सौन्दर्य प्रसाधन हैं सौन्दर्य के शत्रु
सौन्दर्य प्रसाधनों का प्रयोग कितना घातक हो सकता है, यह बात भी अब विभिन्न परीक्षणों से सामने आती जा रही है । यदि कहा जाय कि ये सौंदर्य प्रसाधन हमारे नैसर्गिक सौन्दर्य को छीनने में लगे हैं तो गलत नहीं होगा ।
सौन्दर्य प्रसाधनों में भारी मात्रा में कृत्रिम रसायनों, कृत्रिम अर्क और सुगंधियों का प्रयोग किया जा रहा है । ये प्रसाधन हमारे लिए कैसे घातक सिद्ध हो सकते हैं, इसके लिए यह जानना भी जरूरी है कि किस प्रसाधन में कौन से रासायनिक तत्त्व मिलाये जाते हैं ।
सौंदर्य-गृह ‘पाइवट प्वाइंट’ की भारतीय शाखा की प्रबंध निदेशिका एवं सौन्दर्य विशेषज्ञा श्रीमती ब्लासम कोचर बताती हैं- “शैम्पू में मूल रूप से सोडियम लारेल सल्फेट पाया जाता है, जो बालों के लिए बहुत हानिकारक नहीं होता किन्तु सस्ते और घटिया शैम्पू जो कास्टिक सोडा और टी-पॉल यानी डिटर्जेन्ट से बने होते हैं, वे बालों को बेजान और रूखा बनाते हैं । शैम्पू बालों के दुश्मन हैं । बालों की बेहतरी के लिये उन्हें रीठा, आँवला, शिकाकाई से ही धोना चाहिए ।” केश सज्जा में किया जाने वाला हेयर स्प्रे एक प्रकार का अल्कोहल होता है, जिसमें गोंद, रेजिन, सिलिकॉन और सुगन्ध मिली होती है । रेजिन और गोंद की परत बालों को सेट भले ही करती हो, किन्तु उसमें मौजूद चिपकाने वाला पदार्थ बालों के लिए हानिकारक होता है, क्योंकि जब वह बालों से खिंचाव बढ़ता है और वे तेजी से टूटने लगते हैं । इसमें मौजूद सिलिकॉन हमारे लिए बेहद हानिकारक होता है । इससे कैंसर होने का खतरा भी रहता है ।
काजल पेंसिलः में अरंडी का तेल और लेड होता है । आँखों के भीतरी भाग में लेड के जाने से भारी नुक्सान हो सकता है । पलकों की बरौनियों पर लगाया जाने वाला मस्करा लेड रंग और पी.वी.सी. से बना होता है । पी.वी.सी. की परत से बरौनियों के बाल कड़े हो जाते हैं और इसे साफ करने पर टूटकर झड़ने भी लगते हैं । श्रीमती ब्लासम के अनुसार मस्कारे की जगह अलसी का तेल बरौनियों पर लगाने से बाल बढ़ेंगे और सुंदर भी होंगे ।
चेहरे पर लगाये जाने वाले पाउडर, रूज या फाउंडेशन में अगर कोई हानिकारक तत्त्व हैं तो वह हैं इनके रंगों की क्वालिटी । रंगों की हल्की क्वालिटी के इन प्रसाधनों के प्रयोग से चर्मरोग जैसे एलर्जी, दाद या सफेद दाग होने की आशंका बनी रहती है ।
लिपस्टिक में कारनोबा वैक्स, बी वैक्स (मधुमक्खी के छत्ते का मोम), अरंडी का तेल और रंगों का प्रयोग किया जाता है । इनमें प्रयोग होने वाले रंगों की घटिया क्वालिटी से होंठ काले पड़ जाते हैं ।
ब्लीचिंग क्रीम यदि त्वचा का रंग साफ करती है, तो उसके प्रयोग में बरती गयी तनिक-सी लापरवाही से त्वचा काली पड़ सकती है । इसमें अमोनिया की मात्रा का ध्यान रखना बेहद आवश्यक है । इसी प्रकार गोरेपन की क्रीम में अन्य तत्त्वों के अलावा पाये जाने वाले आइड्रोक्वीनीन से चेहरे पर स्थायी रूप से सफेद-सफेद धब्बे पड़ने लगते हैं ।
विभिन्न सौंदर्य में पशुओं की चर्बी और पेट्रोकेमिकल्स, कृत्रिम सुगंधियों जैसे गुलाब की सुगंध के लिए इथाइत्र, जिरानाइन, अल्कोहल, फिनाइल और सिट्रोनेल्स मिलाया जाता है । ये तत्त्व त्वचा में एग्जीमा, दाद और एलर्जी जैसी बीमारियों को जन्म देते हैं । इसी प्रकार इत्र, जिनमें हाड्रक्सीसिट्रोन बेंजीसेलिसिलेट की मात्रा अधिक होती है जिनसे डरमेटाइटिस का खतरा बना रहता है ।
अतः नैसर्गिक सौंदर्य की आभा के लिए हमें प्रकृति से ही उपादान जुटाने चाहिए, ताकि हम कृत्रिम सौंदर्य प्रसाधनों की मार से बच सकें ।