पहले स्वयं को सुधारो
शेख सादी फारसी भाषा के बहुत ऊंचे कवि थे । उस समय यह प्रथा थी कि हज की यात्रा में आधी रात को उठकर सब यात्री नमाज पढ़ते थे । यात्रा में सादी और उनके पिता ने रात में उठ के कुछ लोगों के साथ नमाज पढ़ी किंतु कुछ यात्री सोते ही रहे । सादी ने अपने पिता से कहा : “ये कैसे निकम्मे और निकृष्ट लोग हैं जो नमाज पढ़ने के लिए भी नहीं उठे, सोते ही रहे ।” पिता ने गंभीर होकर बतलाया : “खबरदार ! ऐसी बात मत कहो । यह अधिक अच्छा होता कि तुम भी सोते ही रहते और नमाज न पढ़ पाते । किसीके अवगुण देख के निंदा करना और घृणा करना उससे भी बड़ा पाप है ।” शेख सादी के पिता ने उनको जो उपदेश दिया वह बड़ा ही सारगर्भित है ।
निंदा किसीकी हम किसीसे भूलकर भी ना करें ।
ईर्ष्या कभी भी हम किसीसे भूलकर भी ना करें ।।
हमको किसीकी भी कटु आलोचना करने का कोई अधिकार नहीं है । परनिंदा बहुत बड़ा पाप है । जो पराई निंदा में लगता है उसका खुद का ही मन मैला होता है । कोई कैसा भी हो, हमको उसकी निंदा नहीं करनी चाहिए । हमको तो अपने–आपको पहले सुधारना चाहिए, परंतु कोई हमारे धर्म की, हमारी संस्कृति की, संत–महापुरुषों की, सज्जनों की निंदा या दुष्प्रचार करता है तो उसका खंडन करना निंदा नहीं ‘सत्य की रक्षा’ कहलाता है । वह दोषपूर्ण नहीं बल्कि पवित्र कर्तव्य है ।