान रहे – वह सब कर सकते हैं । कहने का तात्पर्य है कि अपनी स्वार्थ की धारा को मोड के परहित की ओर कर दीजिये । इससे आपकी योग्यता में चार चांद लग जाएंगे ।