कैन्सर का खतरा बढ़ा रहे हैं झागवाले शैम्पू
शैम्पू या टूथपेस्ट में खूब सारा झाग बनता हो तो किसे अच्छा नहीं लगता ? लेकिन इस झाग की तरफ देखने से पहले शैम्पू या टूथपेस्ट के कवर पर लिखे उन रासायनिक पदार्थों की सूची में पढ़ लें जिनको मिलाकर इसे बनाया गया है । इसके प्रति सावधानी न बरतने वालों को शीघ्र ही कैन्सर का शिकार होने की आशंका है ।
उल्लेखनीय है कि विश्व में सन् 1980 के आसपास आठ हजार व्यक्तियों में से एक व्यक्ति को कैन्सर होने का खतरा होता था । लेकिन इस तरह के रसायनयुक्त सौंदर्यप्रसाधनों और खाद्य पदार्थों के लगातार उपयोग से यह दर लगातार बढ़ती जा रही है । वर्ष 1980 के दशक में तीन हजार व्यक्तियों में से एक व्यक्ति को कैन्सर हो रहा है । विकसित देशों के रहन-सहन और खान-पान को अपनाने के कारण भारत जैसे विकासशील देशों में भी कैन्सर का प्रकोप बढ़ाता जा रहा है ।
भारत में बिकने वाले अनेक प्रकार के शैम्पूओं और टूथपेस्टों में ‘सोडियम लॉरेल सल्फेट’ का इस्तेमाल किया जा रहा है । इस रसायन का उपयोग करने में मँहगे शैम्पू और बहुत लोकप्रिय टूथपेस्ट बनाने वाली कम्पनियाँ भी पीछे नहीं हैं । अनेक उत्पादन इस रसायन का पूरा नाम लिखने के स्थान पर केवल ‘एस. एल. एस.’ ही लिख देते हैं । विदेशी और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के उत्पादों में इसका अत्यधिक उपयोग किया जा रहा है, लेकिन अनेक स्वदेशी और छोटी कम्पनियों के उत्पादों में यह रसायन प्रयोग नहीं किया जाता है ।
विश्व के विकसित देशों में दवाओं की तरह सभी तरह के सौन्दर्य प्रसाधनों के डिब्बों पर यह लिखना आवश्यक है कि उस उत्पाद को बनाने के लिए किन-किन रसायनों का उपयोग किया गया है । भारत में दवाओं के निर्माण में तो उपयोग किय गये पदार्थों का नाम डिब्बे पर लिखना कानूनी तौर पर अनिवार्य कर दिया गया है, लेकिन सौंदर्य प्रसाधनों के उत्पादों पर अनिवार्य रूप से ऐसा नहीं लिखा जा रहा है । इस कारण आम उपभोक्ताओं के लिए सौन्दर्यप्रसाधनों के निर्माण में प्रयुक्त पदार्थों को जानना भी कठिन है । इसलिए उपभोक्ता संगठनों ने इस बारे में आवाज उठानी शुरू कर दी है ।
अमेरिका के पेन्सिलवानिया विश्वाविद्यालय में स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत माईकेल हेल ने इस बारे में उपभोक्ताओं को चेताने का प्रयास शुरू किया है । उनका कहना है कि शैम्पू या टूथपेस्ट में खूब सारा झाग पैदा करने के लिए अनेक कम्पनियाँ सोडियम लॉरेल सल्फेट का इस्तेमाल करती हैं । यह रसायन बहुत सस्ता होता है और बहुत झाग पैदा करता है । इस रसायन का उपयोग गैरेज के फर्श साफ करने या कारखानों की गन्दगी साफ करने के लिए आमतौर पर किया जाता है । लेकिन उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए और अपने उत्पाद में खूब सारा झाग दिखाने के लिए अनेक बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने इसका उपयोग करना शुरू कर दिया है ।
माईकेल हेल ने बताया है कि यह बात साबित हो चुकी है कि सोडियम लॉरेल सल्फेट के दीर्घकालीन उपयोग से कैन्सर हो सकता है । उन्होंने अनेक घरों उपयोग किये जा रहे शैम्पुओं की जाँच की तो उनमें यह तत्त्व पाया गया । इस बारे में उन्होंने एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी ने पूछताछ की । श्री हेल के अनुसार, उस कम्पनी के अधिकारियों ने इस बात को स्वीकार किया कि उन्हें यह पता है कि उनके शैम्पू में इस तरह के रसायन का उपयोग किया जा रहा है । लेकिन झाग पैदा करने के लिए इससे अधिक प्रभावी एवं सस्ता और कोई रसायन अभी तक बाजार में उपलब्ध न होने के कारण इसका उपयोग जारी है ।
बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के इन उत्पादों का भारत के समृद्ध परिवारों में बहुत शान के साथ उपयोग किया जाता है । लेकिन लगातार विज्ञापन के कारण अब इनका उपयोग भारत के मध्यम वर्ग में भी बढ़ रहा है । इसको देखते हुए अमेरिकी विश्व विद्यालय के इस अधिकारी की उपरोक्त चेतावनी भारत के उपभोक्ताओं के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकती है ।
भारत के हर्बल प्रसाधन विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह के विदेशी शैम्पू के स्थान पर हमारे देश में कृषि उत्पादों से बनने वाले शैम्पू कहीं ज्यादा उपयोगी और स्वास्थ्य के अनुकूल हैं । आँवला, शिकाकाई, रीठा जैसे पदार्थों का मिश्रण करके तो ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएँ भी बढ़िया शैम्पू स्वयं बना लेती हैं जिनके इस्तेमाल से उनके बाल स्वस्थ एवं सुन्दर रहते हैं । शहरी क्षेत्रों में संचालित खादी ग्रामोद्योगों में सतरीठा या इसी तरह के नामों से बिकने वाले शैम्पू बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के उत्पादों से कहीं बेहतर और उपयोगी होते हैं । इनकी दरें भी रसायनों से बनाने वाले शैम्पुओं के मुकाबले एक-चौथाई से भी कम होती हैं । लेकिन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के लगातार विज्ञापन और यूरोप की तरफ देखने की गुलामी की आदत के कारण, भारतीय महिलाएँ भी उनके इस तरह के कैन्सर पैदा करने वाले उत्पादों का उपयोग करके रोगों का शिकार बन रही हैं ।