वाणी की चतुराई
एक बार किसी ने एक मरने योग्य बूढ़ा हाथी एक गांव में भेजा । साथ में गांववासियों को यह आदेश भी दे डाला कि इस हाथी के स्वास्थ्य की खबर मुझे रोजाना बताई जाए और जो कोई भी ग्रामवासी हाथी मर गया ऐसी सूचना मुझे देगा, उसे तत्काल मृत्युदंड दे दिया जाएगा । राजा की ऐसी विचित्र आज्ञा सुनकर सभी ग्रामवासी डर के मारे सहम गए । अब वे उस हाथी का यत्नपूर्वक पालन-पोषण करके उसके प्राण बचाने में लग गए । तब भी वह हाथी मर गया । इस पर गांव के निवासी मृत्यु- दंड के भय से बहुत परेशान हुए । वे आपस में विचार करने लगे – हाय ! आज हममें से कौन राजा के पास जाकर हाथी के मरने का समाचार कहेगा ?
जब मौत के भय से व्याकुल गांव के लोग इस प्रकार चिंता में डूबे थे । तभी कोई चतुर ग्रामवासी वहां आकर बोला – डरो मत, मैं ही जाकर राजा से इस हाथी के मौत का समाचार कहूगाँ । ऐसा कहकर वह राजमहल की ओर चल दिया और राजा के पास जाकर बोला : महाराज ! आज हाथी न बैठता है, न खड़ा होता हैं, न घास खाता है, न जल पीता है, न सास लेता है और न साँस छोड़ता हैं और ज्यादा क्या कहूँ ? वह एक जीवित प्राणी की तरह आचरण नहीं कर रहा है । यह सुनकर राजा ने पूछा – क्या वह हाथी मर गया है ? इस पर वह ग्रामवासी बोला – हे स्वामी ! यह तो आप ही कर रहे हैं, हम नहीं ।
तब राजा उसके बोलने की सरलता व चतुराई से बहुत प्रसन्न हुए और उस गांव के सभी निवासियों को बहुत-सा इनाम दिया । सचमुच वाणी की मधुरता से अर्थात् किसी व्यक्ति को मधुर वचन बोलकर सरलता से प्रसन्न किया जा सकना उतना ही आसान है जितना कि एक नन्हें बालक को प्यार से वश करना ।
अतः हमें भी मधुर तथा संयत वाणी का प्रयोग करना चाहिए I हमारे वचनों से औरों को शीतलता मिले, ऐसा हमेशा ख्याल रखना चाहिए ।
वाणी ऐसी बोलिए, मनुवाँ शीतल होय ।
औरन को शीतल करे, आपहुँ शीतल होय ।।