रहस्य... फैशन से बीमारी तक की यात्रा का...
‘बुरे काम का बुरा नतीजा’ तो होता ही है । फैशनपरस्त लोगों ने यदि समाज को संयमहीन एवं विवेकहीन बनाने का पाप किया है तो फैशन उन्हें बीमारियों के रूप में अनेक इनाम भी दे रहा है ।
कुछ समय से एक नया रोग देखने में आया है जिसका नाम है, ‘वेरिकोस वेन’ । भारत में कुल आबादी के दस से बीस प्रतिशत लोग इस बीमारी के शिकार हैं तथा महिलाओं में यह बीमारी पुरूषों की अपेक्षा चार गुना अधिक है । फैशनपरस्ती इस रोग का सबसे बड़ा कारण है । जब तक इस देश में आधुनिकतावादी उच्छृंखल लोगों की कमी थी तब तक यह रोग बहुत कम मात्रा में देखने को मिलता था ।
‘इन्द्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल’, दिल्ली के वरिष्ठ ‘कार्डियो वैस्कुलर सर्जन’ के अनुसार आजकल फैशन एवं दिखावे की बढ़ती होड़ में ऊँची एड़ी की सैन्डिल एवं जूते तथा अत्यन्त चुस्त कपड़े पहनने से यह समस्या बढ़ रही है ।
‘वेरिकोस वेन’ पैरों में होने वाला रोग है । ‘वेरिकोस वेन’ वे शिरायें हैं जो शरीर के अशुद्ध रक्त को शुद्धिकरण के लिए हृदय में पहुँचाती हैं । शिराओं को गुरूत्वाकर्षण शक्ति के विपरीत कार्य करते हुए रक्त को ऊपर की ओर ले जाना होता है । इसके लिए इनमें वाल्व लगे होते हैं । जब रक्त ऊपर की ओर जाता है तो वाल्व खुल जाते हैं परंतु जब हम चलते-फिरते या खड़े रहते हैं तब गुरूत्वाकर्षण के कारण रक्त ऊपर से नीचे की ओर बहने लगता है ऐसे समय में इन शिराओं के वाल्व बन्द हो जाते हैं ।
चुस्त कपड़े पहनने से इन शिराओं पर दबाव पड़ता है जिससे इनमें रक्त का प्रवाह रूक जाता है । इससे इनके वाल्व कार्य करना बन्द कर देते हैं । फलतः शिरायें रक्तप्रवाह को नियंत्रित नहीं कर पातीं हैं तथा दबाव से फूल जाती हैं और यहाँ से ‘वेरिकोन वेन’ नामक रोग की शुरूआत होती है । इस रोग के कारण पैरों में स्थायी सूजन एवं भारीपन आ जाता है । पैरों तथा जाँघों में नीले रंग की गुच्छेदार नसें उभर आती हैं, जिससे खड़े रहने या चलने-फिरने में भयंकर दर्द होता है । आगे चलकर पैरों में एग्जिमा तथा कभी न भरने वाले घाव (वेरिकोन अल्सर) हो जाते हैं । बाद में इनमें भारी रक्तस्राव होता है और अंततः रोगी अपाहिज बन जाता है ।
इसी प्रकार गर्मियों के दिनों में प्रयोग किये जाने वाले टेल्कम पावडर शरीर के रोमकूपों को बंद करके समस्या खड़ी कर देते हैं । शरीर के जो विजातीय हानिकारक द्रव पसीने के द्वारा बाहर निकलने चाहिए वे अन्दर ही रूक जाते हैं और समय आने पर अपना कमाल दिखाते हैं । पावडरों में प्रयुक्त होने वाले दुर्गन्धनाशक पदार्थ (डियोडोरेंट) से ‘डमेटाइटिस’ नामक चर्मरोग तक हो सकता है ।
मुलतानी मिट्टी से स्नान करने पर रोम कूप खुल जाते हैं । मुलतानी मिट्टी से रगड़कर स्नान करने पर जो लाभ होते हैं साबुन से उसके एक प्रतिशत लाभ भी नहीं होते । स्फूर्ति और निरोगता चाहनेवालों को साबुन से बचकर मुलतानी मिट्टी से नहाना चाहिए । जापानी लोग हमारी वैदिक और पौराणिक विद्या का लाभ उठा रहे हैं । शरीर में उपस्थित व्यर्थ की गर्मी तथा पित्तदोष का शमन करने के लिए, चमड़ी एवं रक्त सम्बन्धी बीमारियों को ठीक करने के लिए जापानी लोग मुलतानी मिट्टी के घोल से ‘टब-बाथ’ करते हैं तथा आधे घंटे के बाद शरीर को रगड़कर नहा लेते हैं । आप भी यह प्रयोग करके स्फूर्ति और स्वास्थ्य का लाभ ले सकते हैं । साबुन में तो चर्बी, सोडा खार एवं जहरीले रसायनों का मिश्रण होता है ।
बालों को काला करने के लिए प्रयोग किये जाने वाले ‘हेयर डाई’ में पेरा फिनाइल डाई अमीन रसायन होता है जो भयानक एलर्जी उत्पन्न करता है । कुछ वर्ष पहले चण्डीगढ़ स्थित पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल इन्स्टीच्यूट के डॉक्टरों ने एक अध्ययन के बाद निष्कर्ष निकाला कि हेयर डाई का अधिक समय तक इस्तेमाल करने से मोतियाबिंद तक हो सकता है ।
फैशन की शुरूआत तो अच्छा दिखने की अंधी होड़ से होती है परंतु अंत होता है खतरनाक बीमारियों के रूप में । कुछ लोग कहते हैं, हमें तो ऐसा कुछ नहीं हुआ परंतु आज नहीं हुआ तो कल होगा । आज लोग जितने दुःखी एवं बीमार हैं, आज से पचास या सौ साल पहले इतने नहीं थे । कारण स्पष्ट है कि अशुद्ध खान-पान एवं अनियमित रहन सहन ।
इसीलिए संतजन कहते हैं-
भूलकर भी उस खुशी से मत खेलो, जिसके पीछे हों गम की कतारें ।
हमारी महान संस्कृति बाहरी सौन्दर्य की अपेक्षा आंतरिक सौन्दर्य को महत्त्व देती हैं । सदगुण, शील एवं चरित्र ही मनुष्य का असली सौन्दर्य है । संसार में जो भी महान एवं पवित्र आत्माएँ हुई हैं उन्होंने इसी सौन्दर्य को निखारा । फिर चाहे मीरा, शबरी, गार्गी, सुलभा, सीता, अनुसूया आदि हों या नानक, कबीर, बुद्ध, महावीर, शंकराचार्य, ज्ञानेश्वर, लीलाशाहजी महाराज आदि हों ।
बाहर के सौन्दर्य को निखारकर मैकाले पुत्रों द्वारा ‘मिस इंडिया’ या ‘मिस वर्ल्ड’ का खिताब भले ही मिल जाये लेकिन चारित्रिक महानता-पवित्रता एवं दैवीगुणों की शांतिमय सुवास तो भारतीय संत और संस्कृति ही दे सकती है ।