लापरवाही नहीं तत्परता !
साधक के जीवन में, मनुष्यमात्र के जीवन में अपने लक्ष्य की स्मृति और तत्परता होनी ही चाहिए । संयम और तत्परता सफलता की कुंजी है, लापरवाही और संयम का अनादर विनाश का कारण है । जिस काम को करें, उसे ईश्वर का कार्य मानकर साधना का अंग बना लें । उस काम में से ही ईश्वर की मस्ती का आनंद आने लग जायेगा ।
तत्परता व सजगता से काम करने वाला व्यक्ति कभी विफल नहीं होता । आलस्य और प्रमाद मनुष्य की योग्यताओं के शत्रु हैं । लापरवाही सारी योग्यताओं को खा जाती है, इसलिए अपनी योग्यता विकसित करने के लिए भी तत्परता से कार्य करना चाहिए । जिसकी कम समय में सुंदर, सुचारू रूप से व अधिक से अधिक कार्य करने की कला विकसित है, वह आध्यात्मिक जगत में जाता है तो वहाँ भी सफल हो जायेगा और लौकिक जगत में भी, परंतु समय बर्बाद करने वाला, टालमटोल करने वाला तो व्यवहार में भी विफल रहता है और परमार्थ में तो सफल हो ही नहीं सकता ।
काम-क्रोध तो मनुष्य के वैरी हैं ही परंतु लापरवाही, आलस्य, प्रमाद – ये मनुष्य की योग्यता के वैरी हैं, इसलिए अपने कार्य में तत्पर होना चाहिए । रावण, सिकंदर, हिरण्यकशिपु, हिटलर – ये तत्पर तो थे लेकिन अहं को पोसने में, विषय-विकारों को पाने में विनाश की तरफ चले गये । आत्मा-परमात्मा को पाने का उद्देश्य बना के धर्म-मर्यादा के अनुरूप तत्परता होनी चाहिए । कई लोग तत्पर भी पाये जाते हैं पर भोग-विलास और अहं पोसने में लगते हैं तो विनाश की तरफ जाते हैं । तत्परता अविनाशी की तरफ होनी चाहिए । जो कर्मयोग में तत्पर नहीं है वह भक्तियोग और ज्ञान योग में तत्पर नहीं होगा । अतः जो भी काम करो तत्परता से करो । भोजन करो तो चबा-चबाकर करो । इधर-उधर देखते-देखते, बातें करते हुए, जल्दी-जल्दी, लापरवाही से भोजन करते हैं तो भोजन पचता नहीं, आँते खराब होती हैं, तबीयत खराब होती है । यात्रा करनी है और देर से गये, गाड़ी छूट गयी तो यह लापरवाही है । रोटी बनाते बनाते रोटी पर काले दाग कर दिये, जला दी तो लापरवाह है, मूर्ख है । सब्जी बना रहे हैं तो सब्जी को छौंक लगाकर इतना सेंका कि उसके बहुत सारे विटामिन नष्ट हो गये या नमक मिर्ची ज्यादा डाल दी अथवा तो फीकी बना दी । ऐसे लोग लापरवाह होते हैं । चावल ठीक से साफ नहीं किये, खाते समय कंकड़ आते हैं तो साफ करने वाला लापरवाह है, मूर्ख है । चाहे कितना भी बड़ा सेठ हो, साहब हो… साहब है, वेतन लेता है इसलिए उसकी जिम्मेदारी है कि दफ्तर का काम तत्परता से करे । झाड़ू लगाने वाला है तो झाड़ू ठीक से लगाये, यह उसकी जिम्मेदारी है ।
लापरवाह आदमी से भगवान नाराज रहते हैं । धिक्कार है लापरवाह लोगों को जो अपने स्वामी को दुःख देते हैं, समाज के लोगों से धोखा करते हैं ! खाना-पीना समाज का और समाज के कार्य में लापरवाही करना, ऐसे लोग कुत्ते से भी बेकार होते हैं । पलायनवादी, लापरवाह व्यक्ति घर, दुकान, दफ्तर, आश्रम जहाँ भी जायेगा देर-सवेर असफल हो जायेगा । कर्म के पीछे भाग्य बनता है, हाथ की रेखाएँ बदल जाती हैं, प्रारब्ध बदल जाता है ।
सुविधा पूरी चाहिये लेकिन जिम्मेदारी नहीं, इससे लापरवाह व्यक्ति खोखला हो जाता है । जो तत्परता से काम नहीं करता, उसे कुदरत दुबारा मनुष्य शरीर नहीं देती । कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनसे काम लिया जाता है परंतु तत्पर व्यक्ति को कहना नहीं पड़ता, वह स्वयं कार्य करता है । समझ बदलेगी तब व्यक्ति बदलेगा और व्यक्ति बदलेगा तब समाज और देश बदलेगा ।
जो मनुष्य-जन्म में काम से कतराता है, वह पेड़-पौधा, पशु बन जाता है, फिर कुल्हाड़े मारकर, डंडे मारकर उससे काम लिया जाता है । सूर्य दिन रात कार्य कर रहा है, हवाएँ दिन-रात कार्य कर रही हैं, प्रकृति दिन रात कार्य कर रही है, परमात्मा दिन रात चेतना दे रहा है और हम अगर कार्य से भागते फिरते हैं तो स्वयं ही अपने पैर पर कुल्हाड़ा मारते हैं ।
काम की अधिकता नहीं अनियमितता आदमी को मार डालती है । विद्यार्थी है तो ‘आज पढ़ने का पाठ कल पढ़ेंगे, बाद में करेंगे….’ ऐसा नहीं करे । जिस समय का जो काम है वह उस समय ही कर लेना चाहिए, बाद के लिए नहीं रखना चाहिए । बढ़िया समय आयेगा तब कुछ करेंगे या बढ़िया समय था तब कुछ कर लेते….’ नहीं, अभी जो समय है वही बढ़िया है ।
जो काम, जो बात अपने बस की है उसे ईमानदारी, तत्परता और कुशलतापूर्वक करो । अपने प्रत्येक कार्य को ईश्वर की पूजा समझो । आप लोग जहाँ भी हों, अपने जीवन को संयम और तत्परता के ऊपर उठाओ । परमात्मा हमेशा उन्नति में साथ देता है, पतन में नहीं । पतन में हमारी वासनाएँ, लापरवाही काम करती है । मुक्ति के रास्ते भगवान साथ देता है, प्रकृति साथ देती है, बंधन के लिए तो हमारी बेवकूफी, इन्द्रियों की गुलामी, लालच और हलका संग ही कारणरूप होता है । हम तो ईश्वर का संग करेंगे, संतों शास्त्रों की शरण जायेंगे, श्रेष्ठ संग करेंगे और संयमी व तत्पर होकर अपना कार्य करेंगे – यही भाव रखना चाहिए ।
लापरवाही के दुर्गुण से बचने में ‘लं‘ बीजमंत्र का जप सहायक है, लाभदायी है ।
रोज ॐ लं लं लं लं लं…. इस प्रकार आदर से, तत्परता से कम से कम हजार बार जप करने वाला लापरवाह भी सुधर जायेगा ।