पादपश्चिमोतानासन
क्या आप अपनी लम्बाई बढ़ाना चाहते हैं? विकारी, क्रोधी स्वभाव पर नियंत्रण पाकर संयमी, धैर्यवान और साहसी बनना चाहते हैं? हाँ तो आप नित्य पादपश्चिमोत्तानासन का अभ्यास कीजिये।
परिचयः
यह आसन भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। भगवान शिव ने मुक्तकंठ से इस आसन की प्रशंसा करते हुए कहा हैः ‘यह आसन सर्वश्रेष्ठ है।’ इसे करते समय ध्यान मणिपुर चक्र में स्थित हो।
लाभः
चिंता एवं उत्तेजना शांत करने के लिए यह आसन उत्तम है। इस आसन से उदर, छाती और मेरुदण्ड की कार्यक्षमता बढ़ती है। संधिस्थान मजबूत बनते हैं और जठराग्नि प्रदीप्त होती है। पेट के कीड़े अनायास ही मर जाते हैं।
विधिः
बैठकर दोनों पैरों को सामने लंबा फैला दें। श्वास भीतर भरते हुए दोनों हाथों को ऊपर की ओर लंबा करें। श्वास रोके हुए दाहिने हाथ की तर्जनी और अँगूठे से दाहिने पैर का अँगूठा और बायें हाथ की तर्जनी और अँगूठे से बायें पैर का अँगूठा पकड़ें। श्वास छोड़ते हुए नीचे झुकें और सिर दोनों घुटनों के मध्य में रखें। ललाट घुटने को स्पर्श करे और घुटने जमीन से लगे रहें। हाथ की दोनों कोहनियाँ घुटनों के पास जमीन से लगी रहें। सामान्य श्वास-प्रश्वास करते हुए इस स्थिति में यथाशक्ति पड़े रहें। धीरे-धीरे श्वास भीतर भरते हुए मूल स्थिति में आ जायें।
समयः
प्रारम्भ में आधा मिनट इस आसन को करते हुए धीरे-धीरे 15 मिनट तक बढ़ा सकते हैं।
ध्यान दें-
आप अवश्य इस आसन का लाभ लेना। प्रारंभ के चार-पाँच दिन जरा कठिन लगेगा लेकिन थोड़े दिनों के नियमित अभ्यास के पश्चात आप सहजता से यह आसन कर सकेंगे। यह निश्चित ही स्वास्थ्य का साम्राज्य स्थापित कर देगा।
रोगों में लाभः
मन को गंदे विचारों से बचाकर संयमित करने हेतु इस आसन का नियमित अभ्यास करना चाहिए। इसके अभ्यास से स्वप्नदोष, वीर्यविकार व रक्तविकार रोग दूर होते हैं। मंदाग्नि, अजीर्ण, पेट के रोग, सर्दी, खाँसी, कमर का दर्द, हिचकी, अनिद्रा, ज्ञानतंतुओँ की दुर्बलता, नल की सूजन आदि बहुत से रोग इसके अभ्यास से दूर होते हैं। मधुप्रमेह, आंत्रपुच्छ शोथ (अपेन्डिसाइटिस), दमा, बवासीर आदि रोगों में भी यह अति लाभदायक है।