मोबाइल बजा रहा है खतरे की घंटी
अनेक वैज्ञानिक प्रयोगों से प्रमाणित हो चुका है कि मोबाइल से प्रसारित विद्युत-चुम्बकीय विकिरण से कैंसर, मस्तिष्क-टयूमर, नुपंसकता, आनुवांशिक विकृतियाँ, अनिद्रा, याददाश्त में कमी, सिरदर्द आदि अऩेक भयानक रोग भी होते हैं । ये इतनी सारी हानियाँ जो विज्ञान से पकड़ में आयीं, इनके अलावा कुछ और भी हानियाँ भविष्य में पकड़ में आयेंगी ।
फिनलैंड की शोध संस्था ʹरेडिएशन एंड न्यूक्लियर सेफ्टी अथॉरिटीʹ ने पाया कि मस्तिष्क के जिस ओर (दायें-बायें) मोबाइल सटाकर प्रयोग किया जाता है, उस तरफ मस्तिष्क-कैंसर होने की सम्भावना 39 प्रतिशत बढ़ जाती है ।
केवल मोबाइल ही नहीं, सामान्यतया इमारतों की छत पर स्थापित मोबाइल एंटेना या टॉवर भी कम हानिकारक नहीं है । जर्मनी में किये गये एक अध्ययन के अनुसार मोबाइल टॉवर भी कम हानिकारक नहीं हैं । जर्मनी में किये गये एक अध्ययन के अनुसार मोबाइल टॉपर की 400 मीटर की परिधि में रहने या कार्य करने वाले लोगों में कैंसर पीड़ितों की संख्या दस वर्षों में तीन गुना बढ़ गयी । स्वीडन में हुए शोध से स्पष्ट हुआ कि 20 वर्ष की उम्र से पूर्व ही मोबाइल का प्रयोग शुरु करने वालों को मस्तिष्क-कैंसर का सर्वाधिक खतरा है ।
विद्यार्थी के स्वास्थ्य एवं अध्ययन में व्यवधान आने से कई शिक्षा बोर्डों व शिक्षण संस्थाओं ने मोबाइल के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी है ।
भूलकर भी उन खुशियों से न खेलो, जिनके पीछे लगी हों गम की कतारें ।
वैज्ञानिक प्रमाण व रोजमर्रा के अऩुभव हमारी आँखें खोलने के लिए पर्याप्त हैं । मोबाइल के विज्ञापनों में अक्सर आता हैः ʹसिर्फ इतने पैसे भरो और अनलिमिटेड बात करो ।ʹ पर याद रखिये आपका समय, आपका जीवन अनलिमिटेड नहीं है । अंतिम घड़ी में एक श्वास भी आप अधिक नहीं ले सकते । आपके जीवन का क्षण-क्षण कीमती है और ईश्वर की प्राप्ति के लिए है । अतः युवानों को विशेष रुप से अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए कीमती समय को कीमती-में-कीमती परमात्मा के भजन-सुमिरन, सत्संग, सत्कर्म में लगायें, मोबाइल की मुसीबतों में न उलझें ।