संकल्पशक्ति से सब सम्भव
संकल्पशक्ति परमात्मा का दिया हुआ एक दिव्य वरदान है, जो सभी मनुष्यों के पास है । उसमें भी युवावस्था, जो ऊर्जा का सर्वोच्च पड़ाव माना जाता है, उसमें यदि इस संकल्पशक्ति का सदुपयोग किया जाय तो कोई ऐसी वस्तु या अवस्था जो प्राप्त न हो सके । यह ऐसी शक्ति है जो सभी अस्त्र-शस्त्रों से अधिक समर्थ है । इसके द्वारा असम्भव कार्य भी सम्भव हो जाते हैं ।
संसार में जितनी भी महान विभूतियाँ हो गयी हैं, उनकी सफलता के मूल में दृढ़ संकल्प ही कार्यरत रहा है । युवा-वर्ग यदि विषय-विकारों में व्यर्थ जा रही अपनी ऊर्जा को उच्च संकल्पों के साथ सही दिशा दे दे तो वह जिस अवस्था में है वहीं से महानता के राजमार्ग पर अग्रसर हो सकता है ।
पूर्व आदतों, कुसंस्कारों में इतना बल नहीं है कि उन्हें प्रचंड संकल्पशक्ति के सहारे निरस्त न किया जा सके । आंतरिक परिवर्तन करने में संकल्पशक्ति बहुत मदद करती है । आज आम तौर पर यह शिकायत सुनने को मिलती है कि ‘हमें आत्मनियंत्रण में सफलता नहीं मिलती ।’ ऐसे लोग भी यदि ब्रह्मचर्य के नियमों का पालन करें और दृढ़ संकल्प का आश्रय लें तो उनके लिए भी उच्च लक्ष्य प्राप्त करना असम्भव नहीं है ।
असफलताएँ सिर्फ यह बताती हैं कि सफलता के लिए आवश्यक सावधानी व संकल्पशक्ति की कमी थी । यदि आप कहीं असफल हो जायें तो पुनः दूने-चौगुने उत्साह के साथ अपने लक्ष्य की ओर चलें । हजार बार असफल होने पर भी फिर से पुरुषार्थ करें, अवश्य सफलता मिलेगी ।
अपने संकल्पों के प्रति दृढ़ रहते हैं तथा उनके अनुरूप उद्यम में तत्पर रहते है वे अपने लक्ष्य को अवश्य पा लेते है । पितामह भीष्म ने आजीवन ब्रह्मचारी रहने का व्रत लिया और उसे पूरा कर दिखाया । राजा भगीरथ ने गंगा-अवतरण का संकल्प किया, वे घोर तप में संलग्न रहे और सफल भी हुए । युवक आसुमलजी ने ठान लिया था कि ‘मुझे परमात्मप्राप्ति करनी ही है’ तो उनके मार्ग में कितनी विघ्न-बाधाएँ आयीं लेकिन अपने संकल्प पर दृढ़ रहे तो परमात्मप्राप्ति कर ब्रह्मवेत्ता महापुरुष संत श्री आशारामजी बापू के नाम से विश्वविख्यात हो गये ।
जिस कार्य को करने का दृढ़ संकल्प किया जाता है वह कार्य रुचिकर हो जाता है और उसका परिणाम भी अच्छा होता है ।