आगे से समय अभाव का बहाना न बनाना
अपनी आत्मा मस्ती में मस्त रहने वाले एक महात्मा थे । एक दिन उनके पास एक व्यक्ति आया और कहने लगा जीवन अल्पकाल का है, इसे थोड़े समय में क्या-क्या करूं ? बचपन में ज्ञान नहीं होता, युवावस्था में गृहस्थी का बोझ होता है, बुढ़ापा रोग ग्रस्त और पीड़ादायक होता है, तब भला ज्ञान कैसे मिले ? लोक सेवा कब की जाए ?
मुझे तो आज तक ऐसा व्यक्ति नहीं मिला, जिसे विधाता ने 1 दिन में 24 घंटे से एक पल भी कम दिया हो । फिर समय न मिलने की तो बात कह कर क्यों हाय-हाय करते हो ? अपनी अनावश्यक इच्छाओं को छोड़ दो । तुम्हारे पास जो कुछ भी है उसका सदुपयोग करो, उसमें संतोष भाव रखो । सावधान होकर देखो कि दिन भर में तुमने ऐसा क्या-क्या किया जो तुम नहीं भी करते तो चल जाता, इधर-उधर की ऐसी कितनी बातें की जिनसे ना तो तुम्हारा भला हुआ और ना सामने वाले को कुछ मिला, केवल बोलने की मजदूरी ही तुम्हारे हाथ लगी व्यर्थ के चिंतन में तुमने कितना समय लगाया ।
निरर्थक कार्यों में बिताने वाले समय को बचाकर तुम सार्थक परमात्मा को पाने में लगाओ । संसार में हर किसी ने सीमित समय का सदुपयोग करके ही सब कुछ हासिल किया है । अब आगे से समयाभाव का बहाना ना बनाना ।
महात्मा जी का सत्संग पाकर उस व्यक्ति की अक्ल के ताले खुल गए और वह समयाभाव की बहानेबाजी छोड़कर समय का सदुपयोग करने में लग गया । घड़ी भर के सत्संग में उसका जीवन के प्रति नजरिया बदल दिया उसे जीवन जीने की कला सिखा दिया, तभी तो कहा है ।
नजरें बदली तो नजारे बदले ।
किश्ती ने बदला रुख तो किनारे बदले ।।