गृहस्थी में रहने की कला
जिन बातों को याद करने से तुम्हें चिंता होती है, दुःख होता है या किसीके दोष दीखते हैं, उन्हें विष की नाईं त्याग दो । जिन बातों से तुम्हारा उत्साह, आत्मिक बल बढ़ता है, प्रसन्नता बढ़ती है उनका आदर से चिंतन करो । अपने चित्त को ऐसा झंझटमुक्त रखो कि किसीकी निंदा, द्वेष, नफ़रत उसको बिगाड़ न सके । किसीने आपको गाली दी और वह गाली देकर आपको दुःखी करना चाहता है तब यदि आप दुःखी हो गये तो उसका तो काम बन गया । आप तो ह्रदय को झंझटमुक्त बनाइये । गाली दी किसीने तो सोचा, ‘वह तो आकाश में चली गयी, मेरा क्या बिगड़ता है ! और देता है तो हाड-मांस के शरीर को देता है ।’ यदि वह दोष हमारे अंदर है तो हमें निकालना चाहिए और यदि ईर्ष्या के कारण बद-इरादे से दोषारोपण करे, कुप्रचार करे-करावे तो हमें निर्द्वन्द रहना चाहिए ।
भगवान बोलते हैं : निर्द्वन्द्वो भवार्जुना । देवरानी कुछ कहती है, जेठानी कुछ कहती है तो आप निर्द्वन्द हो जाओ, नकटे(बेशर्म) नहीं पक्के बनो । नकटा वह है जो गलती करता है, गालियाँ सहता रहता है । ऐसा नहीं बनो । गलती हो तो निकाल दो और यदि गलती नहीं है फिर भी कोई कुछ बोलता है तो आप चिंतारहित, तनावरहित, अहंकाररहित हो जाओ । जीवन जीने का यह तरीका है, जगत को आप चुप नहीं करा सकते ।