ब्यूटीपार्लर : फ़ैशन के नाम पर लूट और बीमारी का घर
विगत कुछ वर्षों से फ़्राईड़ पुत्रों द्वारा भारतीय युवतियों को “विश्व सुंदरी” (Miss World) एवं “ब्रम्हाण्ड सुंदरी” (Miss Universe) घोषित करने के बाद भारत की महिलाएँ दिग्भ्रमित सी हो गई हैं । विशेषकर युवतियों को तो ब्यूटी का भूत ही लग गया है ।
संस्कार तथा चरित्र कैसा भी हो परंतु शक्ल-सूरत से ब्रम्हाण्ड सुंदरियों की तरह दिखने की इच्छा रखने वाली युवतियों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है । यदि सच कहें तो “एड्स” की तरह भयानक यह “ब्यूटीरोग” भारत के युवा समाज को संस्कार विहीन बना रहा है ।
इस रोग का पूरा-पूरा लाभ उठा रहे हैं ब्यूटीपार्लर…!! छोटे बड़े शहरों में, कुकुरमुत्तों की तरह फैल रहे ब्यूटीपार्लरों में ब्यूटीप्रेमियों को जमकर लूटा जाता है । ऊपर से सौंदर्य निखार के बजाय कुरूपता एवं रोग ही हाथ लगते हैं ।
आजकल शहरों में हर २०-३० घरों के अंतराल में एक ब्यूटीपार्लर दिख ही जाता है । कहीं-कहीं तो निजी मकानों के अलावा सरकारी मकानों में भी बिना कोई पंजीयन अथवा बिना कोई सुरक्षा को ध्यान में रखकर ब्यूटीपार्लर चलाए जा रहें हैं ।
शोषण का मनोवैज्ञानिक तरीक़ा
ब्यूटीपार्लर में किसी भी महिला ग्राहक के पहुँचने पर सबसे पहले तो उसका मानसिक शोषण किया जाता है । जैसे, “अरे ! यह क्या चेहरा बना रखा है ? इतनी कम उम्र में ही बूढ़ी दिखती हो । तुम्हारे चेहरे का ऐसा शेप अच्छा नहीं दिखता अथवा तुम्हारी हेर्स्टायल तुम्हारे चेहरे से मिलती नहीं है..” इस प्रकार के कुछ ना कुछ नुख्स निकल के सुंदर महिला को भी मानसिक रूप से कुरूप बना दिया जाता है । ऐसे में वह महिला अपनी सभी कमियों को दूर करना चाहती है जो उसके सौंदर्य को बिगाड़ती है ।
यदि सिर्फ़ कोई चेहरे की मसाज करने के लिए ब्यूटीपार्लर में जाए तो तो उसे, “तुम्हारी हेयरस्टाइल ठीक नहीं है…” अथवा दूसरी कोई कमी निकाल कर उसे दूसरे प्रयोगों के लिए भी मानसिक दबाव दिया जाता है । अर्थात् “सूई ख़रीदने गया और पूरी सकन ही ख़रीद बैठा” वाली बात सच साबित होती है ।
अधिकतर ब्यूटीपार्लर में नए प्रशिक्षण प्राप्त सदस्यों को कम वेतन पर अथवा अप्रशिक्षितों को फ़ीस लेकर प्रशिक्षण देने के लिए रखा जाता है । ऐसे अप्रशिक्षित हाथों में अपना चेहरा थमा देना बंदर को टोपी पहनाने जैसा काम है । थोड़ी-सी भी गलती मांसपेशियों में विकृति ला सकती है और भी कई प्रकार की दुर्घटनायें हो सकती हैं । ऐसे में सुंदरता का निखार तो दूर की बात है लेकिन जो प्राकृतिक सौंदर्य है वह भी ख़तरे में पड जाता है । एक ही उपकरण को बिना साफ़ किए कई लोगों पर प्रयोग किया जाता है । ऐसे में संक्रामक बीमारियाँ फैलती हैं ।
शास्त्र का सिद्धांत तो यह है कि जिसके पास चरित्र, शील एवं सुसंस्काररूपी वास्तविक सौंदर्य है वह कुरूप होकर भी सौंदर्यवान है और उसे किसी भी बाहरी आडम्बर की आवश्यकता नहीं होती । जैसे, अपने घर में पर्याप्त भोजन नहीं मिलने पर व्यक्ति को दूसरों से भोजन माँगना पड़ता है , ऐसे ही जो भीतर से खोखले हैं उन्हें ही अपने को कुछ विशेष साबित करने के लिए बाहरी आडम्बर की आवश्यकता पड़ती है ।
सुसंस्कार से, भीतर के सौंदर्य से ही मानव की वास्तविक उन्नति होती है । फ़ैशनपरस्ती से ना तो पुरुषों का चरित्र सुरक्षित रह सकता है ना ही महिलाओं का शील । इससे तो असंयम, अनैतिकता एवं अनाचार ही बढ़ता है । यह बात यदि सभी की समझ में आ जाय तो बढ़ता जा रहा चारित्रिक पतन निश्चित रूप से रोका जा सकता है ।