कोई व्यक्ति तुमसे नाराज हो तो क्या करोगे ?
कोई व्यक्ति तुमसे नाराज़ है तो तुम मन-ही-मन उस व्यक्ति की परिक्रमा करो और तुम उससे नाराज़ मत होओ । जो तुम पर नाराज़ होता है उसके कोई गुण भी होंगे । हमारी दृष्टि में दोष होता है न, तब दूसरों में दोष-ही-दोष दिखेंगे; हमारी दृष्टि में गुण होगा तो गुण दिखेंगे । लेकिन गुण दोष सबमें मिश्रित हैं – किसीमें दोष ज्यादा, किसी में गुण ज्यादा हैं ।
तो जिससे भी तुम्हारी अनबन हो गई हो, तो उसके कोई-न-कोई गुण याद करके मन-ही-मन उसकी प्रदक्षिणा करो और कहो, ‘तुम्हारे में यह गुण भी है… यह गुण भी है… यह गुण भी है… बाकी थोड़ा-बहुत मुझे उन्नीस-बीस दिखता है तो मेरा नज़रिया भी बदल जाय आपका भाव बदल जाय । आपके भी ये दोष हैं तो निकल जायें…’ मित्रवत्, स्नेहीवत् । उसके सामने न बोल सकते हैं तो मन-ही-मन बोलो । जैसे गुरू शिष्य का मंगल चाहते हैं तो फिर डाँटते भी हैं, पुचकारते भी हैं, हाथाजोड़ी भी करते हैं, दंडित भी कर देते हैं लेकिन चाहते मंगल हैं । ऐसे ही जिससे आपका विरोध है उसका आप मंगल चाहकर यह प्रयोग करो । इससे आपका हृदय पवित्र हो जायेगा और वह कितना भी तुम्हारे प्रति नफ़रत करता हो, तुम्हारा कुछ बिगाड़ नहीं सकेगा । कैसा जादू ! जगजीत प्रज्ञा है । जगत को जीतने वाली बुद्धि है यह !