ब्रह्मचर्य-सहायक प्राणायाम
कई लोग ब्रह्मचर्य पालना चाहते हैं और उसके लिए औषधियाँ व दवाइयाँ ले-लेकर थक जाते हैं लेकिन ब्रह्मचर्य में विफल हो जाते हैं । मुख्य कारणों में एक तो है आकर्षित होने का स्वभाव । इस बिगड़े स्वभाव पर कोई औषधि काम नहीं करेगी, ब्रह्मचर्य-नाश हो जायेगा । यदि आकर्षण है तो विवेक जगायें, मुर्दे को देखें, बीमार की कल्पना करें तो आकर्षण छूटेगा और फिर ब्रह्मचर्य-सहायक प्राणायाम करें, जो सहायक है ब्रह्मचर्य पालने में ।
लाभ :
(१) इससे इन्द्रियाँ संयमित होती हैं और कामविकार से रक्षा होती है ।
(२) चित्त एकाग्र रहता है ।
(३) कुम्भक करने की शक्ति बढ़ती है ।
(४) इस स्थिति में अधिक रहने पर ‘अनहद नाद’ सुनाई देने लगता है ।
(५) यह प्रयोग उपासना में बड़ा सहायक है ।
विधि :
पीठ के बल सीधा लेट जायें । रुई या कपड़े के छोटे गोले से अथवा रबड़ के भी आते हैं कान बंद करने के(इयर प्लग), उनसे अथवा तो किसी भी साधन से कान बंद कर दें । बाहर का कोई शब्द सुनाई न दे । नजर नासिका के अग्रभाग पर रखें । आधा घंटा इस स्थिति में रहें व रुक-रुककर गहरा श्वास लेते रहें । फिर आँखों की पुतलियाँ ऊपर चढ़ा दें । इसे अर्धोन्मिलित नेत्र, ‘शाम्भवी मुद्रा’ कहते हैं । यह एकाग्रता में बड़ी मदद करती है । दृष्टि भौंहों के मध्य में जहाँ तिलक किया जाता है, ले आयें । स्वाभाविक आँखें बंद होने लगेंगी तो होने दें ।
शरीर को शववत् ढीला छोड़कर भावना करें कि ‘चित्त शांत हो रहा है, इन्द्रियाँ संयमी हो रही हैं, ॐ शांति…।’- ऐसा थोड़ा चिंतन व विश्रांति हो जाय फिर कुम्भक करें । श्वास भीतर रोकें । इसे आभ्यंतर कुम्भक कहते हैं । जितनी देर रोक सके रोकें । फिर एकाएक न छोड़ें, धीरे-धीरे छोड़ें । अब बाह्य कुम्भक करें अर्थात् श्वास बाहर निकाल दें और हो सके उतनी देर श्वास बाहर रोके रखें ।
इससे नाड़ी शुद्धि होगी और नीचे के केन्द्रों में जहाँ विकार पैदा होते हैं, वहाँ से चित्तवृत्ति ऊपर आ जायेगी । अगर आधा घंटे से भी ज्यादा अभ्यास करेंगे और तीनों समय करेंगे तो जो ‘अनहद नाद’ अंदर चल रहा है, वह शुरू हो जायेगा ।
खान-पान संबंधी सावधानियाँ –
अधिक पका, मिर्च-मसालेयुक्त, तीखा, खट्टा व चटपटा भोजन तथा मद्यपान, मांसाहार, प्याज, लहसुन, खाली पेट चाय-कॉफी, रात्रि में सोने से पूर्व गर्म-गर्म दूध के सेवन और कब्ज से वीर्यनाश होता है । अतः इनसे बचें ।
आसन ब्रह्मचर्य-साधना के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होते हैं । जैसे पादपश्चिमोत्तानासन, सर्वांगासन आदि ।
वीर्यरक्षक चूर्ण :
आँवला चूर्ण व पिसी मिश्री का समभाग मिश्रण बनाकर उसमें २० प्रतिशत हल्दी मिला दो । रोज रात्रि को सोने से आधा घंटा पूर्व पानी के साथ एक चम्मच यह चूर्ण ले लिया करो । यह चूर्ण वीर्य को गाढ़ा करता है, कब्ज दूर करता है, वात-पित्त-कफ के दोष मिटाता है और संयम को मजबूत करता है । इसके सेवन से सवा दो घंटे पहले या बाद में दूध न पियें । ब्रह्मचर्य के लिए रोज ‘दिव्य प्रेरणा-प्रकाश’ ग्रंथ के २-४ पन्ने पढ़ते हुए उसका ५ बार वाचन पूरा करें ।